नारी सशक्तिकरण: सबला बनेगी आधी आबादी, चुपचाप सशक्त बन रहे लोग
विभिन्न वर्कशॉप के जरिए संस्था ने देश के 60 हजार युवाओं को इस मुहिम से जोड़ा है। ये स्वैच्छिक रूप से अपनी सेवाएं संस्था को उपलब्ध कराते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। समाज में ऐसी तमाम संस्थाएं और संगठन हैं जो महिलाओं को सशक्त बनाने के काम में चुपचाप लगे हुए हैं। चाहे सरकार की नीतियों का लाभ दिलाने की बात हो या फिर खुद की किसी योजना के तहत उन्हें लाभ पहुंचाने का प्रयास हो, ये लोग बिना किसी शोरगुल के देश की आधी आबादी के उनके अधिकारों से लैस कर रहे हैं।
आइज से जच्चा-बच्चा का जीवन संवार रहीं जुबैदा
इस संगठन की संस्थापक जुबैदा बाई हैं। उनका जन्म चेन्नई के एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में हुआ। बारहवीं के बाद जब उन्होंने उच्च शिक्षा लेने की इच्छा जाहिर की तो परिवार ने मना कर दिया। पिता की माली हालत भी ऐसी नहीं थी कि उन्हें आगे पढ़ा सकें। लिहाजा स्कूल से निकलते ही जुबैदा ने सेल्स गर्ल के तौर पर एक नौकरी की। इसी के जरिए आगे की पढ़ाई की। 2009 में पढ़ाई के दौरान उनका राजस्थान जाना हुआ। उनकी मुलाकात वहां एक दाई से हुई जो उसी वक्त घास काटने वाली हसिया से गर्भ नाल काटकर एक बच्चे का जन्म कराकर लौटी थी।
बस यहीं से उन्हें ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए बदतर स्वास्थ्य सेवा की स्थिति सुधारने का ख्याल आया। उन्होंने आइज नाम से एक कंपनी बनाई। यह कंपनी जन्म नाम से बर्थ किट बनाती है। यह प्रसव के समय इस्तेमाल होने वाला किट है। यह बच्चे के सुरक्षित जन्म और प्रसव के वक्त महिलाओं को होने वाले संक्रमण से बचाने में मददगार है। किट में एक प्लास्टिक शीट, ब्लेड, धागा, साबुन होते हैं। कंपनी इस किट को एनजीओ की मदद से ग्रामीण इलाकों में वितरित करती है। साथ ही किट तैयार करने का काम ग्रामीण महिलाओं से करवाया जाता है। इससे रोजगार भी मिला है। संस्था अब तक ऐसे हजारों किट उपलब्ध करा चुकी है।
लंचबॉक्स से मिल रही पोषक खुराक
विमलेंदु झा ने 2000 में स्वेच्छा नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की। दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी संस्था ने लंचबॉक्स 17 नाम से एक सेवा शुरू की। इस सेवा के तहत झुग्गी में रहने वाली महिलाओं द्वारा बनाया भोजन विक्रेताओं के जरिए 40-220 रुपये में ग्राहकों को बेचा जाता है। दक्षिण दिल्ली में सेंट्रल किचन है। यहां खाने की गुणवत्ता की जांच की जाती है। मिलियन किचन नाम के एप से खाने का आर्डर दिया जाता है। जिन महिलाओं के पास रसोई के लिए पर्याप्त जगह नहीं है उन्हें जगह भी उपलब्ध कराई जाती है। एप से 20 विक्रेता जुड़े हैं और रोजाना 150 ऑर्डर बुक किए जाते हैं। एप में 200 से अधिक व्यंजन लिस्टेड हैं।
देसी क्रू से अनमोल संसाधन तक
कंपनी की संस्थापक सलोनी मल्होत्रा ने पुणे यूनिवर्सिटी से इंजीनिर्यंरग की पढ़ाई की। उन्हें दिल्ली की एक मीडिया कंपनी में अच्छी नौकरी भी मिली। हालांकि उनका सपना तो कुछ और ही करना था। अपनी नौकरी छोड़ उन्होंने नारी सशक्तीकरण की ठानी। उन्होंने सेवा क्षेत्र में मौजूद खामियों को पहचाना जिसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंची कि इस क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन की कमी है। वह ग्रामीण लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं। बस इसी क्रम में उन्होंने 2007 में ग्रामीण बीपीओ देसी क्रू की शुरुआत की। कंपनी ने पहला बीपीओ तमिलनाडु भवानी गांव में शुरू किया। इसके बाद तमिलनाडु के कई गांवों में बीपीओ शुरू किए गए।
शी सेज कर रही कानूनी सुरक्षा
देश में महिला उत्पीड़न के मामले हर दिन सामने आते हैं। ऐसी खबरों को हम पढ़ते हैं और भूल जाते हैं, लेकिन 25 वर्षीय तृषा शेट्टी ऐसी खबरों को भूल नहीं पाई। गूगल सर्च में उन्होंने पाया कि ऑनलाइन ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं है जहां यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को मदद मिल सके। लिहाजा उन्होंने अगस्त 2015 में शी सेज नाम से एक वेबसाइट की शुरुआत की। इसमें यौन उत्पीड़न से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी मौजूद है। भारतीय दंड संहिता में इसकी परिभाषा, प्रावधान के विषय में जानकारी दी गई है। खासतौर पर दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को कैसे अस्पताल, पुलिस और काउंसलर की मदद मिलेगी, वेबसाइट में यह बताया गया है, इसके प्रावधानों के विषय में जानकारी दी गई है। शी सेज दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को वकील और मनोचिकित्सकों की मदद भी उपलब्ध कराती हैं। साथ ही विभिन्न वर्कशॉप के जरिए संस्था ने देश के 60 हजार युवाओं को इस मुहिम से जोड़ा है। ये स्वैच्छिक रूप से अपनी सेवाएं संस्था को उपलब्ध कराते हैं।