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Glorious 50 Years of BSF : ‘लक्ष्य, निश्चय, विजय’ है बीएसएफ आर्टिलरी विंग का जयघोष

अंग्रेजी अक्षर समूह ‘बीएसएफ’ दुश्मनों के लिए दहशत और भारतीयों के लिए देशभक्ति का पर्याय है) ने न केवल गुजरात में पाकिस्तानी आक्रमण से अपनी सरहदों की बखूबी हिफाजत की बल्कि भारतीय सशस्त्र सेनाओं के कंधे से कंधा मिलाते हुए पूर्वी पाकिस्तान में अप्रतिम शौर्य का परिचय दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 09:36 AM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 09:36 AM (IST)
Glorious 50 Years of BSF : ‘लक्ष्य, निश्चय, विजय’ है बीएसएफ आर्टिलरी विंग का जयघोष
बीएसएफ आर्टिलरी की स्थापना 1 अक्टूबर 1971 को हुई थी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, लेकिन भारत मां के सपूतों के इस अप्रतिम संगठन की सिंहगर्जना अपनी स्थापना के मात्र तीन महीनों के भीतर अंतरराष्ट्रीय पटल पर सुनाई दे रही थी। यह 1971 का वर्ष था जब पूरी दुनिया ने देशसेवा का वह जज्बा देखा कि भारत भूमि की सीमाओं की सुरक्षा के लिए नवगठित ‘सीमा सुरक्षा बल’ (जिसके संक्षिप्ताक्षर से अधिक उपनाम के रूप में प्रसिद्ध हुआ अंग्रेजी अक्षर समूह ‘बीएसएफ’ दुश्मनों के लिए दहशत और भारतीयों के लिए देशभक्ति का पर्याय है) ने न केवल गुजरात में पाकिस्तानी आक्रमण से अपनी सरहदों की बखूबी हिफाजत की बल्कि भारतीय सशस्त्र सेनाओं के कंधे से कंधा मिलाते हुए पूर्वी पाकिस्तान में अप्रतिम शौर्य का परिचय दिया।

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यह वह वर्ष था जब दुनिया ने भारतीय उपमहाद्वीप के भूगोल और इतिहास को बदल देने वाली दो घटनाएं देखीं। बांग्लादेश का जन्म और बीएसफ का पराक्रम! पाकिस्तान की क्रूरता से बंगभूमि को मुक्ति दिलाने वाली इस संघर्ष गाथा में बीएसएफ की आर्टिलरी विंग का अनुपम योगदान था, वर्तमान वर्ष 2020 में जिसकी स्थापना की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। खामोशी से काम करने वाले सीमा सुरक्षा बल का यह तोपखाना भी चुपचाप काम करने में यकीन रखता है, लेकिन जब इसके गोले गिरते हैं तो दुश्मन की किलेबंदी ही नहीं मंसूबे भी नेस्तानाबूद हो जाते हैं।

कच्छ से लेकर कारगिल तक दुश्मन को दिए इसके जख्मों की कोई गिनती नहीं है। ठीक उन्हीं अनगिनत रातों की तरह, जब सर्द रेगिस्तान और बियाबान जंगलों-पहाड़ियों में सीमा सुरक्षा बल के जवान लगातार सतर्कतापूर्वक गश्त लगाते रहते हैं कि दुश्मन की सीमा से भारत की सरहदों की तरफ परिंदा भी पर न मार पाए। दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा बल बीएसएफ ने अपनी चार भुजाओं यानी चार विंग के घेरों में देश की सीमा को दुश्मनों के नापाक इरादों से बचाकर रखा है। बेशक यह बल सुरक्षा के लिए देश की सीमा पर तैनात रहता है, लेकिन इसका प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र है मध्य प्रदेश की धरती। तो आइए चलते हैं उस वीरभूमि पर जहां तैयार होते हैं बीएसएफ के जांबाज।

तैयार किए जा रहे वीर सपूत

लगभग आठ साल पहले तक ग्वालियर की टेकनपुर अकादमी आर्टिलरी विंग का मुख्य केंद्र थी। अब इसे यहां से शिफ्ट कर दिया गया है लेकिन आज भी यह बीएसएफ जवानों के प्रशिक्षण का मुख्य केंद्र है। यही नहीं, पुलिस से लेकर कमांडो, एसटीएफ, क्राइम ब्रांच, सशस्त्र सुरक्षा बल सहित अलग-अलग राज्यों की फोर्स यहां विशेष प्रशिक्षण लेती हैं। बीएसएफ का दूसरा प्रशिक्षण केंद्र मध्य प्रदेश के ही दूसरे छोर इंदौर में स्थित है। इंदौर के बीएसएफ सीएसडब्ल्यूटी केंद्र में स्नाइपर्स और अंतरराष्ट्रीय शूटर तैयार होते हैं। गौरव की बात यह भी है कि बीएसएफ यहां एक संग्रहालय विकसित कर रहा है, जहां ऐतिहासिक मौकों पर इस्तेमाल किए गए हथियारों को संरक्षित किया जा रहा है। यहां बीएसएफ द्वारा तैयार रॉकेट का आवरण भी शामिल है।

