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केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, Gay Couple की याचिका- स्‍पेशल मैरिज एक्‍ट के तहत लाया जाए समलैंगिक विवाह

Supreme Court News सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका दायर की गई। याचिका में समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत लाने की मांग की गई है।

By AgencyEdited By: Monika MinalPublished: Fri, 25 Nov 2022 01:17 PM (IST)Updated: Fri, 25 Nov 2022 01:17 PM (IST)
केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस,  Gay Couple की याचिका- स्‍पेशल मैरिज एक्‍ट के तहत लाया जाए समलैंगिक विवाह
सु्प्रीम कोर्ट समलैंगिक दंपत्ति ने की मांग- स्‍पेशल मैरिज एक्‍ट के तहत लाया जाए समलैंगिक विवाह

नई दिल्‍ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका दायर की गई। याचिका में समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत लाने की मांग की गई है। इसपर कोर्ट ने आज केंद्र को नोटिस जारी कर दिया।

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अनुच्‍छेद 32 के तहत दायर हुई याचिका

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली बेंच ने मामले की आज सुनवाई की। बेंच ने मामले में संकेत दिया कि केरल समेत अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर एक साथ सुना जाएगा। अपने लिए कानून की मांग करते हुए समलैंगिक दंपत्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें LGBTQ+ समुदाय के सदस्‍यों की अपने पसंद से शादी का अधिकार देने की मांग की गई है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले की सुनवाई की और सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी के विस्‍तृत ब्‍यौरे को सुनने के बाद याचिकाओं पर नोटिस जारी किया।

दो समलैंगिक दंपत्‍त‍ि ने दायर की है याचिका

हैदराबाद में रहनेवाले समलैंगिक दंपत्ति सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय दांग के अलावा पार्थ फिरोज महरोत्रा और उदय राज ने भी समलैंगिक समुदाय के अधिकारों के लिए याचिका दायर की है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है क‍ि एक-दूसरे से शादी के लिए उनके मौलिक अधिकार का हवाला दिया और ऐसा करने के लिए कोर्ट से उचित आदेश की मांग की। LGBTQ+ समुदाय के हित में अनुच्‍छेद 32 के तहत जनहित याचिका दायर की गई है। दंपत्ति ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट को भी बताना होगा कि LGBTQ+ समुदाय के सदस्‍यों को भी अन्‍य नागरिकों की तरह संवैधानिक व मौलिक अधिकार हैं।

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इससे पहले सितंबर में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि IPC (Indian Penal Code, भारतीय दंड संहिता) की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के शीर्ष अदालत के फैसले से LGBT समुदाय के लोगों को कानूनी रूप से एक सशक्‍त नागरिक के रूप में उभरने में मदद मिलेगी।

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