तेरह सालों की वैज्ञानिकों की कड़ी मशक्कत से तैयार हुई गेहूं की 'कुंडली'
व्हीट ब्लास्ट, रस्ट और इसी तरह कई अन्य रोगों के जीन का पता लगा लिया गया है। विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गेहूं की कुंडली तैयार करने में वैज्ञानिकों को सफलता मिल ही गई। तेरह सालों की कड़ी मशक्कत हुई। दुनिया के 20 देशों के कृषि व जैव प्रौद्योगिकी संस्थानों के वैज्ञानिक दिनरात इसमें जुटे हुए थे। वैज्ञानिकों के स्तरीय सहयोग का उल्लेखनीय नमूना पेश करते हुए अत्यंत दुष्कर कार्य में सफलता प्राप्त की है। विश्व की खाद्य सुरक्षा के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। कई पीढि़यां इसका लाभ उठायेंगी।
खाद्य सुरक्षा में नायाब साबित होने वाली इस उपलब्धि में भारतीय संस्थानों व वैज्ञानिकों की भूमिका अहम मानी जा रही है। दुनिया के बीस देशों के 73 संस्थानों के 200 से अधिक वैज्ञानिकों में भारतीय संस्थानों और वैज्ञानिकों की भूमिका उल्लेखनीय रही है। विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों के बीच के इस समन्वय को अनूठा भी कहा जा रहा है। इसमें भारत के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, दिल्ली विश्वविद्यालय का दक्षिणी कैंपस और राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के 18 वैज्ञानिक शामिल थे। गेहूं का जीनोम संदर्भ तैयार कर लिया है, जिसे जीनोम सेक्वेंशिंग भी कहा जाता है।
वैज्ञानिकों की नजर में यह अत्यंत दुष्कर कार्य कहा जाता है, जिसे विश्वव्यापी सहयोग से पूरा किया गया। इसमें तकरीबन साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये का खर्च आया है। जलवायु प्रतिरोधी किस्मों के विकास में इससे मदद मिलेगी। सूखा, गरमी, ठंड और बेहतर गुणवत्ता से युक्त गेहूं की प्रजातियां कम समय में तैयार की जा सकती हैं। ग्लूटेन एलर्जी से पीडि़त लोगों को बहुत लाभ होगा।
भारत में तीन सौ लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है। सालाना 9.80 करोड़ टन उत्पादन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए गेहूं की पैदावार में सालाना 1.6 फीसद की सालाना वृद्धि की जरूरत है। गेहूं के 21 गुणसूत्रों के डीएनए का पूरा विवरण तैयार किया गया है। बीस देशों के वैज्ञानिकों का समूह अपने-अपने हिस्से का काम देख रहे थे।
इसमें भारत के वैज्ञानिकों को गुणसूत्र 2 ए की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह गेहूं जीनोम का पांच फीसद है। इस कार्य का पूरा होना अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग व समन्वय का एक अनुपम उदाहरण है। भारतीय वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व आईसीएआर के राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के प्रोफेसर नागेंद्र कुमार सिंह, पीएयू लुधियाना के डाक्टर कुलदीप सिंह और डीयू के प्रोफेसर जेपी खुराना ने किया।
प्रोफेसर सिंह ने बताया कि इसमें कुल एक लाख 60 हजार 983 जीन पहचाने गये। इससे गेहूं की फसल में लगने वाले रोगों को चिन्हित कर संबंधित जीन को हटाया जा सकता है। अब नई प्रजाति तैयार करने में लगने वाला समय घटकर आधा से भी कम हो जाएगा। व्हीट ब्लास्ट, रस्ट और इसी तरह कई अन्य रोगों के जीन का पता लगा लिया गया है। विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।