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गोरक्षपीठाधीश्वर करते थे दलित सहभोज, मंदिर के प्रधान पुजारी भी हैं दलित

दलिताें को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए गोरखनाथ मंदिर ने सराहनीय प्रयास किए हैं। गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ दलित सहभोज करते थे। मंदिर के मुख्य पुजारी भी दलित हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 28 Dec 2018 01:29 PM (IST)Updated: Fri, 28 Dec 2018 05:01 PM (IST)
गोरक्षपीठाधीश्वर करते थे दलित सहभोज, मंदिर के प्रधान पुजारी भी हैं दलित
गोरक्षपीठाधीश्वर करते थे दलित सहभोज, मंदिर के प्रधान पुजारी भी हैं दलित
गोरखपुर, जेएनएन। मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर देशभर में छिड़ी बहस के बीच गोरखनाथ मंदिर की सामाजिक समरसता वाली अलौकिक ख्याति की चर्चा सामयिक है। दलितों की सहभागिता की नींव पर स्थापित गोरक्षपीठ दलितों का धार्मिक केंद्र है। गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी कमलनाथ तो दलित हैं ही, भंडार गृह में प्रसाद तैयार करने वालों में भी दलित लोगों की भूमिका अहम है।
मुसलिमों की भी महत्‍वपूर्ण भूमिका
मंदिर होने के बावजूद जब प्रबंधन और लेखा से जुड़े कार्यों में मोहम्मद यासीन अंसारी और जाकिर अहमद का नाम आता है तो मजहबी दीवारें भी यहां धराशायी नजर आती हैं। गुरु गोरक्षनाथ ने कर्मकांडीय उपासना पद्धति के सामानांतर जिस तरह से योग को स्थापित किया, उससे दलित ही नहीं मुस्लिम भी नाथ पंथ का हिस्सा हो गए। गुरु गोरक्षनाथ ने भुज के कंठरनाथ, पागलनाथ, रावल, पंख या पंक, वन, गोपाल या राम, चांदनाथ कपिलानी, हेठनाथ, आई पंथ, वेराग पंथ, जयपुर के पावनाथ और घजनाथ नाम से जिस बारहपंथी समाज की नींव रखी, उसमें जाति और धर्म का कोई स्थान नहीं था। यही वजह है कि नाथ पंथ की परंपरा में शुरुआत से ही हर जाति, धर्म और वर्ग का व्यक्ति गोरखपंथी संत से दीक्षा लेकर सिद्धि और मोक्ष के मार्ग पर चलने की शपथ ले सकता है।

गोरखनाथ से जुड़े कई मंदिरों में हैं दलित पुजारी
नाथ पंथ से जुडऩे के बाद वह किसी जाति, धर्म, समाज, प्रांत और वर्ग का हिस्सा नहीं बल्कि सिर्फ नाथ हो जाता है। गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी कमल नाथ दलित हैं, जो गोरक्षपीठाधीश्वर की अनुपस्थिति में समस्त आनुष्ठानिक कार्यों को अपने हाथों से सम्पन्न कराते हैं। नाथ पंथ से जुड़े देवीपाटन के पाटेश्वरी देवी मंदिर के महंत मिथिलेश नाथ योगी भी दलित जाति से ही आते हैं। महाराजगंज के चौक बाजार में गोरखनाथ मंदिर के पुजारी फलाहारी बाबा दलित हैं तो जंगल धूसड़ में नाथ पीठ से संचालित बुढिय़ा माता मंदिर के पुजारी संतराज निषाद हैं। मंदिर में पूजा-अर्चना ही नहीं भंडार गृह और प्रबंधन से जुड़े अन्य कार्यों में भी ऐसे लोगों की महती भूमिका है, जिन्हें दूसरे धार्मिक स्थलों या पीठों पर अमूमन शायद इसकी अनुमति नहीं होती है। यहां के भंडार गृह में भोजन और नाश्ता तैयार करने वाले 12 में से सात भंडारी दलित हैं। इनके हाथ के बने भोजन को मंदिर के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। मंदिर में मोहम्मद यासीन अंसारी मुंशी का काम देखते हैं तो जाकिर प्रापर्टी का हिसाब-किताब रखते हैं। विनय कुमार गौतम ने मीडिया विभाग संभाल रखा है।
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ करते थे दलित सहभोज
ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी के डोम राजा सुजीत चौधरी के घर जाकर सामूहिक भोज किया था। दलित सहभोज की उस परंपरा का वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ आज भी बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में भी जातिगत निरपेक्षता साफ नजर आती है। यहां स्थापित प्रतिमाओं की लंबी श्रंखला में संत कबीर, रैदास, रहीम और रसखान जैसे संतों को पूरा सम्मान मिला है।

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