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सरकार नहीं चाहती कुलाधिपति के पद पर बरकरार रखना: अमर्त्‍य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत रत्न से सम्मानित अमर्त्य सेन ने शुक्रवार को नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से लगातार दूसरे कार्यकाल की अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी माने जाते रहे सेन का कहना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार उन्हें इस पद

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 20 Feb 2015 03:11 PM (IST)Updated: Fri, 20 Feb 2015 04:01 PM (IST)
सरकार नहीं चाहती कुलाधिपति के पद पर बरकरार रखना: अमर्त्‍य सेन

नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत रत्न से सम्मानित अमर्त्य सेन ने शुक्रवार को नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से लगातार दूसरे कार्यकाल की अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी माने जाते रहे सेन का कहना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार उन्हें इस पद पर नहीं देखना चाहती है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया है।

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मोदी के घोर विरोधी रहे अमृ‌र्त्य सेन ने नालंदा यूनिवर्सिटी के गवर्निग बोर्ड (जीबीएनयू) को लिखे पत्र में अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी दिलाने में सरकार की ओर से की जा रही देरी को जिम्मेदार ठहराया। जबकि उनके नाम का प्रस्ताव एक माह पहले ही भेजा जा चुका था। इसतरह की देरी से नालंदा विश्वविद्यालय को नुकसान हो रहा है। सेन ने कहा कि पिछले माह हुई जीबीएनयू की बैठक के मिनट्स पिछले पखवाड़े ही भेजे जा चुके हैं। सभी ने इन मिनट्स की पुष्टि की है लेकिन ये सिर्फ मंत्रालय के इशारे पर किया गया है।

मोदी पर सेन का सीधा निशाना :

उन्होंने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, 'मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि आप मोदी के आलोचक रहे हैं और वह नहीं चाहते कि आप कुलपति रहें।... एक भारतीय मतदाता होने के नाते किसी उम्मीदवार को पसंद करना या न करना मेरी स्वतंत्रता का विषय है।..कुलपति का नाम बोर्ड तय करता है। इस मामले में अगर प्रधानमंत्री ने कोई फैसला ले लिया है तो ये उनका काम नहीं है।'

कार्यकाल सीमित नहीं किया :

विदेश मंत्रालयअम‌र्त्य सेन की दलीलों को खारिज करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि सेन के कार्यकाल को सीमित करने के कोई प्रयास नहीं किए गए। इस बारे में जो निर्णय लेना है वह राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को लेना है। उन्होंने स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा कि जीबीएनयू ने 13 फरवरी को मिनट्स के ड्राफ्ट प्रेषित किए थे। सरकार को अपनी टिप्पणी दो हफ्ते में देनी थी। जिसकी अवधि 27 फरवरी को खत्म हो रही है।

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