सटीक निशाना और दुश्मन ढेर

वर्तमान में इंदौर के रेवती रेंज पर स्थित बीएसएफ केंद्र की पहचान भारत और मित्र देशों से आए सेना व पुलिस जवानों को दी जाने वाली स्नाइपर्स ट्रेनिंग के लिए हो रही है। यहां हर साल 100 से ज्यादा जवानों को स्नाइपर ट्रेनिंग मिलती है। इसके अलावा बीएसएफ की रेवती रेंज में प्रैक्टिस कर अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई शूटर तैयार हुए हैं। बीएसएफ सीएसडब्ल्यूटी में हर साल स्नाइपर ट्रेनिंग के दो कोर्स बीएसएफ जवानों के लिए होते हैं। इसके अलावा यहां हर वर्ष एक हजार से ज्यादा बीएसएफ अधिकारी व जवानों को पिस्टल, इंसास, एलएमजी, एके 47, 51 एमएम मोर्टार, सीजीआरएल चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। रेवती रेंज में बीएसएफ की अंतरराष्ट्रीय स्तर की 10 मीटर एयर पिस्टल रेंज बनी हुई है। यहां बीएसएफ सेंट्रल शूटिंग टीम द्वारा अभ्यास किया जाता है। घना जंगल हो या मरुस्थल या फिर बर्फीली चोटियां, ये जवान यहां दुश्मनों की आंखों में धूल झोंकते हुए लक्ष्य तक पहुंचने की कला बखूबी सीखते हैं।

उपद्रव रोकने के उत्पाद

टेकनपुर स्थित अश्रु गैस इकाई (टियर गैस यूनिट) में दंगा विरोधी म्यूनिसन उत्पादों का निर्माण किया जाता है। ये उत्पाद सुरक्षा बलों में भेजे जाते हैं। इसकी स्थापना 1976 में हुई थी। शुरुआत में यह इकाई चार उत्पाद ही बनाती थी लेकिन अब यह 74 तरह के उत्पाद बना रही है।

विश्वप्रसिद्ध है डॉग स्क्वॉड

ग्वालियर के टेकनपुर स्थित बीएसएफ अकादमी का डॉग स्क्वॉड प्रशिक्षण केंद्र भी खासे रोमांच का केंद्र है। सीमा पर दुश्मनों से रक्षा ही नहीं, देश की अंदरूनी कठिनाइयों में मदद के लिए भी अलग-अलग नस्ल के कुत्ताें को इस केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है। कोरोना काल में भी यह प्रशिक्षण निर्बाध चलता रहा। पिछले छह माह में यहां से 95 जांबाज कुत्तों की स्क्वॉड तैयार कर विभिन्न राज्यों से लेकर संसद की सुरक्षा तक के लिए भेजी गई। हाल ही में यहां के कुछ कुत्तों को प्रशिक्षण के बाद सुंदरवन, बंगाल में वन्यजीव अपराध को रोकने के लिए जलपाइगुड़ी भेजा गया है। यहां जर्मन शेपर्ड के साथ बेल्जियन मेलिनॉइस नस्ल के कुत्ताें को भी प्रशिक्षित किया जाता है। ओसामा बिन लादेन को मार गिराने वाले अमेरिकी सैन्य अभियान में इसी नस्ल की सेवाएं ली गई थीं।

देश की सरहदों के रखवाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भारतभूमि को दुश्मनों के नापाक इरादों से हमेशा ही बचाया है। गौरवपूर्ण इतिहास के साथ इसकी आर्टिलरी विंग ने इसी अक्टूबर माह में पचासवें साल में रखा है अपना मजबूत कदम..

देश की सीमा रक्षा में चहुंओर सतर्क रहने के उद्देश्य से बीएसएफ ने अपना विस्तार चार क्षेत्रों में किया है। ये हैं- बीएसएफ मेन विंग, एयर विंग, वॉटर विंग, आर्टिलरी विंग..

1966 में बीएसएफ प्रशिक्षण केंद्र और स्कूल के तौर पर शुरु हुई थी ग्वालियर की टेकनपुर अकादमी। 2923 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली इस अकादमी को केएफ रुस्तम ने स्थापित किया था। बीएसएफ आर्टिलरी की स्थापना 1 अक्टूबर 1971 को हुई थी। यह सीमा पर तैनात बीएसएफ के जवानों के सहयोग के लिए शुरू की गई थी। ब्रिगेडियर आर.पी. मित्तल इसके पहले डीआईजी कमांडर थे। 

1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौरान गुजरात में बीएसएफ आर्टिलरी ने बीएसएफ बटालियन को विंगूर और विरावाह क्षेत्रों में सुरक्षा प्रदान की थी। इस युद्ध में डीसी आर्टिलरी श्री जोगिंदर सिंह को उनके शौर्य के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इसी क्रम में 2 पीजीए के श्री के.जे. ठाकुर को सेना मेडल दिया गया था। 7 से 14 दिसंबर 1971 के बीच नवाबगंज, बांग्लादेश में भी बीएसएफ आर्टिलरी ने अदम्य साहस का परिचय दिया था।

ग्वालियर से वरुण शर्मा, इंदौर से उदयप्रताप सिंह


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