समूचा जल तंत्र हो रहा दूषित, हर दिन समुद्र में समा रहे अरबों प्लास्टिक के टुकड़े, वैज्ञानिकों ने किया आगाह
नदियों के संयुक्त प्रवाह के साथ हर दिन लगभग 60 अरब प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में समाहित हो रहे हैं। विज्ञानियों का कहना है कि ये कण पूरे जल तंत्र को दूषित कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने समुद्री परितंत्र के लिए बेहद घातक बताते हुए इस पर चिंता जताई है।
कोलकाता, आइएएनएस। प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों (माइक्रोप्लास्टिक्स) को लेकर हुए एक अध्ययन में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। विज्ञानियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दावा किया है कि ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संयुक्त प्रवाह के साथ गंगा नदी हर दिन बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने वाले तीन अरब माइक्रोप्लास्टिक कणों के लिए जिम्मेदार हो सकती है। विज्ञानियों का कहना है कि ये कण पूरे जल तंत्र को दूषित कर रहे हैं।
जीवन देती हैं नदियां
गंगा नदी का उद्गम स्थल हिमालय में है और यह भारत और बांग्लादेश से होकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। हिंद महासागर में गिरने से पहले इसमें ब्रह्मपुत्र और मेघना मिलती हैं। इन तीनों नदियों का संयुक्त प्रवाह दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा है और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला बेसिन भी बनाता है। इससे लगभग 65.5 करोड़ से अधिक लोगों को पानी भी मिलता है।
हर दिन समा रहे 60 अरब प्लास्टिक के टुकड़े
ब्रिटेन की प्लाइमाउथ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक इमोजेन नैपर ने कहा, 'एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हर दिन नदियों के जरिये लगभग 60 अरब प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में समाहित हो जाते हैं।' उन्होंने कहा कि इसके कई कारण हो सकते हैं, जिसे रोकने के लिए समय रहते कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन यह भी विस्तृत विश्लेषण का विषय है कि कैसे नदियों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता (मिलावट) भिन्न होती है।
10 साइटों से लिया नमूना
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने वर्ष 2019 में दो अभियानों के दौरान 120 नमूनों (मानसून से पूर्व और बाद की स्थिति में) को प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए 10 साइटों से इकट्ठा किया था। यह अध्ययन नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी के 'सी टू सोर्स: गंगा एक्सपेंशन' के हिस्से के रूप में विज्ञानियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा एकत्र किए गए नमूनों का उपयोग करके किया गया था।
90 फीसद सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक्स
जर्नल एनवायरनमेंटल पल्यूशन में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि इन नमूनों का विश्लेषण करने पर प्री-मानसून के 43 और मानसून के बाद वाले 37 सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए। 90 फीसद से ज्यादा सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक्स फाइबर थे और इसमें रेयॉन और एक्रेलिक की मात्रा में काफी ज्यादा थी। इनका उपयोग आम तौर पर कपड़ों में किया जाता है।
समुद्री परितंत्र हो रहा प्रभावित
विज्ञानियों के मुताबिक गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों द्वारा अपने साथ लाए गए प्लास्टिक के कण कई बार इसके बेसिन पर भी बिछ जाते हैं। अनुमान है कि ये नदियां हर दिन लगभग तीन अरब प्लास्टिक कण समुद्र में छोड़ रही हैं, जो कि समुद्री परितंत्र के लिए भी चिंता की बात है। इस अध्ययन के सह लेखक, रिचर्ड थॉपसन ने कहा, 'हमारा अध्ययन माइक्रोप्लास्टिक के प्रमुख स्रोतों और रास्तों की पहचान करने में मदद कर सकता है। साथ ही इसके बेहतर प्रबंधन लिए के सरकारों को चेताता भी है।'