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मेहनत के मीठे फल ने ऐसे बदली हजारों परिवारों की दुनिया

साझा प्रयास: शरीफा उत्पादन से मिल रही 16 हजार परिवारों को रोज

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 12 Dec 2017 10:27 AM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 10:27 AM (IST)
मेहनत के मीठे फल ने ऐसे बदली हजारों परिवारों की दुनिया
मेहनत के मीठे फल ने ऐसे बदली हजारों परिवारों की दुनिया

कांकेर (छत्तीसगढ़) राजेश शुक्ला। घनघोर जंगलों और पहाड़ों के बीच स्थित छत्तीसगढ़ का कांकेर जिला नक्सर्ल हिंसा से बुरी तरह प्रभावित रहा है। गरीबी में जकड़े ग्रामीण परिवारों के पास न तो खेती का समुचित साधन था, न ही कोई काम-धंधा। पहाड़ी इलाका होने के कारण मिट्टी कम उपजाऊ है। पानी की उपलब्धता भी कम है, लेकिन शरीफा के उत्पादन के लिए यह स्थिति एकदम अनुकूल है। महिलाओं ने शरीफाके बूते ही गरीबो को पछाड़ने की ठानी। प्रशासन से सहयोग मिला। कठिन मेहनत के दम पर बाधाओं को पीछे छोड़ महिलाओं ने जो साझा प्रयास किया, वह आज एक प्रेरणा के रूप में सामने है। आज करीब 16 हजार परिवारों को इससे रोजी मिल रही है। 

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ऐसे हुआ कमाल 

दरअसल, कुछ साल पहले तक कांकेर के किसानों को मुनाफा तो छोड़िए, शरीफे का वाजिब दाम भी नहीं मिलता था। बिचौलियों ने कब्जा जमा रखा था। ऐसे में तत्कालीन कलेक्टर शम्मी आबिदी ने किसानों की इस मुश्किल को समझा। उन्होंने एक शरीफे के सुनियोजित उत्पादन की एक परियोजना शुरू कराई। महिलाओं ने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई। किसान परिवारों की इन महिलाओं की मेहनत और रुचि को देखते हुए जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने कांकेर वैली फ्रेश के नाम से एक अलग ब्रांड तैयार कराया। समूहों के माध्यम से शरीफा संग्रहण, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और वैल्यू एडीशन का काम होने लगा। कांकेर जिले के चार विकासखंडों में 410 रोजगार सहायक मित्र और 774 शरीफा संग्राहक बनाए गए। उन्हें दक्ष किया गया। गांव-गांव में समितियां बनीं। प्रशिक्षित कृषक संग्राहकों को 15 हजार पैकिंग बॉक्स व 2 हजार क्रेट निशुल्क दिए गए। सभी की मेहनत रंग लाई। आज हाल यह है कि 16 हजार से भी अधिक परिवारों को इससे रोजगार मिला है। इन्हीं समितियों के जरिए सीजन के अक्तूबर-नवंबर माह में करीब 6000 मीट्रिक टन शरीफा का संग्रहण होता है। यहां के शरीफा की मांग ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड समेत देश के सभी हिस्सों में है। 

समितियों में 80 फीसद महिलाएं 

यहां बनी समितियों में 80 फीसद महिलाएं हैं। रामबाई, सरिता, राधा आदि बताती हैं कि पहले पके फल खराब हो जाते थे। अब प्रशासन की ओर से उन्हें इन फलों गूदा निकालने के लिए 10 पल्पिंग मशीनें मिली हैं। साथ ही आइसक्रीम बनाने की भी दो मशीनें मिली हैं। इससे बचे फलों का गूदा निकाल आइसक्रीम बनाकर बेचती हैं। बड़े आकार वाले फल बाहर भेज दिए जाते हैं। जिले में बाकायदा 10 प्रोसेसिंग यूनिट हैं। आइसक्रीम बेचने के लिए कन्हारपुरी में जय प्रगति आइसक्रीम उत्पादन समिति अलग से बनाई गई है। 

मिला राष्ट्रीय पुरस्कार

दिल्ली में इस वर्ष हुए राष्ट्रीय कृषि मेले में वल्र्ड फूड इंडिया-2017 में कांकेर की यूनिट को पुरस्कृत किया गया। रायपुर, भोपाल और भिलाई में होने वाले कृषि मेलों व प्रदर्शनियों में भी कांकेर के शरीफा की खासी चर्चा रही।

पत्नी की कमाई से मोटरसाइकिल खरीदी है...

ग्राम नारा की रेवती नेताम कहती हैं, बच्चे रंगीन टीवी के लिए हमेशा परेशान करते थे, आज शरीफा की बदौलत ही वह बच्चों को यह खुशियां दे पाईं। कन्हारपुरी की समिति से जुड़ीं रामबाई बताती हैं कि उनकी गृहस्थी शरीफा से ही चल रही। अमोढ़ा के तनसिंह शोरी ने बताया कि पत्नी मोटरसाइकिल खरीद लेने के लिए कहती थीं, लेकिन मेरी इतनी कमाई नहीं थी। आज पत्नी की कमाई से मोटरसाइकिल खरीदी है। बरकाई गांव की पार्वती नाग बताती हैं कि शरीफा की कमाई से अब हर साल कुछ न कुछ आभूषण खरीदती हैं, जबकि पहले इन्हें सपनों में ही देखा करती थीं। 

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