सरकार का वायदा, मार्च 2023 तक किसानों की आय कर दी जाएगी दोगुनी
सरकार ने वायदा किया है कि मार्च 2023 तक किसान की आय दोगुनी कर दी जाएगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसान की आय में लगभग 30 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि होना जरूरी है।
नई दिल्ली (डॉ.भरत झुनझुनवाला)। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार साल 2013 से 2019 के बीच हमारे देश के किसानों की आय में लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई है। यदि इसमें किसानों द्वारा बाजार से खरीदी जाने वाली सामग्री पर उनके द्वारा किए गए अधिक खर्च की गणना कर लें तो मेरे अनुमान से आय में वृद्धि 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष होगी। इसके सामने, सरकार ने वायदा किया है कि मार्च 2023 तक किसान की आय दोगुनी कर दी जाएगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसान की आय में लगभग 30 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि होना जरूरी है।
वित्त मंत्री ने किसानों द्वारा किए जा रहे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हासिल करने पर जोर दिया है जैसे संतुलित फर्टिलाइजर के प्रयोग और सोलर पंप-सेट के उपयोग से। यह कदम सही दिशा में है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कृषि पदार्थों के मूल्यों में लगातार गिरावट आ रही है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने वाली तकनीकें निरंतर विकसित होती जा रही हैं। जैसे ट्यूबवेल, टिश्यू कल्चर और रासायनिक फर्टिलाइजर। लेकिन खाद्य उत्पादों की खपत में समानांतर वृद्धि नहीं हो रही है क्योंकि विश्व की जनसंख्या में ठहराव आ गया है। फलस्वरूप कृषि उत्पादों की सप्लाई बढ़ रही है जबकि डिमांड कम ही बढ़ रही है।
तदनुसार कृषि उत्पादों के दाम गिर रहे हैं। अत: सरकार के प्रयास से जो कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी उससे किसान की आय में वृद्धि होना कम ही संभव है क्योंकि इन उत्पादों के बाजार मूल्यों में उतनी ही गिरावट आने की संभावना है। अपने देश में ही कई अनुभव उपलब्ध हैं जब किसानों को अपने बढ़े हुए उत्पादन को खेत में ही बर्बाद करना पड़ा था। चूंकि बाजार में फसल के दाम गिर गए थे। लिहाजा उत्पादन में वृद्धि से अक्सर किसान को नुकसान होता है। इस परिस्थिति में उत्पादन बढ़ने के स्थान पर माल की क्वालिटी में सुधार करके इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
वित्त मंत्री ने कहा है कि हॉर्टिकल्चर के कलस्टर बनाकर हर जिले के एक उत्पाद को बढ़ाया जाएगा। इस कदम को पूरी ताकत से लागू करना चाहिए। भारत के पास विविध प्रकार की जलवायु की अमूल्य संपदा है। हमारे देश में हर मौसम में किसी क्षेत्र में गर्मी तो किसी क्षेत्र में ठंड होती है। अत: ट्यूलिप जैसे फूलों का निर्यात हम वर्ष भर कर सकते हैं। नीदरलैंड जैसे देश में ट्यूलिप फूलों की खेती से अपार आय होती है। ट्यूनीशिया जैतुन के फलों को और फ्रांस वाइन को पूरे विश्व में सप्लाई करता है।
हम भी ऐसा कर सकते हैं लेकिन हर जिले में किस उत्पाद को बढ़ाया जाए इसके लिए गहन रिसर्च करना जरूरी है। इस दिशा में हमारी प्रयोगशालाएं और विश्वविद्यालय लचर हैं। किसी किसान ने बताया कि उन्होंने अपनी स्थानीय यूनिवर्सिटी के बताए अनुसार अपने खेत में कीनू के वृक्ष लगाए। जब फल हुए तो उनका आकार छोटा था। जब यूनिवर्सिटी के
प्रोफेसर के पास अपनी शिकायत लेकर पहुंचे तो प्रोफेसर ने कहा कि हां भाई हमारे भी वृक्ष सफल नहीं हुए। यानि प्रोफेसर ने बिना सोचे समझे ही संस्तुति कर दी थी। इस प्रकार की रिसर्च से किसानों को भयंकर घाटा लगता है और नए उत्पादों में प्रवेश करने से पहले वे हजार बार सोचते हैं।
अत: संभव है कि हम हर जिले के लिए विशेष उत्पादों को चिन्हित करें और उनके उत्पादन एवं अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग की व्यवस्था करें। इस दिशा में सरकार को भारी निवेश करने की जरूरत पड़ेगी। जैसे हर राज्य में आइआइटी हैं, उसी प्रकार हर 5 जिलों के बीच विशेष उत्पाद पर रिसर्च करने के केंद्र बनाने होंगे। तब इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
बजट में दूसरा स्वागत योग्य कदम किसानों की परती भूमि पर सोलर विद्युत उत्पादन कर ग्रिड को सप्लाई करने का है। यह कदम भी किसानों के लिए लाभप्रद हो सकता है लेकिन इसमें ग्रिड से जोड़ने की समस्याएं हैं जिन्हें दूर करना होगा। घिसी पिटी फसलों के उत्पादन को बढ़ाने से किसान की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा।
एक मात्र उपाय है कि हर जिले के लिए जो फसल उचित हो और जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग हो उसे चिन्हित किया जाए फिर उसके उत्पादन एवं मार्केटिंग की व्यवस्था की जाए अन्यथा जैसे पिछले दस वर्षों में किसान की आय 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है वैसे ही बढ़ती रहेगी। ( वरिष्ठ अर्थशास्त्री)