सरकारी व गैर सरकारी कार्यों में हिंदी को नहीं मिल रहा महत्व
देश को आजादी मिलने के बाद ज्ञान व विज्ञान में खूब तरक्की हुई है, लेकिन कोई पिछड़ा तो वह है राष्ट्रभाषा हिंदी। कंप्यूटर युग में हिंदी निरंतर पीछे जा रही है। सरकारी व गैर सरकारी कार्यों में हिंदी को वह महत्व नहीं मिल रहा, जो मिलना चाहिए। आज देखिए, हर
देश को आजादी मिलने के बाद ज्ञान व विज्ञान में खूब तरक्की हुई है, लेकिन कोई पिछड़ा तो वह है राष्ट्रभाषा हिंदी। कंप्यूटर युग में हिंदी निरंतर पीछे जा रही है। सरकारी व गैर सरकारी कार्यों में हिंदी को वह महत्व नहीं मिल रहा, जो मिलना चाहिए। आज देखिए, हर जगह अंग्रेजी का बोलबाला है। हिंदी की किताबें मात्र पुस्तकालय की शोभा बढ़ाती हैं। आम जनता से उसका कोई वास्ता नहीं होता। हिंदी साहित्य पर लिखने वालों की ही आज भाषा पर अच्छी पकड़ नहीं है। महात्मा गांधी वर्ष 1919 में तमिलनाडु में हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में सभापति थे। तब उन्होंने कहा था कि हिंदी भाषा के विकास के लिए उसे अपनाने की जरूरत है, ऐसा न करने पर हिंदी का भला नहीं होगा। अगर हिंदी का भला नहीं होगा तो उससे राष्ट्र पिछड़ेगा, क्योंकि यहां मामला हिंदी का नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का है।
[हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के प्रधानमंत्री विभूति मिश्रा]
संवाद का बेहतरीन माध्यम है हिंदी
हिंदी बेहद खूबसूरत भाषा है। हमारी खुद की भाषा है, बचपन से हमने इसी को अपने संवाद का माध्यम बनाया। आज भी जो बात हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपने देश में पहुंचा सकते हैं, वह हिंदी में ही संभव है। मुझे याद है कि कॉलेज के समय में जब थिएटर से जुड़ी थी तब हमने कई हिंदी नाटक किए। अब भी हिंदी नाटक करते हैं स्टेज पर। यहां तक कि अंग्रेजी के बढिय़ा नाटक भी हमने अनुवाद करके स्टेज पर पेश किए। हिंदी साहित्य बेहद समृद्ध है। कालीदास, निराला, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा जैसे कितने ही साहित्यकारों ने हिंदी के विकास में अपना योगदान दिया।
[किरण खेर, रंगकर्मी और सांसद]