नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। "कभी, कभी, कभी हार मत मानो।" ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अपने देश में आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह बात कही थी। वक्त बदला, दौर बदला, दुनिया बदली, वजहें बदलीं पर खुदकुशी की समस्या पूरी दुनिया में कायम है। कभी कर्ज से परेशानी, कभी बेरोजगारी, कभी प्यार में नाकामी और कभी यूं ही किसी छोटी-बड़ी बात पर लोग जिंदगी का साथ छोड़ मौत को चुन लेते हैं। पर आत्महत्याएं रोकी जा सकती हैं। दुनिया के कई देशों ने इसके लिए प्रयास किए और उन्हें सफलता भी मिली। आइए समझते हैं कि उन देशों ने आखिर ऐसा क्या किया कि लोगों में खुदकुशी के ख्याल आने कम हो गए। ऐसी कोशिश हम भी कर सकते हैं ताकि किसी मां को यह न लगे कि उसकी ममता में कमी तो नहीं रह गई, या किसी पिता को यह न लगे कि मैंने उसे उस दिन क्यों डांटा था।

दक्षिण कोरिया में हालात सबसे बदतर

दुनिया में आठ लाख लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करते हैं। यानी हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति खुदकुशी करता है। अवर वर्ल्ड इन डाटा के अनुसार विश्व में 2017 में होने वाली मौतों में से 1.4 प्रतिशत मौतों की वजह आत्महत्या थी। कुछ देश ऐसे हैं जहां आत्महत्या से होने वाली मौत का आंकड़ा काफी है। दक्षिण कोरिया में 2017 में पांच फीसदी मौत की वजह खुदकुशी थी। कतर में 3.9 फीसदी और श्रीलंका में 3.6 फीसदी मौत की वजह आत्महत्या है। ग्रीस और इंडोनेशिया की स्थिति इस मामले में बेहतर है। वहां कुल मौतों में क्रमश: 0.4 फीसदी और 0.5 फीसदी का कारण आत्महत्या है।

दुनिया में आत्महत्या की दर

वैश्विक स्तर पर देखें तो 2017 में एक लाख में से 10 लोगों ने आत्महत्या की थी। आत्महत्या दर की बात करें तो पूर्वी यूरोप, दक्षिण कोरिया, जिम्बाब्वे, गुयाना और सूरीनाम में एक लाख में से 20, उत्तरी अफ्रीका, मध्य एशिया, इंडोनेशिया, पेरू और कुछ भूमध्यसागरीय देश में आत्महत्या की दर एक लाख में पांच है।

हर उम्र के लोगों में बढ़ी आत्महत्या

आजकल हर उम्र के लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है। कम उम्र के किशोर से लेकर महिलाएं, युवा और बुजुर्ग भी आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, दुनिया में 79 फीसदी आत्महत्या निम्न और मध्यवर्ग वाले देशों के लोग करते हैं। इसके पीछे बेरोजगारी और आर्थिक परेशानी मुख्य वजह है।

इंग्लैंड में सुसाइड के मामले हुए कम

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड में आत्महत्या के मामलों में कमी आई है। वहां अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में सुसाइड रेट गिरा है। खास तौर से पुरुषों के आत्महत्या करने की दर में गिरावट आई है। जो लोग मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं ले रहे हैं उनमें भी सुसाइड की दर कम हुई है। इंग्लैंड में एक दौर ऐसा था जब 15 से 19 साल के बच्चों में आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ रही थी। इसे देखते हुए 2016 में वहां आत्महत्या को 2020 तक 10 फीसद कम करने का लक्ष्य तय किया गया। इसके लिए एक नीति बनाई गई जिसके प्रभाव देखने में आ रहे हैं। इस सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं।

पहला प्रमुख कारण है कि कारोबारियों, शिक्षाविदों और सरकारी विभागों से इसे व्यापक समर्थन मिला। इसे रोकने के लिए लोगों ने दिल खोलकर दान भी दिया। दूसरा, ऐसे परिवार इसे रोकने के लिए सामने आए जो इस पीड़ा से गुजर चुके हैं। तीसरा, इसका डाटा लगातार अपडेट किया गया। चौथा, राष्ट्रीय एजेंसियों जैसे नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर एक्सीलेंस (एनआईसीई) और पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) के साथ साझेदारी की गई। एनआईसीई डिप्रेशन पर क्लीनिकल गाइडेंस जारी करता है। कम्युनिटी केयर, साइकोलॉजिकल थेरेपी और अवसाद को कम करने के लिए एक विस्तृत नीति भी लाई गई। यहां अकेलेपन की समस्या से निपटने के लिए अलग मंत्रालय बनाया गया है। मंत्रालय बनाने वाला पहला यह देश है। इसने वर्ष 2018 में इस मंत्रालय का गठन किया था।

