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ग्लोबल वॉर्मिंग का पड़ने लगा धरती पर असर, गर्मी बढ़ने से लगातार पिघल रही ध्रुवीय बर्फ; खतरे में सूक्ष्मजीव

गर्मी और तापमान बढ़ने से ध्रुवीय इलाके की बर्फ लगातार पिघल रही है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 10:41 AM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 10:41 AM (IST)
ग्लोबल वॉर्मिंग का पड़ने लगा धरती पर असर, गर्मी बढ़ने से लगातार पिघल रही ध्रुवीय बर्फ; खतरे में सूक्ष्मजीव
ग्लोबल वॉर्मिंग का पड़ने लगा धरती पर असर, गर्मी बढ़ने से लगातार पिघल रही ध्रुवीय बर्फ; खतरे में सूक्ष्मजीव

नई दिल्ली, प्रेट्र। ग्लोबल वार्मिग के कारण आर्कटिक जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में रहने वाले सूक्ष्मजीवों के आवास खतरे में हैं। हाल ही में प्रकाशित हुए दो अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने बताया है कि इन क्षेत्रों में अब उष्कटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले सूक्ष्मजीवों की घुसपैठ बढ़ गई है, जिसके कारण पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है।

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सेल नामक जर्नल में प्रकाशित हुए इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने विश्व के महासागरों से 35 हजार से ज्यादा नमूने एकत्र किए। इस अध्ययन में फ्रांस के इंस्टीट्यूट डी बायोलॉजी डी ईकोल नॉर्मल सुपीरिअर (आइबीएएनएस) के शोधकर्ता भी शामिल थे। आइबीएएनएस के क्रिस बॉलर ने कहा, 'अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि पृथ्वी के महासागरों में रहने वाले सूक्ष्म जीवों की विविधता उच्च अक्षांशों (ध्रुवों के पास) पर सबसे कम है और भूमध्य रेखा के आस-पास ज्यादा है।'

दोनों अध्ययनों ने इन सूक्ष्मजीवों की विविधता का आकलन समुद्र से एकत्र किए गए नमूनों में किया, ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि इनका समुदाय खुद को कैसे बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल कर लेता है। शोधकर्ताओं ने कहा, ‘ दो अध्ययनों में से एक प्लैंकटन (प्लवक) नामक सूक्ष्म समुद्री जीवों के समूहों की विविधता पर केंद्रित है और दूसरे में विश्वभर के महासागरों में सूक्ष्मजीवों के जीन की गतिविधि के पैटर्न का आकलन किया।

आइबीएएनएस के शोधकर्ता और ‘प्लैंकटन अध्ययन’ के सह-लेखक लूसी जिंजर ने कहा, हमारे अध्ययन ने प्लैंकटन पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’ एक बयान में उन्होंने कहा कि प्लैंकटन बैक्टीरिया, आर्किया, जानवरों और पौधों के प्रतिनिधि भी होते हैं। लेकिन इस विविधता के एक बड़े हिस्से को हम नग्न आंखों से नहीं देख पाते।’

अक्षांशों के विस्तार के साथ कम होती जाती है विविधता

जिंजर ने कहा, ‘ अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि पूरी पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्लैंकटन के समूहों की विविधता अक्षांशों के साथ-साथ कम होती चली जाती है। भूमध्य रेखा पर इनके समूहों की सर्वाधिक विविधता पाई जाती है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में यह काफी कम हो जाती है। इसका मुख्य कारण समुद्र का बढ़ता तापमान है। जलवायु परिवर्तन के कारण शीतोष्ण और ध्रुवीय जल में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्लवक मिलने की संभावना अब बढ़ गई है।’

खुद को परितंत्र के लिए अनुकूल बना रहे हैं सूक्ष्म जीव

दूसरे शोध में शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि कैसे अलग-अलग क्षेत्रों में इनकी कोशिकाएं काम करती हैं। इसमें विश्वभर के महासागरों में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों के जीनों की गतिविधियों के पैटर्न का अध्ययन किया गया है। स्विटजरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख की शोधकर्ता और अध्ययन की वरिष्ठ लेखक शिनिची सुनगावा ने कहा, ‘हमारे लिए यह निर्धारित करना ही महत्वपूर्ण नहीं है कि वहां कौन से सूक्ष्मजीव मौजूद हैं बल्कि यह पता लगाना भी जरूरी है कि वे कौन से सूक्ष्मजीव हैं जो प्रकाश संश्लेषण जैसी प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।’

सुनगावा ने कहा कि अध्ययन के दौरान हमने कई ऐसे सूक्ष्मजीव पाए जो पृथ्वी और गर्म क्षेत्रों में रहते थे, लेकिन अब ठंडे इलाकों में भी रहने लगे हैं। इसका मतलब है कि समुद्र का परितंत्र भी लगातार बदल रहा है और सूक्ष्मजीव खुद को इसके अनुकूल बना रहे हैं।


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