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DATA STORY: गैस फ्लेरिंग में बड़ी मात्रा में नष्ट होता है ईंधन, जानें-भारत समेत दुनिया को कितना है नुकसान

तेल निकासी के दौरान जलने या नष्ट वाली प्राकृतिक गैस को गैस फ्लेरिंग कहते हैं। यह कई कारणों से होता है बाजार आर्थिक मजबूरियां नियमों की कमी और राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी। इस उद्यम के चलते कार्बन डाइऑक्साइड मीथेन और ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषक वातावरण में जाते हैं।

By Vineet SharanEdited By: Published: Sat, 15 May 2021 08:41 AM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 11:36 AM (IST)
DATA STORY: गैस फ्लेरिंग में बड़ी मात्रा में नष्ट होता है ईंधन, जानें-भारत समेत दुनिया को कितना है नुकसान
रूस, इराक, ईरान, अमेरिका, अल्जेरिया, वेनेजुएला और नाइजिया सबसे ज्यादा गैल फ्लेरिंग करने वाले सात देश हैं।

नई दिल्ली, जेएनएन। गैस फ्लेरिंग के कारण बड़े पैमाने पर ईंधन नष्ट हो जाता है। इसके कारण साल 2020 में 142 अरब क्यूबिक मीटर ईंधन नष्ट हो गया। इतनी ऊर्जा से पूरे साल सब सहारा अफ्रीका की ईंधन की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। विश्व बैंक की ओर से हाल में जारी ग्लोबल गैस फ्लेरिंग ट्रैकर रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 की तुलना में 2020 में ईंधन उत्पादन 8 फीसद कम हुआ है और यह 82 मिलियन बैरल प्रति दिन से 76 मिलियन बैरल प्रति दिन पहुंच गया है। वहीं, गैस फ्लेरिंग में 5 फीसद की कमी आई है और यह 150 अरब क्यूबिक मीटर से गिरकर 142 अरब क्यूबिक मीटर हो गई है। इससे कुल 400 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ है।

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रिपोर्ट के मुताबिक रूस, इराक, ईरान, अमेरिका, अल्जेरिया, वेनेजुएला और नाइजिया पिछले नौ साल से लगातार सबसे ज्यादा गैल फ्लेरिंग करने वाले सात देश हैं। ये सात देश दुनिया का कुल 40 फीसद तेल उत्पादन करते हैं लेकिन यहां 65 फीसद ग्लोबल गैस फ्लेरिंग होती है। भारत की बात करें तो 2020 में 1493 मिलियन क्यूबिक मीटर ईंधन का नुकसान हुआ है। यह आंकड़ा 2019 में 1305 मिलियन क्यूबिक मीटर था।

क्या है गैस फ्लेरिंग

तेल निकासी के दौरान जलने या नष्ट वाली प्राकृतिक गैस को गैस फ्लेरिंग कहते हैं। यह कई कारणों से होता है, बाजार, आर्थिक मजबूरियां, नियमों की कमी और राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी। इस उद्यम के चलते कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और ब्लैक कार्बन जैसे प्रदूषक वातावरण में जाते हैं।

अलग-अलग कारण

गैस फ्लेरिंग होने के कई कारण हैं। जैसे इराक, ईरान और वेनेजुएला जैसे देश में तेल के बड़े मैदान हैं। इस गैस की बर्बादी रोक कर इसका इस्तेमाल करने के लिए काफी आर्थिक और तकनीकी संसाधनों की जरूरत है। जो इन देशों में नहीं हैं। वहीं अमेरिका जैसे देश में हजारों छोटी-छोटी गैस फ्लेरिंग साइट है, जिसे बाजार से जोड़ना मुश्किल है। वहीं रूस के तेल के मैदान पूर्वी सर्बिया में हैं। इतनी दूर मौजूद जगह पर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, जिससे गैस को पकड़ना और ट्रांसपोर्ट मुश्किल है। फिर भी कई देश गैस फ्लेरिंग रोकने के लिए काम कर रहे हैं, जिससे इसमें लगातार कमी आ रही है। विश्व बैंक का लक्ष्य है कि 2030 तक गैस फ्लेरिंग को शून्य कर दिया जाए। 78 सरकारें और निजी तेल कंपनियां इस प्रयास के लिए मिलकर काम कर रही हैं। 


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