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संरक्षा के लिए विशेष कोष के साथ ही यूनियनबाजी पर कसा शिकंजा

बृहस्पतिवार को पेश रेल बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बढ़ते रेल हादसों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाने का एलान किया था।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 02 Feb 2017 07:25 PM (IST)Updated: Fri, 03 Feb 2017 03:01 AM (IST)
संरक्षा के लिए विशेष कोष के साथ ही यूनियनबाजी पर कसा शिकंजा
संरक्षा के लिए विशेष कोष के साथ ही यूनियनबाजी पर कसा शिकंजा

संजय सिंह, नई दिल्ली। बजट में एक लाख करोड़ रुपये के राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के एलान के अलावा सरकार ने रेलवे में संरक्षा से जुड़े कर्मचारियों की कमी दूर करने का उपाय भी किया है। इसके तहत संरक्षा से जुड़े सुपरवाइजरों के रेलवे यूनियनों में पद संभालने पर रोक लगा दी गई है।

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बृहस्पतिवार को पेश रेल बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बढ़ते रेल हादसों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाने का एलान किया था। इससे रेलवे सालाना 20 हजार करोड़ रुपये खर्च कर पांच साल में पुरानी पटरियों, पुलों, रोलिंग स्टॉक और सिग्नल प्रणालियों का नवीनीकरण करेगा। इससे संरक्षा में धन की कमी का रोड़ा दूर हो गया है। लेकिन कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए रेलवे बोर्ड ने बजट से इतर उपाय किया है।

इसके तहत बोर्ड ने 30 जनवरी को एक आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि संरक्षा कार्यो से जुड़ा सुपरवाइजर स्तर का कोई भी कर्मचारी अब रेलवे यूनियनों में पदाधिकारी नहीं बन सकेगा। यूनियनों में पद संभालने के बाद ये सुपरवाइजर संरक्षा कार्यो से पूरी तरह कट जाते है। एआइआरएफ तथा एनएफआइआर जैसी प्रमुख रेलवे यूनियनों ने इस आदेश का सख्त विरोध किया है। उनका कहना है कि यह कदम ट्रेड यूनियन एक्ट ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के 1987 के उस घोषणापत्र के भी विरुद्ध है जिसमें कर्मचारियों को 'संगठित होने का अधिकार' दिया गया है। यूनियनों ने रेलमंत्री सुरेश प्रभु व रेलवे बोर्ड चेयरमैन एके मितल को चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश को तुरंत वापस नहीं लिया गया तो 6 फरवरी को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

दरअसल रेलवे यूनियनें पिछले कई वर्षो से कर्मचारियों की कमी का मुद्दा उठा रही हैं। उनका कहना है कि जब तक संरक्षा श्रेणी के 1.22 लाख रिक्त पदों को नहीं भरा जाएगा, रेल दुर्घटनाएं होती रहेंगी। परंतु सरकार इससे सहमत नहीं है। उसका कहना है कि रेलवे में पहले ही इतने ज्यादा कर्मचारी हैं कि उन्हें वेतन और पेंशन देने में रेलवे की कमर टूटी जा रही है। बड़ी मुश्किल से कर्मचारियों की संख्या को 15 लाख से घटाकर पौने 14 लाख पर लाया गया है। आगे और कमी होनी है। लिहाजा मौजूदा कर्मचारियों से ही काम चलाना पड़ेगा। अब तकनीक और उपकरणों को बढ़ावा देकर रेलवे को प्रतिस्प‌र्द्धी बनाया जाएगा।


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