1984 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अहम रोल निभाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून का निधन
1984 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व पश्चिमी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून का 90 वर्ष की आयु में सोमवार शाम को निधन हो गया।
नई दिल्ली, एएनआइ। 1984 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व पश्चिमी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून का 90 वर्ष की आयु में सोमवार शाम को निधन हो गया। जनरल हून पिछले दो दिनों से पंचकुला के चंडीमंदिर में कमांड अस्पताल में भर्ती थे।
लेफ्टिनेंट जनरल हून की सोमवार शाम करीब 5:30 बजे उनकी मृत्यु हो गई। 4 अक्टूबर, 1929 को पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्मे लेफ्टिनेंट जनरल हून ने ऑपरेशन मेघदूत का नेतृत्व किया था। बंटवारे को बाद उनका परिवार भारत आ गया।
पीएम मोदी ने ट्वीट करके जताया दुख
पीएम मोदी ने ट्वीट करके लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून को श्रद्धांजलि दी। लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून के निधन से बेहद दुख हुआ। उन्होंने अत्यंत समर्पण के साथ भारत की सेवा की और हमारे राष्ट्र को मजबूत और अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दुख की घड़ी में मेरे विचार उनके परिवार के साथ हैं।
दुनिया भर में सबसे मुश्किल लड़ाइयों में से एक ऑपरेशन मेघदूत
दुनिया भर में सबसे मुश्किल लड़ाइयों में ऑपरेशन मेघदूत का जिक्र होता है। इस दौरान माइनस में तपमान होने के बाद भारतीय सेना ने दुर्गम चोटी को बड़े ही साहस से पार कर सियाचिन की चोटी पर तिरंगा फहराया था। इस ऑपरेशन के दौरान सेना ने पाकिस्तान को मात दी।
1987 में पश्चिमी कमान के प्रमुख के तौर पर रिटायर हुए
लेफ्टिनेंट जनरल हून ने 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भी सेना को सेवा दी। उन्होंने डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के रूप में भी काम किया और 1987 में पश्चिमी कमान के प्रमुख के तौर पर रिटायर हुए।
जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचे पीएन हून
रिटायरमेंट के बाद, वह कई सामाजिक गतिविधियों में लगे हुए थे। उन्होंने कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर मुखरता से अपना पक्ष रखा। उन्होंने एक बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था ताकि सैनिकों को उनकी पोस्टिंग वाली जगहों पर वोटिंग का अधिकार मिले।
सैनिकों के लिए छावनी क्षेत्रों में बने मतदान केंद्र
उनकी मुख्य दलील थी कि सैनिकों को मतदान केंद्रों पर सीधे जाने और वोट डालने की अनुमति दी जानी चाहिए, जिसे छावनी क्षेत्रों में स्थापित किया जा सकता है और उस क्षेत्र में तैनाती के कार्यकाल की कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। अक्टूबर 2015 में, उन्होंने अपनी पुस्तक, 'द अनटोल्ड ट्रूथ' लॉन्च की थी।