नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार को कुरनूल जिले में अहोबिलम मठ मंदिर में कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने प्रदेश सरकार से कहा कि धार्मिक लोगों को ही इस मामले को संभालने दें। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने प्रदेश सरकार के वकील से सवाल किया कि सरकार इस मामले में क्यों कूदना चाहती है।

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई से किया इंकार

पीठ ने कहा, 'मंदिर के लोगों को ही इसे संभालने दें। धार्मिक स्थानों को धार्मिक लोगों के लिए क्यों नहीं छोड़ देना चाहिए।' शीर्ष अदालत ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार को कानून के तहत 'श्री अहोबिला मठ परंपरा अधीन श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी देवस्थानम' (अहोबिलम मठ मंदिर) का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा, 'अनुच्छेद-136 के तहत हर मामले में हमें कानून की व्यवस्था की जरूरत नहीं है।' दलीलों को सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध प्रदेश सरकार और अन्य की अपील पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया।

मंदिर मठ का हिस्सा है- हाई कोर्ट

हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका में दलील दी गई थी कि अहोबिलम मंदिर अनादि काल से तमिलनाडु स्थित श्री अहोबिलम मठ के नियंत्रण में रहा है। हाई कोर्ट का कहना था कि मंदिर मठ का हिस्सा है और उसमें कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करना संविधान के अनुच्छेद-26(डी) का उल्लंघन है क्योंकि यह जीयर या मठाधिपति के अधिकार को प्रभावित करता है।

आदेश को दी गई थी चुनौती

आंध्र प्रदेश सरकार और अन्य ने हाई कोर्ट के पिछले वर्ष अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि मंदिर अहोबिलम मठ का अभिन्न हिस्सा है और राज्य सरकार के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि मंदिर और मठ अलग-अलग निकाय हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि मंदिर अहोबिलम मठ का अभिन्न एवं अविभाज्य हिस्सा है जिसे हिंदू धर्म के प्रचार और श्री वैष्णववाद के प्रचार की धार्मिक सेवा के लिए स्थापित किया गया था।

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Edited By: Sonu Gupta