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कारगिल शहीद बलजीत की कुर्बानी को भी राजनेताओं ने नहीं छोड़ा

भले बलजीत सिंह ने अपने हौसले व आग उगलती रायफल से पाकिस्तानी फौज को कारगिल का रण छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था मगर अखंड व स्वतंत्र भारत के लिए जान देने वाले इस शहीद से जुड़ी भावनाएं अपने तंत्र से हार गई। पाकिस्तानी सेना को कारगिल से खदेड़ने वाले जवान की यादों के नाम खुली जुबान से वादों की झड़ी ल

By Edited By: Published: Fri, 26 Jul 2013 12:00 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2013 12:12 PM (IST)
कारगिल शहीद बलजीत की कुर्बानी को भी राजनेताओं ने नहीं छोड़ा

रामपुर, जागरण संवाददाता। भले बलजीत सिंह ने अपने हौसले व आग उगलती रायफल से पाकिस्तानी फौज को कारगिल का रण छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था मगर अखंड व स्वतंत्र भारत के लिए जान देने वाले इस शहीद से जुड़ी भावनाएं अपने तंत्र से हार गई।

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पढ़ें: ..जब पाक सेना ने टेके थे घुटने

पाकिस्तानी सेना को कारगिल से खदेड़ने वाले जवान की यादों के नाम खुली जुबान से वादों की झड़ी लगाने वाली केंद्र व राज्य सरकार खुद की जुबान पर कायम नहीं रह सकी। सरकारों के खाते से बलजीत के नाम या उसके परिवार के लिए कुछ नहीं निकला। परिजन ही नहीं उसके गांव के सारे लोग इन स्थितियों को शहीद की याद से सौदेबाजी मानते हैं। हद तो यह है कि सरकार और उसके तंत्र के पास बलजीत की प्रतिमा की टूट चुकी रायफल को दुरुस्त कराने का वक्त और पैसा भी नहीं है, जिसकी सजीव रायफल ने कारगिल विजय दिलाई थी। यह प्रतिमा भी परिजनों के अपने खर्च व ग्रामीणों के प्रयास का नजीता है।

नवाबगंज गांव के लोग जुलाई 1999 की तारीख कभी नहीं भूलते। ये वो दिन था जबकि पाकिस्तानी सेना की हमलावर घुसपैठ को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना के जवान जान की बाजी लगाकर कारगिल में संघर्ष कर रहे थे। कई दिन के इस संघर्ष में नवाबगंज का बेटा बलजीत भी अपनी जिंदगी का दाव खेल रहा था। अपनी रायफल के जौहर से उसने कई पाकिस्तानी सैनिक ढेर किएऔर नौ जुलाई 99 को देश की आन के लिए खुद भी शहीद हो गया। सिख रेजीमेंट के जवान और नवाबगंज निवासी करनैल सिंह के पुत्र बलजीत सिंह की पार्थिव देह पूरे सम्मान के साथ गांव लायी गई। वीरगति प्राप्त बलजीत की सम्मान के साथ अंत्येष्टि हुई तो उसके सम्मान को हमेशा कायम रखने के लिए केंद्र व राच्य सरकार के स्तर से तमाम घोषणाओं की झड़ी लगा दी। दुखद यह है कि देश के लिए काम आने वाले इस जवान के नाम देश के तंत्र ने कोई काम नहीं किया। लगभग 14 साल का वक्त गुजरने के बाद भी शहीद बलजीत के नाम व उसके परिजनों का मनोबल बढ़ाने के लिए घोषित हुए काम अधूरे हैं।

शहीद बलजीत सिंह के बड़े भाई रंजीत सिंह बताते हैं कि केंद्र व राच्य सरकार के स्तर से आर्थिक सहायता समेत जो घोषणाएं हुई थीं वो धोखा साबित हुई हैं। घोषणाएं सच में बदलवाने की उम्मीद से काफी भाग दौड़ भी की, लेकिन एक पर काम तो दूर गौर तक नहीं किया गया। परिजनों ने खुद पौने दो लाख खर्च करके बलजीत की प्रतिमा लगवाई और पार्क का सौंदर्यीकरण कराया। सरकारी उपेक्षा के कारण शहीद की प्रतिमा के हाथों में मौजूद रायफल (एके-47) भी टूटी स्थिति में है। स्थानीय अधिकारियों ने इसकी मरम्मत की भी जरूरत नहीं समझी। शहीदी दिवस पर कोई अफसर क्या कर्मचारी भी यहां श्रद्धांजलि देने नहीं पहुंचता। गांव के अन्य लोग भी कारगिल शहीद के नाम घोषणाओं को सरकार की सौदेबाजी की संज्ञा देते हैं। सवाल उठाते हैं जब बलजीत की याद में बने पार्क की रंगाई-पुताई व मरम्मत सरकारी तंत्र नहीं कराता तो और क्या उम्मीद की जा सकती है।

ये थीं घोषणाएं-

* दो बीघा जमीन में शहीद बलजीत के नाम पार्क विकसित करना।

* परिजनों को पेट्रोल पंप का लाइसेंस जारी करना।

* गांव के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का नाम शहीद बलजीत सिंह के नाम पर रखना।

* ग्राम चकफेरी-नबावगंज मार्ग का नाम शहीद बलजीत सिंह मार्ग रखना।

* केंद्र से दस जबकि प्रदेश सरकार से परिजनों को पांच लाख सहायता देना।

कराएंगे पार्क व प्रतिमा की मरम्मत

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव एवं क्षेत्रीय विधायक संजय कपूर ने शहीद बलजीत सिंह की प्रतिमा एवं पार्क की मरम्मत कराने का आश्वासन दिया है। शहीद के भाई ने बताया कि बलजीत सिंह के शहीदी दिवस पर गांव स्थित गुरुद्वारे मे भोग डाला जाएगा और लंगर होगा। यह सिलसिला परिजन पिछले कई सालों से करते आ रहे हैं।

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