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यहां नदी के कचरे से निकल रही 'रोजगार' की धारा, हो रहे एक पंथ दो काज

रीसाइकिल किए जाने योग्य कचरे को नदी से निकाल कर छोटी-छोटी कतरनों में काटा जाता है। कतरनों को एक मशीन में डालकर पानी के साथ 2 से 3 घंटे तक चलाया जाता है और लुगदी बना ली जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 10:35 AM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 11:48 AM (IST)
यहां नदी के कचरे से निकल रही 'रोजगार' की धारा, हो रहे एक पंथ दो काज
यहां नदी के कचरे से निकल रही 'रोजगार' की धारा, हो रहे एक पंथ दो काज

भोपाल, सौरभ खंडेलवाल। 'आम के आम और गुठलियों के भी दाम' यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। इस कहावत को चरितार्थ होते देखना चाहते हैं तो चले आईए महाकाल की नगरी उज्जैन। देश के प्राचीनतम शहरों में से एक उज्जैन (उज्जयिनी) में पवित्र क्षिप्रा नदी को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ा कदम उठाया गया है। नदी किनारे पनौती के रूप में श्रद्धालुओं द्वारा छोड़े जाने वाले कपड़ों को रीसाइकल कर सरकारी फाइलें और अन्य स्टेशनरी बनाने की शुरुआत हो चुकी है। खास बात यह है कि ये फाइलें और अन्य उत्पाद बाजार में मिलने वाले उत्पादों से तीन गुना सस्ते हैं। इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट के जरिए स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को भी रोजगार मिला है।

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यह प्रोजेक्ट नगर निगम उज्जैन ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत शुरू किया है। नगरीय विकास विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल उज्जैन में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। यदि प्रयोग सफल हुआ तो प्रदेश के 378 नगरीय निकायों को फाइलों और स्टेशनरी की आपूर्ति की जाएगी। उज्जैन नगर निगम ने इससे बनने वाली फाइलों का उपयोग शुरू कर दिया है।

हर महीने होता है पांच टन कचरा जमा
उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे और नदी में स्नान करने वाले हजारों श्रद्धालु पूजा-पाठ या अन्य वजहों से कपड़े छोड़ जाते हैं। इसके अलावा मंदिरों और दफ्तरों की पुरानी स्टेशनरी मिलाकर लगभग 5 टन इस तरह का कचरा हर महीने जमा होता है। जाहिर है या तो आस्था भारी पड़ी है या फिर प्रशासन नदी में बढ़ते इस प्रदूषण पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम हुआ है।

ऐसे बनती है फाइल
रीसाइकिल किए जाने योग्य कचरे को नदी से निकाल कर छोटी-छोटी कतरनों में काटा जाता है। कतरनों को एक मशीन में डालकर पानी के साथ 2 से 3 घंटे तक चलाया जाता है और लुगदी बना ली जाती है। लुगदी को एक अन्य मशीन में डालकर पेपर शीट बनाई जाती है। पेपर शीट को प्रेस कर उसमें मौजूद पानी निकाला जाता है। फिर उसे फिनिशिंग देकर सुखा लिया जाता है और फिर फाइल कवर और पेपर बैग बनाए जाते हैं।

ढाई रुपये में बनती है एक फाइल, आठ में बेची जाएगी
नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक इस तरह का कचरा इकठ्ठा करने से लेकर फाइल बनाने तक एक फाइल पर लगभग ढाई रुपये का खर्च आता है। जबकि बाजार में एक फाइल न्यूनतम दस रुपये की मिलती है। इस पूरी यूनिट को महिला स्व-सहायता समूह संचालित करेगा। अभी एक यूनिट ने काम शुरू भी कर दिया है। हर महीने करीब पांच टन कचरे से करीब 10 हजार फाइल बनाई जाएंगी। जिसे नगर निगम और उज्जैन के स्थानीय सरकारी दफ्तरों में 8 रुपये प्रति फाइल की दर पर बेचा जाएगा।

एक यूनिट से पांच महिलाओं को रोजगार
एक यूनिट से स्व-सहायता समूह की लगभग पांच महिलाओं को रोजगार मिलेगा। एक यूनिट से होने वाले एक लाख रुपए के कारोबार में से छह-छह हजार रुपये का वेतन दिया जाएगा। इसके अलावा 15 हजार रुपये बिजली-पानी और अन्य मेंटेनेंस का खर्च रहेगा। करीब 25 हजार रुपये यूनिट की लागत होगी। लगभग 30 हजार रुपये का फायदा स्व-सहायता समूह को होगा। नगर निगम ने शहरी आजीविका मिशन के तहत पूरा प्रोजेक्ट स्व-सहायता समूह को सौंपा है। फाइलों के अलावा विजिटिंग कार्ड, पेपर बैग जैसे उत्पाद भी बनाए जाएंगे।

ऐसे होगा पर्यावरण संरक्षण

  • एक टन कपड़े को रीसाइकल कर पेपर फाइल और बैग आदि बनाने से पेपर निर्माण की सामान्य प्रक्रिया में लगने वाली करीब तीन टन लकड़ी बचेगी, 100 क्यूबिक मीटर पानी बचेगा।
  • 6 पेड़ और मिट्टी बचेगी, ऑक्सीजन भी मिलेगी।
  • एक व्यक्ति के लिए 25 साल का पानी बचेगा।

स्वच्छ भारत मिशन के तहत कचरे से रोजगार देने की कोशिश के तहत यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। जिसमें शहरी आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाएं रोजगार पा रही हैं।

- प्रतिभा पाल, आयुक्त, उज्जैन नगर निगम


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