गुमनाम महिलाओं को फिर से नाम दे रहा गूगल का 'डूडल'
इंटरनेट पर मौजूद कुछ समूहों ने इधर एक अरसे से अनेक सार्थक पहलकदमियां की हैं जिनसे भारत की कई गुमनाम महिलाओं का योगदान रेखांकित होने लगा है।
नई दिल्ली [मनीषा सिंह]।अक्सर इंटरनेट पर महिलाओं की चर्चा ज्यादातर नकारात्मक मामलों में होती है। इनमें महिलाएं या तो प्रताड़ित हैं, उन्हें साइबर हिंसा, र्दुव्यवहार और पोर्न जैसी चीजों का सामना करना पड़ता है या फिर वे यहां उपेक्षित रहती हैं, पर इंटरनेट पर मौजूद कुछ समूहों ने इधर एक अरसे से अनेक सार्थक पहलकदमियां की हैं जिनसे भारत की कई गुमनाम महिलाओं का योगदान रेखांकित होने लगा है। इससे यह उम्मीद जगी है कि इंटरनेट को लेकर भारतीय स्त्रियों में जो हिचक है, वह टूटेगी और इस पर वे अपनी सकारात्मक उपस्थिति दर्ज करा पाएंगी। खास तौर से इस मामले में इंटरनेट के प्रमुख सर्च इंजन गूगल के प्रयास उल्लेखनीय हैं जो बीते एक वर्षो में काफी मुखर होकर सामने आए हैं। हाल की पहलों की बात करें तो अप्रैल के पहले हफ्ते में गूगल ने अपने मुख्य पेज (होम पेज) पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता कमलादेवी चट्टोपाध्याय की 115वीं जयंती पर डूडल (अंग्रेजी के गूगल शब्द के स्थान पर चित्रत्मक प्रस्तुति) बनाकर उन्हें अनोखी श्रद्धांजलि दी।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय को देश में ज्यादा लोग नहीं जानते, पर जब गूगल ने उन पर तीन अप्रैल, 2018 को डूडल बनाया तो पता चला कि 1903 में कर्नाटक के मैंगलोर शहर में जन्मीं कमलादेवी देश की ऐसी पहली महिला थीं, जिन्होंने महिलाओं के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, पर्यावरण के लिए न्याय, राजनीतिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों से संबंधित गतिविधियों के लिए प्रस्ताव रखा था। यही नहीं उन्हें भारतीय नृत्य, नाटक, कला, कठपुतली, संगीत और हस्तशिल्प को संग्रह, रक्षा, और बढ़ावा देने के लिए कई राष्ट्रीय संस्थानों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भी याद किया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक अकादमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम और क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना कराने में भी उनकी भूमिका रेखांकित की जाती है।
आज की पीढ़ी के लिए जितनी अपरिचित कमलादेवी हैं, उतनी ही अनजानी देश की पहली महिला डॉक्टर रुक्माबाई हैं, जिनकी 153वीं जयंती पर नवंबर, 2017 में गूगल ने उनका खास डूडल बनाया। उनके परिचय में बताया गया कि कम उम्र में शादी हो जाने के बाद भी रुक्माबाई ने अपनी पढ़ाई पूरी की और डॉक्टर बनीं। चिकित्सा की तरह विज्ञान में भी महिलाओं को लेकर हमारे देश और समाज में वर्जना का भाव रहा है, पर जब सितंबर 2017 को गूगल ने भारतीय केमिस्ट और साइंटिस्ट असीमा चटर्जी के 100वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर सम्मानित किया तो पता चला कि ऑर्गेनिक केमेस्ट्री और मेडिसिन के क्षेत्र में उनके काम को पूरी दुनिया में सराहा गया था। बंगाल में 1917 को जन्मीं असीमा चटर्जी ने एक ऐसे दौर में कलकत्ता विश्वविद्यालय से केमिस्ट्री में ऑनर्स और विज्ञान में डॉक्टरेट की डिग्री ली थी, जब लड़कियों का घर से बाहर निकलकर पढ़ना भी अनहोनी माना जाता था।
वर्ष 1975 में इंडियन साइंस कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला असीमा को भारत सरकार ने मेडिकल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण देकर सम्मानित किया था। डूडल के जरिये गुमनामी की असंख्य परतों से बाहर निकालकर लाई गईं भारतीय महिलाओं में एक नाम भारत की प्रथम महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी का है, जिनकी 151वीं जयंती पर 15 नवंबर, 2017 को गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। असीमा चटर्जी की तरह ही कॉर्निलिया के बार में भी पता चला कि उन्होंने 1892 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की थी। हालांकि तब उन्हें यह डिग्री नहीं मिली थी, क्योंकि तत्कालीन रूढ़िवादी ब्रिटिश समाज की मान्यताओं के मुताबिक उस समय ऑक्सफोर्ड से महिलाओं को डिग्री नहीं दी जाती थी।
डिग्री नहीं मिलने के कारण वह ब्रिटेन में वकालत नहीं कर परई, लेकिन वह भारत आकर कानूनी सलाहकार बन गईं और परदे में रहने वाली महिलाओं के हक लिए लड़ीं।1ऐसी ही एक महिला हैं होमई व्यारावाला। होमई की गिनती भी भारत की उन प्रतिभाशाली महिलाओं में होती है, जिन्हें फोटोग्राफी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए शायद ही बीते दशकों में किसी ने याद किया हो, लेकिन 9 दिसंबर, 2017 को गूगल ने अपना डूडल भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमई व्यारावाला के नाम करते हुए बताया कि होमई 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर ध्वजारोहण समारोह की तस्वीरें खींचने के लिए जानी जाती हैं।
यही नहीं, फोटो आर्काइव में होमई डालडा-13 के नाम से मशहूर हैं। गुमनाम और अचर्चित भारतीय महिलाओं को सम्मान देने के साथ डूडल पर उन विदुषी महिलाओं को भी जगह दी गई, जिन्होंने भारतीय समाज और कला-साहित्य को अपने योगदान से परिपूर्ण किया। जैसे-पिछड़ों और वंचितों के हक के लिए लड़ने वाली साहित्यकार महाश्वेता देवी के जन्मदिन पर गूगल ने उन्हें डूडल के जरिये सम्मान दिया। 2017 में कई अन्य चर्चित भारतीय स्त्रियों को भी डूडल में जगह दी गई, जैसे-8 नवंबर को कथक की रानी सितारा देवी, 7 अक्टूबर को मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर तो 4 जून को बॉलीवुड की बेहतरीन अदाकारा नूतन का डूडल बहुत कलात्मक ढंग से सजाया गया।
इसी तरह 2017 की शुरुआत में 3 जनवरी को गूगल ने अपना डूडल भारत की पहली महिला सावित्रीबाई फूले को उनके 186वें जन्मदिवस के नाम समर्पित किया। यह सिलसिला 2018 में भी जारी है, खास तौर से इस साल आठ मार्च को जिस तरह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर समाज और देश के विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान को आठ तस्वीरों की एक गैलरी के जरिये दर्शाया गया, वह एक नहीं भूलने वाला डूडल था। बेशक इंटरनेट पर की जा रही इन प्रेरक पहलों का एक महत्व है, क्योंकि इनके जरिये न सिर्फ जानी-पहचानी शख्सियतों को नई पहचान मिल रही है, बल्कि उन गुमनाम, लेकिन सशक्त योगदान के बल पर समाज को प्रभावित करने वाली भूली-बिसरी महिलाओं को उनका यथोचित सम्मान दिलाने का भी प्रयास किया जा रहा है। अब यह हमारे समाज, देश और सरकार पर है कि वे कैसे इन सभी महिलाओं को अपनी स्मृति में जगह दे पाते हैं।
[सामाजिक मामलों की विशेषज्ञ]