Har Ghar Tiranga: ध्वज से राष्ट्रध्वज होने की लंबी रही है यात्रा, स्वतंत्रता की घोषणा के बाद तिरंगा
हम तिरंगा को जिस रूप में देख रहे हैं इसका यह रूप प्रारंभ से नहीं है। अलग-अलग समय में बदलावों से होते हुए इसका यह स्वरूप सामने आया जिसे संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता दी थी। आइए जानते है इसकी कहानी...
नई दिल्ली। केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों से बना ध्वज, जिसमें बीच वाली सफेद पट्टी में नीले रंग का अशोक चक्र होता है, यही हमारा राष्ट्रध्वज तिरंगा है। हालांकि हम तिरंगा को जिस रूप में देख रहे हैं, इसका यह रूप प्रारंभ से नहीं है। अलग-अलग समय में बदलावों से होते हुए इसका यह स्वरूप सामने आया, जिसे संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता दी थी। एक ध्वज के राष्ट्रध्वज बनने तक की यात्रा पर एक नजर:
1906 बंगाल विभाजन के बाद बना था
अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान देश में ऐसा कोई ध्वज नहीं था। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद इसकी आवश्यकता का अनुभव हुआ। इसके सालभर बाद 1906 में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व करने वाला एक ध्वज सामने आया। सात अगस्त, 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के ग्रीन पार्क में इसे फहराया गया था। इसमें हरे, पीले और लाल रंग की पट्टी थी, जिसमें बीच वाली पीली पट्टी पर वंदे मातरम् लिखा था। ऊपर हरी पट्टी थी, जिसमें आठ सफेद कमल बने थे और नीचे लाल पट्टी में सूर्य और चंद्र की आकृति अंकित थी। क्रांतिकारी सचिंद्र प्रसाद बोस ने इसे तैयार किया था।
1907 पहली बार विदेश में फहरा भारत का झंडा
मैडम भीकाजी रुस्तम कामा ने 1907 में जर्मनी में दूसरे इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में भारत के प्रतीक के तौर पर एक ध्वज फहराया था। उस ध्वज को क्रांतिकारी हेमचंद्र दास ने बनाया था। इसमें ऊपर केसरिया, बीच में पीले और नीचे हरे रंग की पट्टी थी।
1917 होम रूल आंदोलन में आया नया झंडा
1916 से 1918 के बीच चले होम रूल आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने 1917 में एक ध्वज तैयार किया था। यह पहले के तीन रंगों वाले ध्वज से अलग था। इसमें लाल और हरे रंग की पट्टियां थीं। साथ ही एक कोने में ब्रिटिश ध्वज की प्रतिकृति भी बनी थी।
1921 महात्मा गांधी के सुझाव पर बना ध्वज
महात्मा गांधी के सुझाव पर 1921 में ¨पगली वेंकैया ने चरखे वाला तिरंगा बनाया था। इसमें ऊपर सफेद, बीच में हरा और नीचे लाल रंग था। इसमें बीच में एक चरखा बना था, जो ऊपर और नीचे वाली पट्टी तक फैला था। इसमें चरखा आत्मनिर्भरता, प्रगति और आम आदमी का प्रतीक था। इसे स्वराज ध्वज, गांधी ध्वज और चरखा ध्वज जैसे नाम भी दिए गए।
1931 ध्वज कमेटी ने बदला रंग
1931 में कराची में सात सदस्यीय ध्वज कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने ध्वज को नया रंग और डिजाइन दिया। इसमें लाल के स्थान पर केसरिया रंग का प्रयोग किया गया। रंगों का क्रम भी बदल दिया गया था। ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग को रखा गया। बीच में सफेद पट्टी पर चरखा बना था।
1947 स्वतंत्रता की घोषणा के बाद तिरंगा
1947 में लार्ड माउंटबेटन की तरफ से भारत को स्वतंत्र किए जाने की घोषणा के बाद स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रध्वज की बात सामने आई। डा. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में राष्ट्रध्वज का डिजायन तैयार करने के लिए कमेटी बनाई गई। व्यापक विमर्श के बाद ध्वज का वर्तमान स्वरूप सामने आया, जिसमें चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को रखा गया। 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने इसे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया।