पटरी पर दौड़ती नहीं उड़ान भरती थी ये ट्रेन, आज मना रही गोल्डन जुबली
इस ट्रेन ने भारतीय रेल को हाई स्पीड ट्रेनों के परिचालन के लिए 50 साल पहले ही राह दिखा दी थी।
धनबाद, [तापस बनर्जी]। देश की पहली राजधानी एक्सप्रेस (नई दिल्ली-हावड़ा) की शुरुआत एक मार्च एक मार्च 1969 को हुई थी। यह ट्रेन आज अपने गोल्डन जुबली वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। तब ट्रैक पर आम गाड़ियां जहां रेंगती थी, वहीं राजधानी मानो उड़ान भरती थी।
यह एक ऐसी ट्रेन थी, जिसमें लाउंज था और उसमें बैठकर मुसाफिर न केवल मैग्जीन पढ़ते थे, बल्कि मनोरंजन के लिए गुलाम और इक्के के ताश के खेल का दौर भी चलाते थे। इन सुविधाओं के लिए अलग से अपनी जेब हल्की नहीं करनी पड़ती थी। रेलवे अपने यात्रियों के सत्कार के लिए यह सुविधा निशुल्क मुहैया कराती थी। 1 मार्च 1969 को यह ट्रेन नई दिल्ली से हावड़ा के लिए चली थी तो 3 मार्च 1969 को हावड़ा से नई दिल्ली के बीच इस ट्रेन का परिचालन शुरू हुआ था।
देश को मिली थी तेज रफ्तार की शानदार ट्रेन
राजधानी एक्सप्रेस को पटरी पर उतारने के लिए उस दौर में कई पेचीदगियों से गुजरना पड़ा था। योजना कोलकाता और नई दिल्ली सरीखे मेट्रो शहरों को आपस में तेज रफ्तार से जोड़ने वाली ट्रेन से कनेक्ट करने की थी। उस जमाने में सवारी गाड़ी, मेल और एक्सप्रेस के दौर में एकाएक 140 किमी प्रति घंटा वाली ट्रेन चलाना चुनौतियों भरा था। हालांकि, चुनौतियों के बाद भी राजधानी पटरी पर उतरने में कामयाब रही। इस ट्रेन ने भारतीय रेल को हाई स्पीड ट्रेनों के परिचालन के लिए तभी राह दिखा दी थी।
सीट के साथ कॉल बेल, खिड़की दरवाजों पर पर्दे
राजधानी के पुराने रैक में कई खूबियां भी थी, जो अब नहीं हैं। खास तौर पर सीट के साथ रात्रि लैंप और कॉल बेल भी लगी होती थी। कॉल बेल से जरूरत पड़ने पर अटेंडेंट को बुलाया जाता था। केबिन और कूपा में लॉकवाले दरवाजे के साथ पर्दे लगे होते थे। फर्श पर कॉरपेट होने के साथ चौड़ी खिड़कियों में पर्दे लगे होते थे। एसी फर्स्ट में तीन केबिन होते थे। प्रत्येक में चार बर्थ और दो बर्थ वाले तीन कूपे होते थे। एसी चेयर कार में बैठने की 71 सीटें थीं। उस दौर में इस ट्रेन में सफर के लिए फर्स्ट क्लास में 280 और चेयर कार में 90 रुपये चुकाने पड़ते थे।
पहले था गोमो, 1971 में मिला धनबाद में ठहराव
राजधानी का पहले गोमो में तकनीकी ठहराव था। यहां ट्रेन रुकती थी। पर, यात्रियों को सवार होने की अनुमति नहीं थी। मुगलसराय और कानपुर सेंट्रल में पानी भरने के लिए राजधानी रुकती थी। अप्रैल 1971 में गोमो से हटाकर धनबाद में कॉमर्शियल ठहराव पर मुहर लगी थी।
तब ट्रैक पर उड़ान भरती थी राजधानी
राजधानी एक्सप्रेस ने पहली बार 1 मार्च 1969 को रेलवे ट्रैक पर उड़ान भरी थी। हम इसे उड़ान भरना इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि जिस स्पीड से उस समय यह गाड़ी चली, उसके बारे में शायद ही कोई आम व्यक्ति ने सोचा होगा। उस समय इस ट्रेन की रफ्तार एक तरह से उड़ान जैसी ही थी कम से कम सपनों की उड़ान तो कह ही सकते हैं। एक मार्च को नई दिल्ली से शाम 5.30 पर खुलकर दूसरे दिन सुबह 10.50 बजे यह ट्रेन हावड़ा पहुंची थी। इसके बाद 3 मार्च 1969 को हावड़ा से नई दिल्ली के बीच शुरू हुआ था परिचालन। हावड़ा से शाम पांच बजे खुलकर दूसरे दिन सुबह 10.20 पर नई दिल्ली पहुंची थी। उस समय यह ट्रेन सप्ताह में दो बार चलती थी। हावड़ा से बुधवार व शनिवार एवं नई दिल्ली से सोमवार व शुक्रवार को चलती थी राजधानी। अगस्त 1972 में हावड़ा राजधानी का परिचालन नियमित हुआ था।