समाज से बहिष्कृत इन आहत बेटियों का गौरव वापस कर रही ‘गौरवी’ , जानें इनकी कहानी
हौसला ऐसा कि वे अब आसमान छूने का सपना संजो रही हैं। कोई आइपीएस अफसर बनना चाहती है तो कोई मिलिट्री अफसर। जीवन में यह मुकाम पाने के लिए जुलाई से वे स्कूल भी जाएंगी।
भोपाल [शशिकांत तिवारी]। छोटी सी उम्र में उनके साथ दुष्कृत्य की घटना हुई। पहले तो लगा जिंदगी में सब कुछ खत्म हो गया। कुछ ने आत्महत्या की कोशिश की। लोक-लाज के डर से पढ़ाई छोड़ दी या फिर घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया। लेकिन भोपाल, मध्यप्रदेश के जेपी अस्पताल में स्थापित ‘गौरवी’ केंद्र से उन्हें संबल मिला। अब इन बेटियों में जीने की चाह लौट आई है। खोया आत्मसम्मान लौट आया है। गौरवपूर्ण जीवन के लिए वे प्रयत्नशील हो उठी हैं।
हर जिले में हो ऐसा पुनर्वास केंद्र
हौसला ऐसा कि वे अब आसमान छूने का सपना संजो रही हैं। कोई आइपीएस अफसर बनना चाहती है तो कोई मिलिट्री अफसर। जीवन में यह मुकाम पाने के लिए जुलाई से वे स्कूल भी जाएंगी। यह कहानी एक-दो नहीं बल्कि 13 लड़कियों की है। इनकी उम्र महज आठ से 17 साल है। दुष्कर्म की शिकार ये लड़कियां एक-एक कर गौरवी पहुंचीं। गौरवी ने उनकी कानूनी मदद की। अब पढ़ाई सहित अन्य जरूरतों को पूरा करने में मदद की जा रही है।
घटना के चलते जिन लड़कियों की पढ़ाई छूट गई थी, उनका स्कूल में दाखिला कराया जा रहा है। लड़कियों को रोजगारपरक विधाओं का प्रशिक्षण भी मुहैया कराया जा रहा है। बता दें कि इन 13 लड़कियों में दो ऐसी हैं जो मां भी बन चुकी हैं। इनके अलावा दुष्कर्म की शिकार कई महिलाओं को भी गौरवी ने संपूर्ण पुनर्वास मुहैया कराया है।
गौरवी के माध्यम से किसी ने बिजनेस शुरू किया तो किसी ने खुद का ऑटो चलाना शुरू कर दिया। कुछ फैशन डिजाइनिंग, टेलरिंग, कंप्यूटर व होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रही हैं।
निर्भया कांड के बाद हुई थी जरूरत महसूस
गौरवी केंद्र की अवधारणा 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद अस्तित्व में आई थी ताकि पीड़िताओं को एक ही जगह पर कानूनी मदद के अलावा चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक- सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास व अन्य आवश्यक मदद मिल सके। 2014 में मुख्यमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में अभिनेता आमिर खान ने देश के इस पहले वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर का उद्घाटन किया था।
एक्शन ऐड एनजीओ की मदद से यह केंद्र संचालित हो रहा है। महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित सखी नामक केंद्र को भी इसी में मिला दिया गया है।
वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर
हिंसा और दुष्कर्म की शिकार महिलाओं की मदद के लिए 2014 में गौरवी के रूप में देश का पहला केंद्र मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थापित हुआ था। इसमें आपदा हस्तक्षेप सेवाएं, पीड़ित महिलाओं को एफआइआर दर्ज करवाने में सहयोग, त्वरित संबल देते हुए मनोवैज्ञानिकचिकित्सकीय परामर्श, आवश्यक सुरक्षा, कानूनी मदद, जीवन यापन के लिए सहायता, शिक्षा और अन्य आवश्यक पुनर्वास शामिल हैं।
इनकी बदली जिंदगी
केस 1 : सौम्या (बदला हुआ नाम) की कहानी किसी को भी झकझोर देने वाली है। उसके पिता दुनिया में नहीं रहे। मां छोड़कर चली गई। सौतेले पिता ने सौम्या के साथ 2016 में दुष्कर्म किया। तब उसकी उम्र महज 13 साल थी। सौम्या अब सदमे से उबर चुकी है। अब वह पढ़ाई करना चाहती है। संगीत-नृत्य में भी उसकी रुचि है।
केस 2 : 17 साल की मीनल (बदला हुआ नाम) के साथ जनवरी 2018 को दुष्कर्म हुआ। दुष्कर्म के चलते वह गर्भवती हो गई है। लोक-लाज के डर से उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। प्रसव के बाद वह फिर से पढ़ाई शुरू करेगी। अभी वह 7वीं तक पढ़ी है। वह कबड्डी, खोखो और बॉलीबॉल खेलती है। पिर से पढ़ाई शुरू कर व मिलिट्री में अफसर बनना चाहती है। 15 साल की मयूरी (बदला हुआ नाम)की भी कहानी भी ऐसी ही है। प्रसव के बाद उसने पढ़ाई शुरू की और 8वीं की परीक्षा 89 फीसद अंकों से पास की। उसका सपना आइपीएस अफसर बनना है।