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राहुल को गुजरात चुनाव ने दी 'अनिच्छुक' से 'परिपक्व' नेता की लंबी छलांग

राहुल गांधी को अब एक परिपक्व होते गंभीर नेता के रूप में देखा जाने लगा है।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 10:10 AM (IST)Updated: Mon, 11 Dec 2017 10:27 AM (IST)
राहुल को गुजरात चुनाव ने  दी 'अनिच्छुक' से 'परिपक्व' नेता की लंबी छलांग
राहुल को गुजरात चुनाव ने दी 'अनिच्छुक' से 'परिपक्व' नेता की लंबी छलांग

वडोदरा ( संजय मिश्र)। गुजरात के इस चुनाव में राहुल गांधी कांग्रेस की 22 साल से सत्ता की बंद तकदीर के ताले खोल पाएंगे या नहीं इसकी तस्वीर तो 18 दिसंबर को साफ होगी, पर मौजूदा चुनाव में राहुल को यह कामयाबी जरूर मिल गई है कि सूबे में उन्हें एक परिपक्व होते गंभीर नेता के रूप में देखा जाने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निर्विवाद लोकप्रियता के बीच सूबे में राहुल गांधी को देखने-समझने का लोगों का बदलता यह नजरिया पार्टी के लिए एक सियासी उपलब्धि से कम नहीं। खासकर तब जबकि लंबे समय से राहुल को एक अगंभीर और अनिच्छुक नेता के आरोपों के साथ सोशल मीडिया पर उपहास के दौर का भी सामना करना पड़ा है। यह चर्चा राहुल ने खुद चुनाव अभियान में की।

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राहुल गांधी के लिए गुजरात चुनाव उनकी भविष्य की राजनीतिक यात्रा का एक अहम मोड़ जरूर माना जाएगा क्योंकि जनता की नब्ज छूने वाले मुद्दों के प्रति गंभीरता और जुड़ाव ने खास भूमिका निभाई है। वडोदरा के युवा व्यापारी जिग्नेश शाह हो या यहां के श्याजी बाग पार्क से निकलते देवेंद्र पटेल। सभी मानते हैं कि राहुल गांधी की बातें इस चुनाव में काफी गंभीरता से जनता ने सुनीं। वे यह भी कहते हैं कि कांग्रेस के आज मुकाबले में आने की स्थिति में आई है तो यह राहुल की वजह से ही है।

शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा था जिसकी पूरे गुजरात में राजनीतिक अपील हो। हालांकि पटेल की यह टोली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी पहली चाहत जाहिर करने से भी गुरेज नहीं करती। वडोदरा ही नहीं अहमदाबाद, मेहसाणा, बनासकांठा और आनंद जैसे जिलों के शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी राहुल का यह नया राजनीतिक अवतार चुनावी चर्चाओं का हिस्सा है। विसनगर के युवा रवि त्रिपाठी कहते हैं 'राहुल ने इस चुनाव के दौरान लोगों की मुश्किलों को मुखर आवाज दी है। इतनी गरमागरमी में भी राजनीतिक शालीनता की सीमा नहीं लांघी है, जिसकी वजह से उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी है'। उनके साथ निशांत पटेल हो, सिद्धपुर के भावेश पटेल या फिर आणंद के नचिकेत, तमाम जगहों पर अधिकांश लोगों की राय में राहुल को अब 'पप्पू' बताना अनुचित ही नहीं राजनीतिक भूल भी होगी। राहुल की मेहनत की वजह से गुजरात के चुनाव में कांग्रेस बीते दो दशक का न केवल सबसे मजबूत मुकाबला कर रही है बल्कि पहली बार भाजपा की सत्ता के लिए वह खतरा बनती दिख रही है।

 

वडोदरा शहर के भाजपा चुनाव कार्यालय के बाहर मौजूद पार्टी के कार्यकर्ता ने कहा कि इससे इनकार नहीं कि राहुल ने हमें इस बार ज्यादा जोर लगाने को बाध्य किया है। इस बार राहुल कांग्रेस के संगठन को लड़ाई के लिए तैयार करने के कारण भी खास तौर पर चर्चा में हैं। गुजरात में भाजपा और कांग्रेस दो ही मुख्य पार्टियां हैं पर संगठन के लिहाज से कांग्रेस दूर-दूर तक भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकती। हर बूथ और गांव तक भाजपा का सक्रिय नेटवर्क है तो कांग्रेस को पंचायत और तालुका स्तर पर भी संघर्ष करना पड़ता है। इसके बाद भी जनता से जुड़े मुद्दे उठाते हुए राहुल ने कांग्रेस के संगठन को हर जिले में भाजपा को चुनौती देने लायक तो बना ही दिया है।

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