दंगा विरोधी बिल लाने की तैयारी
विपक्ष के विरोध के कारण ठंडे बस्ते में चले गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को मुजफ्फरनगर दंगों के बाद संप्रग सरकार ने फिर झाड़-पोंछकर बाहर निकाल लिया है। भाजपा प्रखर हिंदुत्व की लाइन पर आगे बढ़ती दिख रही है तो कांग्रेस ने भी जवाब में धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर आक्रामकता से आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्ष के विरोध के कारण ठंडे बस्ते में चले गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को मुजफ्फरनगर दंगों के बाद संप्रग सरकार ने फिर झाड़-पोंछकर बाहर निकाल लिया है। भाजपा प्रखर हिंदुत्व की लाइन पर आगे बढ़ती दिख रही है तो कांग्रेस ने भी जवाब में धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर आक्रामकता से आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है। खासतौर से मुस्लिमों की मांग से जुड़ा सांप्रदायिक हिंसा विधेयक इस दफा संसद के शीतकालीन सत्र में लाने की तैयारी कर ली गई है। इस पर कांग्रेस-भाजपा के बीच वाकयुद्ध भी शुरू हो गया है।
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गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की विधेयक लाने पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान से चर्चा हुई है। शिंदे ने कहा भी कि हमने संबंधित विभागों से विधेयक का विवरण मांगा है। यह पूछे जाने पर क्या संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पेश किया जाएगा? उन्होंने कहा कि वह आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन माना कि इस पर काम शुरू हो चुका है। इससे पहले कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने मुजफ्फरनगर दंगों के आलोक में सांप्रदायिक हिंसा विधेयक पर आगे बढ़ने पर सरकार को हरी झंडी दिखा दी है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने कहा कि उन्होंने इस विधेयक के लिए गृह मंत्री से बातचीत की है। प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी है। जितनी जल्दी हो सकेगा, हम इसे आगे बढ़ाएंगे।
मौजूदा सियासी माहौल में कांग्रेस काफी सोच-समझकर इस मुद्दे पर आगे बढ़ रही है। सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'हम इस पर आगे बढ़ेंगे और यदि यह आगामी संसद सत्र में पारित नहीं भी होता है तो जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनकी पोल खुलेगी और हम धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर अपनी प्रतिबद्धता दिखा सकेंगे।' दरअसल, विपक्ष को सोनिया की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति की तरफ से सुझाए गए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के प्रारूप पर आपत्ति है। उन पर कानून मंत्रालय से राय लेकर संसद में पेश करने की जमीन तैयार की जा रही है। कारण है कि तमाम मुस्लिम धर्मगुरु और संगठन इस बाबत प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिल चुके हैं और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी दबाव बना रहे हैं।
गौरतलब है कि सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में केंद्र को विशेष बल भेजने का अधिकार मिलने के कारण कई राज्य भी इसका विरोध कर रहे हैं। भाजपा ने इसे बहुसंख्यकों के खिलाफ करार दिया है तो कई क्षेत्रीय दल इसमें संघीय नियमों का उल्लंघन देख रहे हैं।
इस बीच, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने जहां विधेयक जल्द से जल्द लाए जाने की वकालत की, वहीं भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने इसका विरोध किया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सांप्रदायिकता पर लगाम लगाने वाला हर प्रयास अच्छा है। लेकिन बिल पर नेशनल कांफ्रेंस की कार्यकारी समिति ही अंतिम फैसला लेगी।
किसने, क्या-कहा
'ये समझ नहीं आता कि कुछ पार्टियां सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का विरोध क्यों कर रही हैं? यह किसी जाति-धर्म के लिए नहीं है, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकने और पीड़ितों की मदद के लिए है।'
- के. रहमान खान, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री
'कांग्रेस सांप्रदायिक सद्भाव चाहती ही नहीं है। वह वोटबैंक की सियासत में इस तरह के हथकंडे अपनाती है, जिससे समाज का बंटवारा हो।'
- शाहनवाज हुसैन, भाजपा नेता
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