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84 के दंगों पर सीबीआइ तलब, अब तक 448 लोगों को मिल चुकी है सजा

वर्ष 1984 में हुए सिख दंगा के संबंध में पुलिस या सीबीआइ ने अब तक कुल कितने केस दर्ज किए हैं, कितने मामलों में अभियुक्तों को सजा हो चुकी है और कितने मामलों में आरोपी बरी हुए हैं? ऐसे कितने मामले हैं, जिनमें अभियोजन ने बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर की और कितने मामले अनट्रेस रहे हैं? यह जानकारी दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीके भसीन व न्यायमूर्ति जेआर मिढ़ा की खंडपीठ ने सिख विरोधी दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व पार्षद बलवान

By Edited By: Published: Fri, 31 Jan 2014 08:56 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2014 09:22 AM (IST)
84 के दंगों पर सीबीआइ तलब, अब तक 448 लोगों को मिल चुकी है सजा

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। वर्ष 1984 में हुए सिख दंगा के संबंध में पुलिस या सीबीआइ ने अब तक कुल कितने केस दर्ज किए हैं, कितने मामलों में अभियुक्तों को सजा हो चुकी है और कितने मामलों में आरोपी बरी हुए हैं? ऐसे कितने मामले हैं, जिनमें अभियोजन ने बरी हुए आरोपियों के खिलाफ अपील दायर की और कितने मामले अनट्रेस रहे हैं? यह जानकारी दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीके भसीन व न्यायमूर्ति जेआर मिढ़ा की खंडपीठ ने सिख विरोधी दंगा मामले में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व पार्षद बलवान खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआइ से मांगी है। वहीं, हाईकोर्ट ने खोखर की जमानत याचिका पर सुनवाई 12 मार्च तक के लिए टाल दी है।

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खंडपीठ ने सीबीआइ से यह भी पूछा है कि जिन मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं, उनमें राज्य सरकार ने अपील क्यों नहीं दायर की? इस पर सीबीआइ के वकील ने कहा कि उन मामलों की जांच दिल्ली पुलिस ने की थी, सीबीआइ ने नहीं।

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बलवान खोखर, गिरधारी लाल व कैप्टन भागमल को निचली अदालत ने पिछले साल मई माह में उम्रकैद की सजा दी थी। दो अन्य आरोपियों महेंद्र यादव व किशन खोखर को तीन-तीन साल कैद की सजा दी गई थी। इस मामले में कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को बरी कर दिया गया था। इन सभी पर आरोप था कि दिल्ली कंटोनमेंट राजनगर गुरुद्वारे के पास एक नवंबर 1984 को इन्होंने सिख विरोधी दंगा भड़का कर पांच सिखों की हत्या कर दी थी।

सिख विरोधी दंगे में 448 लोगों को मिल चुकी है सजा

नई दिल्ली। करीब 29 वर्ष पूर्व वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजधानी में बड़े पैमाना पर खून-खराबा हुआ था।

सिख दंगों के बाद केंद्र सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए 26 अप्रैल 1985 को न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया। जिससे इन दंगों की जांच की जा सके और पता चल सके कि यह संगठित तरीके से किए गए थे या नहीं। साथ ही आयोग सुझाव दे सके कि इस तरह के दंगे भविष्य में कैसे रोके जा सकते हैं। इसके बाद दिल्ली सरकार ने कपूर- मित्तल कमेटी, जैन-अग्रवाल कमेटी और आरके आहूजा कमेटी गठित की। आयोग और इन कमेटियों की रिपोर्ट और दिल्ली पुलिस की जांच के बाद विभिन्न मामले दर्ज किए गए और उन पर दिल्ली की विभिन्न अदालतों में केस की सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद 448 आरोपियों को सजा सुनाई गई। इनमें से 52 को उम्रकैद और तीन को दस वर्ष से अधिक की सजा सुनाई जा चुकी है। इसके अतिरिक्त सिख दंगे के दौरान ड्यूटी में लापरवाही बरतने के मामले में छह पुलिसकर्मियों को भी सजा दी जा चुकी है। इस मामले में सीबीआइ को भी कई मामलों की जांच व पुन: जांच का जिम्मा दिया गया था। इसमें कुछ राजनीतिज्ञ भी आरोपी थे। सीबीआइ ने सात मामलों की जांच की थी। दो मामलों में क्लोजर रिपोर्ट अदालत स्वीकार कर चुकी है और पांच मामलों का अभी ट्रायल चल रहा है। 21 मामलों को अनट्रेस करार दिया गया, जिसमें आरोपियों और गवाह का पता ही नहीं चल सका था। इनमें से एक मामला एक नवंबर 84 का था, जिसमें नारायणा में तीन अज्ञात लोगों ने एक व्यक्ति की जला कर हत्या कर दी थी।

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