स्कॉटलैंड की नीति से कम हुए मामले

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार स्कॉटलैंड सरकार नेशनल हेल्थ सर्विसेज, सोशल सर्विसेज, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर आत्महत्या के मामलों में कमी लाने के प्रयास किए। इसके लिए स्कॉटलैंड में चूज लाइफ स्ट्रैटेजी एंड एक्शन प्लान (2002-2013) और सुसाइड प्रिवेंशन स्ट्रैटेजी (2013-16) को लागू किया गया। स्कॉटलैंड सरकार का एवरी लाइफ मैटर्स अभियान अगस्त 2018 में लांच किया गया। बता दें कि स्कॉटलैंड में 2002-2006 और 2013-2017 के दौरान आत्महत्या की दर में 17 फीसद की गिरावट आई है। बीते तीस सालों से स्कॉटलैंड में आत्महत्या की दर डब्ल्यूएचओ यूरोपियन रीजन के 53 देशों के औसत से कम है।

विजन जीरो पॉलिसी से स्वीडन में सफलता

2008 में स्वीडन की संसद ने आत्महत्या की रोकथाम के लिए सुसाइड प्रिवेंशन प्रोग्राम शुरू किया। इस प्रोग्राम का नाम विजन जीरो पॉलिसी रखा गया। इसका मकसद था कि कोई भी व्यक्ति ऐसी स्थिति में न आए कि उसे आत्महत्या करनी पड़े। स्वीडन में सुसाइड प्रिवेंशन के लिए पहला प्रोग्राम 1995 में लाया गया। दूसरा नेशनल सुसाइड प्रिवेंशन प्रोग्राम स्वीडन की पब्लिक हेल्थ एजेंसी और नेशनल बोर्ड ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर ने तैयार किया। इसे 2008 में स्वीडन की संसद ने बदला और विजन जीरो पॉलिसी लागू की। इसके तहत वंचित वर्गों को जीवन के बेहतर अवसर मुहैया कराए गए। शराब का सेवन कम किया गया। आत्महत्या की मुख्य वजहों को जानने के साथ उसके निदान की कोशिश की गई। इसमें स्वयंसेवी संस्थाओं की भी मदद ली गई।

कोरिया और श्रीलंका में की गई यह पहल

आत्महत्या पर श्रीलंका में किया गया सर्वे सबसे अधिक प्रभावी माना गया। वहां प्रतिबंधों की लंबी लिस्ट के कारण आत्महत्या में 70% गिरावट आई और 1995 से 2015 के बीच अनुमानित 93,000 लोगों की जान इनके चलते बच गई। कोरिया गणराज्य ने भी इस दिशा में सफलता हासिल की है, जहां 2000 के दशक में बड़ी संख्या में पैराक्वाट कीटनाशक से आत्महत्या हुईं लेकिन 2011-2012 में पैराक्वाट पर प्रतिबंध के बाद 2011 और 2013 के बीच कीटनाशक से आत्महत्या में कमी आई थी।

जापान में नया मंत्रालय

जापान में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के चलते एक नया मंत्रालय बनाया गया है। यह कदम देश में आत्महत्या की दर बढ़ने पर उठाया गया। जापान में 11 वर्षों बाद पहली बार कोरोना महामारी के दौरान आत्महत्या की दर बढ़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वहां 2020 में करीब सात हजार महिलाओं ने आत्महत्या की थी। यह संख्या वर्ष 2019 की तुलना में 15 फीसद अधिक थी। यहां गत वर्ष अक्टूबर में 2,153 लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 1,765 लोगों की कोरोना से मौत हुई। खुदकुशी के पीछे अकेलापन और सामाजिक अलगाव प्रमुख कारण रहा है। कोरोना महामारी से उपजे अकेलेपन ने स्थिति को और खराब कर दिया है। साल 2020 में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे। देश में सोशल गैदरिंग को भी बैन कर दिया गया था। इससे किशोरों में अकेलेपन की समस्या बढ़ी। एक अध्ययन के अनुसार लंबे समय तक ऑनलाइन रहने के कारण किशोर अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं।