पीरियड को लेकर लड़कियों को ही नहीं बनाना जागरुक, पूरे समाज को संदेश देना जरूरी
भारत में हर महीने एक अरब से भी ज्यादा नॉन कंपोस्टेबल पैड शहरी सीवरेज सिस्टम, कूड़े के ढेर, ग्रामीण खेतों आदि में अपनी जगह बनाते हैं जो कि पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती है।
नई दिल्ली [अलका आर्य]। स्त्रियों के बदन को परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं के नाम पर शुचिता के बोझ से इस कदर लाद दिया गया कि 21वीं सदी के दूसरे दशक के आखिरी वर्षो में भी वे इनसे मुक्ति पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर मासिक धर्म (पीरियड) के मुद्दे पर ही चर्चा करें तो पता चलता है कि भारत में ही लड़कियों/महिलाओं को इन दिनों में किन खास मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह फेहिरस्त लंबी है, पर बताना इसलिए जरूरी है ताकि उन पर परिवार, समाज और सरकारी स्तर पर अधिक से अधिक चर्चा हो, समाधान तलाशे जाएं और रजोधर्म से संबंधित भ्रांतियां और शर्म उतनी ही तेजी से मिटें। सामाजिक मानसिकता में बदलाव के साथ-साथ लड़कियों/महिलाओं को उन सारी जरूरी सुविधाओं को मुहैया कराना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। रजोधर्म संबंधी स्वच्छता के लिए केवल लड़कियों/महिलाओं को ही जागरूक करना जरूरी नहीं है, बल्कि पूरे समाज में यह संदेश पहुंचाना अहम है।
गौरतलब है कि 2017 की विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भारत की हैं और वह रजोधर्म स्वच्छता प्रोजेक्ट के तहत अभियान चला रही हैं। हरियाणा सरकार ने तो उन्हें इस काम के लिए अपना ब्रांड एंबेसडर भी नियुक्त किया है। 1मानुषी छिल्लर ने बीते दिनों देश की राजधानी दिल्ली में इस मुद्दे पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात कीं और पत्रकारों से भी मिलीं। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म हमारी पहचान है। इसके लिए किसी भी तरह की शर्म महसूस करने की जरूरत नहीं है और न ही किसी को इसका अहसास करने की। जरूरी यह है कि हम इससे जुड़ी स्वच्छता का नियमित ध्यान रखें। व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी केवल इसके लिए सकारात्मक रुख ही अपनाने की जरूरत है। आकार इनोवेशन फांउडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मानुषी छिल्लर ने कहा कि जागरूकता की कमी के अलावा मुल्क के देहाती इलाकों में सेनेटेरी पैड तक महिलाओं की पहुंच भी सीमित है। इस ओर भी ध्यान देना होगा।
उन्होंने कहा कि सेनेटरी पैड को लेकर युवतियां व महिलाएं जितनी खुलकर बात करेंगी उतनी ही इस जानकारी का प्रसार होगा। इसके जरिये ही हम स्वच्छ भारत की स्वस्थ नारी का निर्माण कर सकेंगे। रजोधर्म या मासिक धर्म या पीरियड के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत जरूरी हो जाता है अन्यथा युवतियों/महिलाओं को कई तरह के संक्रमण अपनी चपेट में ले लेते हैं। अगर शुरुआत से ही इस स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए तो युवतियों/महिलाओं को कई तरह के संक्रमणों व बीमारियों से बचाया जा सकता है। दरअसल भारत में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) एक बहुत बड़ा मुद्दा है। देश में एमएचएम पर की गई एक शोध से पता चलता है कि इसके प्रति जागरूकता बहुत कम है। 48 फीसद लड़कियां ही मासिक धर्म से पहले इसके बारे में जागरूक थीं। 23 फीसद लड़कियों को ही मालूम था कि ब्लीडिंग का स्रोत गर्भाशय है। 55 फीसद ने मासिक धर्म को सामान्य बताया।
2015 में भारत सरकार ने एमएचएम पर राष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी किए थे। उसके बाद कई राज्य सरकारों ने भी दिशा-निर्देश जारी किए। महाराष्ट्र सरकार ने मई 2016 में एमएचएम से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए और अब इसे गेम चेंजर के तौर पर देखा जा रहा है। भारत में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (वॉश) के प्रमुख निकोलस ओस्बर्ट का कहना है कि एमएचएम लड़कियों/महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और सशक्तीकरण के पहलू से भी बहुत महत्व रखता है। जाहिर है, हल एमएचएम है। बस पर्याप्त जानकारी तक पहुंच होनी चाहिए, तैयारी भी होनी चाहिए और रजोधर्म जैसी स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया को स्वस्थ, सुरक्षित व गारिमामय तरीके से मैनेज करने के लिए सपोर्ट मुहैया कराना भी बहुत जरूरी है। निकोलस ओस्बर्ट इस बाबत सरकारी योजनाओं जैसे-स्वच्छ भारत : स्वच्छ विद्यालय अभियान और स्वच्छ भारत मिशन का जिक्र करते हैं।
2014 में शुरू की गई स्वच्छ भारत : स्वच्छ विद्यालय अभियान का मुख्य उदेश्य स्कूलों में वॉश सुविधाओं को मुहैया कराना और शिक्षक क्षमता निर्माण है ताकि शिक्षक लड़कियों से प्रभावशाली तरीके से संवाद स्थापित कर सकें और उनकी जरूरतों के अनुसार सपोर्ट कर सकें। वहीं स्वच्छ भारत मिशन का ध्येय एमएचएम को लेकर लड़कियों के बीच जागरूकता के स्तर को बढ़ाना है। बेशक एमएचएम आधी दुनिया से सीधे तौर पर ताल्लुक रखता है, पर इसे सभी को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि यह महिलाओं के उत्थान के साथ-साथ उनकी सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्तीकरण करने में भी मदद करता है। यही नहीं, बल्कि यह सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने में भी सहायक हो सकता है। उदाहरण के तौर पर गुणात्मक शिक्षा (एसडीजी-4), लैंगिक समानता (एसडीजी-5) और स्वच्छ जल व स्वच्छता ( एसडीजी-6) को हासिल करने में सहायक हो सकता है।
सरकार को इस बात पर खास ध्यान देना होगा कि लड़कियों के स्कूलों-कॉलेजों, खेल के मैदानों, सांस्कृतिक स्थलों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लड़कियों/महिलाओं केलिए न सिर्फ अलग से शौचालय हों, बल्कि वहां पानी, साबुन, डस्टबीन भी हों। ऐसा भी कहा जाता है कि मुल्क में हजारों लड़कियां अपने पीरियड के दौरान स्कूल मिस करती हैं। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि उन खास दिनों में उनके पेट में दर्द होता हो और स्कूल में पैड या कपड़ा बदलने के लिए अलग से सुरक्षित जगह उपलब्ध नहीं हो। मासिक धर्म शर्म की बात नहीं है, बल्कि यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, किशोर लड़कियों/महिलाओं की सेनेटरी उत्पादों तक पहुंच होनी चाहिए। एक बात और जिस पर ध्यान देना लाजिमी है वह यह कि लड़कियों और महिलाओं को अपने पीरियड के दौरान कौन से सुरक्षित और स्वच्छ उत्पाद इस्तेमाल करने चाहिए, इसकी भी पर्याप्त जानकारी उन्हें होनी चाहिए। सरकार को इस दिशा में पहल करनी होगी।
(लेखक सामाजिक मामलों की जानकार हैं)
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