जर्मनी का जगमगाता ऑफर ठुकरा, लौट आया बस्तर को रोशन करने
कहानी बेंगलुरु के एक युवा वैज्ञानिक के जज्बे की, जर्मनी ने करोड़ों का ऑफर देकर रोकना चाहा, लौट आया स्वदेश
जगदलपुर (हेमंत कश्यप)। यह कहानी है युवा वैज्ञानिक पुनीत सिंह की, जो इस समय बस्तर, छत्तीसगढ़ के माचकोट वन परिक्षेत्र स्थित ग्राम कावापाल में डटे हुए हैं। घनघोर जंगलों से घिरा हुआ गांव है। सूरज की रोशनी भी छन-छन कर पहुंचती है। गांव से कुछ दूरी पर जंगली नाला बहता है। इसी नाले पर पुनीत सिंह एक माइक्रोहाइड्रो टरबाइन स्थापित करना चाहते हैं, ताकि इस अति पिछड़े गांव का अंधेरा दूर हो सके। गांव के दो सौ घरों को बिजली, पानी और सिंचाई की सुविधा मिल सके।
माटी का कर्ज
पुनीत अपने साथ जो माइक्रोहाइड्रो टरबाइन लेकर पहुंचे हैं, उसकी युक्ति का आविष्कार उन्होंने जर्मनी में तब किया था, जब वहां इस विषय में शोध कर रहे थे। जर्मनी को उनका यह आविष्कार इतना भाया था कि भारत के इस होनहार को वह अपना बना लेना चाहता था। इसके लिए करोड़ों का ऑफर भी उसे दिया, लेकिन माटी के लाल ने जगमगाते ऑफर को ठुकरा दिया। वह स्वदेश के अंधियारे गांवों को रोशन करने की चाहत ले घर लौट आया।
पुनीत द्वारा शोध कर विकसित किए गए फार्मूले को जब जर्मनी में मूर्त रूप दिया गया तो लाजवाब माइक्रोहाइड्रो टरबाइन बनकर सामने आया। जर्मनी से तोहफे के रूप में इस विशेष टरबाइन का एक सेट भारतीय युवा वैज्ञानिक को धन्यवाद सहित भेजा गया। इसी टरबाइन को लेकर माटी का यह लाल बस्तर के अंधियारे गांव में पहुंचा है। ताकि अंधेरा दूर कर सके।
देशप्रेम से प्रभावित हुई जर्मन सरकार
दिल्ली आइआइटी से शिक्षा पूर्ण करने के बाद पुनीत ने जर्मनी में माइक्रोहाइड्रो टरबाइन पर पीएचडी की। लंबे रिसर्च के बाद उन्होंने ऐसा टरबाइन डिजाइन किया जो कम बहाव वाले नाले से भी बिजली पैदा करने के साथ पेयजल और सिंचाई के लिए भी पानी उपलब्ध कराने में सक्षम था।
जर्मन सरकार ने उन्हें करोड़ों रुपये सालाना का ऑफर दिया था, लेकिन उसे ठुकराकर पुनीत ने अपने देश में काम करने को वरीयता दी। पुनीत का देशप्रेम देख आश्चर्यचकित जर्मन सरकार ने न केवल उनकी पीठ ठोंकी वरन 1.20 करोड़ रुपये लागत का टरबाइन एक सेट बनवाकर उन्हें भेंट स्वरूप प्रदान कर किया।
लेकिन देश में मिली उपेक्षा
विडंबना है कि ग्राम कावापाल के जंगल में अपने प्रोजेक्ट के साथ डटे इस युवा वैज्ञानिक को भारत में, कथित रूप से न तो सरकार से मदद मिल रही है, ना ही प्रशासन से। हालांकि वे नाउम्मीद नहीं हैं। कावापाल सरपंच कमलोचन बघेल, पंच बलिराम नाग व मधु बताते हैं कि यहां कभी कोई अफसर नहीं आया था लेकिन पुनीत की पहल पर बस्तर कलेक्टर धनंजय देवांगन प्रोजेक्ट को देखने यहां पहुंचे थे। पुनीत इस प्रोजेक्ट पर अब तक अपना 40 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं।
क्या है माइक्रोहाइड्रो टरबाइन
टरबाइन एक तरह का यंत्र है, जिसके द्वारा बहते हुए पानी, हवा अथवा भाप की गतिज ऊर्जा को घूर्णन ऊर्जा में बदल दिया जाता है। माइक्रोहाइड्रो टरबाइन से बिजली बनाने के लिए नदी या बांध की जरूरत नहीं है। इसे छोटे-मोटे नाले में बहते कम प्रवाह वाले पानी से भी चलाया जा सकता है, जिससे दो सौ घरों को पर्याप्त बिजली मिलेगी।
प्रोजेक्ट को समझ रहे हैं
पुनीत के प्रोजेक्ट को मैंने मौके पर जाकर देखा है। जिला प्रशासन उसे अच्छी तरह समझने का प्रयास कर रहा है, इसके बाद आर्थिक मदद देने की दिशा में प्रयास किया जा सकता है।
धनंजय देवांगन, कलेक्टर बस्तर