74th Independence Day 2020: स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से सुनें आजादी के सही मायने
74th Independence Day 2020 आइए ऐसे में हमारे उन आम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बातें सुनें जिन्होंने इस दिन के लिए पीठ पर लाठियां खाईं अंग्रेजों के जुल्मोसितम सहे।
नई दिल्ली, जेएनएन। आजादी का एहसास बहुत खूबसूरत होता है। परतंत्रता उस विवशता की तरह होती है, जिसमें सब कुछ होते हुए भी जीवन की उन्मुक्तता, स्वच्छंदता अधूरी होती है। इसी एहसास को अपनी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने तमाम कष्ट सहे, और अंग्रेजों भारत छोड़ो को सच कर दिखाया। आज हम 74 वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहे हैं। लोगों में उमंग है, उत्साह है, ऊर्जा है। कोविड-19 महामारी की विभीषिका के बावजूद आजादी की खुशबू भीनी नहीं हो पाई है। उसकी महक दिनोंदिन बढ़ रही है। लोकतंत्र मजबूत हो रहा है।
आइए, ऐसे में हमारे उन आम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बातें सुनें जिन्होंने इस दिन के लिए पीठ पर लाठियां खाईं, जेलों में बंद रहे, अंग्रेजों के जुल्मोसितम सहे। उनके उद्गार बताते हैं कि आजादी के सही मायने क्या हैं? उनका सपना पूरा होता दिख रहा है। आजाद भारत की धमक दुनिया को सुनाई देने लगी है। आजादी जिंदाबाद।
सपना अब हो रहा पूरा
अमरनाथ गुप्ता
उम्र : 97 साल, स्थान: मेरठ
14 वर्ष की उम्र में अगस्त 1942 को सीएबी स्कूल पर लगे यूनियन जैक झंडे को उखाड़ फेंका था। 1946 तक किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिला। देश की आजादी के साथ 1947 में मेरठ कॉलेज में दसवीं में प्रवेश मिला। देश का हिस्सा होते हुए भी कश्मीर का अलग झंडा था। अब अनुच्छेद 370 हटने के बाद एक झंडा हुआ है। एक देश, एक कानून और एक तिरंगा ही आजादी का मकसद रहा। पिछले छह-सात सालों में देश ने उस लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया है। जो सपना उस समय देखा था अब उसकी शुरुआत हो चुकी है।
विश्वशक्ति बनने की ओर बढ़ चला देश
नंदलाल धींगड़ा
आयु : 73 साल, स्थान: हरिद्वार
73 साल हो गए हैं देश को आजाद हुए। इस कालखंड में हमने हर क्षेत्र में चहुंमुखी विकास किया और अभी भी बहुत-कुछ किया जाना बाकी है। इसके लिए हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व और युवा लगातार प्रयासरत हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते हमारा सपना है कि देश में हर हाथ को काम मिले। कोई भी बच्चा अनपढ़ न रहे, वह चाहे अमीर हो या गरीब। अच्छी बात यह है कि इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं और हम एक मजबूत अर्थव्यवस्था बन चुके हैं।
युवा पीढ़ी समझे आजादी का महत्व
करण सिंग तोमर
उम्र: 96 वर्ष, स्थान: इटारसी
देश को आजादी आसानी से नहीं मिली, इसके लिए हजारों बलिदान हुए हैं। आज की आजाद युवा पीढ़ी को इसका महत्व समझना चाहिए। हर नागरिक को देशहित में काम करना है। आजादी के बाद हमने बैलगाड़ी से हवाई जहाज तक का सफर तय किया है। शिक्षा, चिकित्सा और विज्ञान और अन्य क्षेत्र में हमारे यहां बहुत काम हुआ है। आधुनिक भारत शक्तिशाली है और दुश्मनों को जवाब देना भी जानता है। अब हमारी फौज के पास ताकत और संसाधन दोनों है। दुनिया को कोई देश हमें डरा नहीं सकता।
दुनिया में बढ़ा देश का रुतबा
सत्यमित्र बख्शी
आयु : 95 वर्ष, स्थान : ऊना
हम लोगों ने जो सपने आजादी की लड़ाई के दौरान देखे थे, वे अब पूरे हो रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी आजादी के सही मायने की अनुभूति करने लगी है। भारत का राजनीतिक रुतबा विश्वभर में बढ़ा है। भारत के लोग गर्व कर सकते हैं कि हम अब दुनिया की किसी भी ताकत से कम नहीं हैं। निसंदेह इसका श्रेय वर्तमान केंद्र सरकार के प्रयासों को है। भारत को आजादी जिस मकसद के लिए मिली थी, अब उसकी सार्थकता साबित हो रही है।
मन से निकला पाक व चीन का डर
जगराम
आयु: 98 साल, स्थान: गुरुग्राम
आजादी का मतलब होता है, डर के साये से बाहर निकलना। पाकिस्तान और चीन के डर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी तरह खत्म कर दिया। आज सभी शक्तिशाली देश भारत के मित्र हैं। आजादी के दीवानों ने यही सपना देखा था कि देश का डंका पूरी दुनिया में बजे। देश के लोगों का मनोबल आज सातवें आसमान पर है। राफेल के आने के बाद सेना की ताकत कई गुना बढ़ चुकी है। कोई भी देश हमें आंख दिखाने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा है।
सुंदर भारत की कल्पना हुई साकार
नंदलाल गुप्ता
उम्र: 104 वर्ष, स्थान: दिल्ली
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हैदराबाद सत्याग्रह में भाग लिया। काफी समय जेल में रहा। एक ही उद्देश्य था देश को आजाद करना। देश आजाद हुआ, लेकिन बदहाल स्थिति थी। कई सारे मसले थे जिनपर त्वरित कार्य करने जरूरत थी। आज देश के विकास को लेकर मैं संतुष्ट हूं। र्आिथक मोर्चे की बात करें या फिर सामरिक मोर्चे की। सरकार हर मोर्चे पर सफल रही है। धीरे-धीरे गरीबी दूर हो रही है। वर्षों से राजनीति की भेंट चढ़े मुद्दे को सुलझाया गया है। एक सुंदर भारत की जो कल्पना की थी, वह साकार हो रहा है।
पल्लवित हो रहे लोकतांत्रिक मूल्य
रामसंजीवन ठाकुर
उम्र : 103 वर्ष, स्थान: मुजफ्फरपुर
आजादी की लड़ाई मूल्यवान और अर्थवान संकल्पों के साथ लड़ी गई थी। गरीबी, शिक्षा, आदर्श समाज, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना जैसे देशहित के तमाम मुद्दे संघर्ष बिंदु थे। हम अपनी साझी विरासत को संभालकर नई पीढ़ी के लिए आजाद भारत को गढ़ना चाहते थे। वैचारिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक आधार पर लोकतांत्रिक परंपरा कायम करने के लिए संघर्षशील रहे। आजादी के बाद देश ने कई बदलाव देखे। गरीबी उन्मूलन के साथ शिक्षा का उन्मुखीकरण हुआ। नई पीढ़ी के लिए हमने जो मंजिल तय की थी, उसका मार्ग प्रशस्त हुआ। सामाजिक और लैंगिक असमानता खत्म हुई, जन-जन में अधिकार बोध हुआ। बापू का सपना सफाई, स्वरोजगार और स्वदेशी साकार हो रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों के निरंतर पल्लवित होने का मन में संतोष है।