वोटिंग से होगा एफडीआइ पर फैसला
आखिरकार संप्रग सरकार को विपक्ष की जिद के सामने झुकना पड़ा। खुदरा क्षेत्र [रिटेल] में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] पर लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारियों ने मतदान के नियमों के तहत बहस की मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही गत 22 नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष का गतिरोध खत्म हो गया। संसद में अपने पक्ष में आंकड़ों का जुगाड़ करने के बाद सरकार इसके लिए तैयार तो हो गई है, लेकिन समाजवादी पार्टी के विरोधाभासी बयान और बसपा की तरफ से शर्त रखे जाने से उसके लिए सदन प्रबंधन चुनौतीपूर्ण जरूर हो गया है। अब अगले हफ्ते दोनों सदनों में एफडीआइ पर सत्ता पक्ष और विपक्ष का शक्ति परीक्षण देखने लायक होगा।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। आखिरकार संप्रग सरकार को विपक्ष की जिद के सामने झुकना पड़ा। खुदरा क्षेत्र [रिटेल] में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] पर लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारियों ने मतदान के नियमों के तहत बहस की मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही गत 22 नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष का गतिरोध खत्म हो गया। संसद में अपने पक्ष में आंकड़ों का जुगाड़ करने के बाद सरकार इसके लिए तैयार तो हो गई है, लेकिन समाजवादी पार्टी के विरोधाभासी बयान और बसपा की तरफ से शर्त रखे जाने से उसके लिए सदन प्रबंधन चुनौतीपूर्ण जरूर हो गया है। अब अगले हफ्ते दोनों सदनों में एफडीआइ पर सत्ता पक्ष और विपक्ष का शक्ति परीक्षण देखने लायक होगा।
लोकसभा में चार दिसंबर को नियम 184 और राज्यसभा में 5 दिसंबर को नियम 168 के तहत चर्चा के बाद मतदान होगा। लोकसभा में मतदान के साथ चर्चा के नियम पर सरकार गुरुवार सुबह ही मान गई, लेकिन राज्यसभा में वह विपक्ष को चर्चा के लिए मनाने की कोशिश आखिरी समय तक करती रही। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा, 'अध्यक्ष मीरा कुमार ने नियम 184 के तहत चर्चा का हमारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है, इसलिए अब हमें कोई शिकायत नहीं है।' राज्यसभा में सिर्फ चर्चा कराने पर जोर देने के सरकार के रुख से सदस्य नाराज हो गए और उन्होंने हंगामा किया। सदन में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने संसदीय कार्य मंत्री से स्पष्ट कह दिया कि वह भी बिना वोटिंग के चर्चा के लिए नहीं मानेंगे। गतिरोध तोड़ने के लिए राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को सभी दलों की बैठक बुलानी पड़ी। अंतत: सरकार झुकी और मतदान के नियम के तहत चर्चा के लिए राजी हो गई। लेकिन, अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकारियों के लिए प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर बसपा के हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही नहीं चल सकी।
वास्तव में यह मुद्दा कांग्रेस के प्रबंधकों के लिए दोनों सदनों में आंकड़ों का गणित जुटाने में भी चुनौती बन गया है। बसपा की इस मांग को मानने पर सपा नाराज हो रही है। सपा ने दोहरा बयान देकर सरकार के सामने मुश्किलें भी खड़ी कर दी हैं। लोकसभा में तो वह सरकार को समर्थन देने की बात कर रही है, लेकिन राज्यसभा में वह खिलाफ वोट करने की धमकी दे रही है। ऐसे में सपा-बसपा को नए सिरे से साधने की कवायद सरकार के प्रबंधकों ने शुरू कर दी है। छोटे-छोटे दलों और निर्दलीयों से भी सरकार के प्रबंधक बात कर रहे हैं। सरकार की नजरें इस बात पर भी हैं कि तृणमूल कांग्रेस इस मुद्दे पर भाजपा और वामदलों के साथ सरकार के खिलाफ वोट करेगी या बहिर्गमन। आंकड़ों का गणित उसके लिए लोकसभा से ज्यादा राज्यसभा में संवेदनशील है।
लोकसभा में
एफडीआइ के साथ-257
अधर में सपा [22] बसपा [21]- 43
एफडीआइ के विरोध में-244
बहुमत के लिए जरूरी-272
कुल सीटें-545, मौजूदा संख्या- 544
राज्यसभा में
एफडीआइ के साथ-95
एफडीआइ के खिलाफ-113
अधर में सपा [9] बसपा [15]-24
मनोनीत सदस्य-12
बहुमत के लिए जरूरी-123
कुल सीटें-245, मौजूदा संख्या-244
[वोटिंग के समय एफडीआइ विरोधी-समर्थक कुछ दलों के रवैये में बदलाव संभव]
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