छत्तीसगढ़िया गा रहे रामचरित मानस में रमे गणेश का रमायन, हो गया कंठस्थ
हिंदी अवधि ब्रजभाषा में लिखा जा चुका रामचरित मानस अब पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी में भी उपलब्ध है। गणेशराम राजपूत वर्ष 2017 में आयोग से छत्तीसगढ़ रत्न से भी सम्मानित हुए।
विकास पांडेय, कोरबा। श्रीराम की भक्ति में शिक्षक गणेशराम राजपूत ऐसे लीन हुए कि गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस उन्हें कंठस्थ हो गया। दो साल के अथक परिश्रम से वर्ष 2016 में रामचरित मानस का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद भी कर दिया। इसे उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक रमायन का नाम दिया है। 352 पृष्ठ के इस छत्तीसगढ़ी काव्य का राजभाषा आयोग ने प्रकाशन किया और कृति साहित्य सम्मान भी प्रदान किया।
रामचरित मानस अब पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी में भी उपलब्ध
गणेशराम वर्तमान में एकलव्य विद्यालय छुरी के प्राचार्य का प्रभार संभाल रहे हैं। वह सुबह तीन बजे नहाकर पूजन के बाद लिखाई शुरू कर देते। एक अधिकारी के तौर पर सरकारी ड्यूटी के बीच समय निकालकर प्रतिदिन दो से तीन घंटे व छुट्टियों में दस-दस घंटे लिखा करते। गणेशराम का कहना है कि गोस्वामीजी के श्री रामचरित मानस में दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद व श्लोक र कार व म कार में लिखे हुए हैं। पर उनका भावार्थ प्रत्येक व्यक्ति के लिए समझना मुश्किल है। उनका यही उद्देश्य है कि छत्तीसगढ़ी लोक रमायन से स्थानीय लोगों के लिए लोकभाषा में रामचरित मानस में लिखी पंक्तियों व मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श जीवन को समझना सरल हो। हिंदी, अवधि, ब्रजभाषा में लिखा जा चुका ग्रंथ अब पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी में भी उपलब्ध है। राजपूत वर्ष 2017 में आयोग से छत्तीसगढ़ रत्न से भी सम्मानित हुए।
लोकगायक ने दी आवाज, मंडली ने अपनाया
कटघोरा के ख्यातिलब्ध लोकगीत कलाकार नर्मदा गुरुगोस्वामी ने राजपूत के छत्तीसगढ़ी ग्रंथ को अपनी आवाज देकर स्थानीय जन-मानस के हृदय व जुबान में शामिल करने योगदान दिया। उनका यह प्रयोग यूट्यूब पर भी उपलब्ध है, जो काफी सराहा गया। इसके अलावा जिला व छत्तीसगढ़ की मानस मंडली के कलाकार भी अपनाते हुए नवधा पंडालों में प्रस्तुति दे रहे।
चार-चार पंक्तियों की कवित्त शैली
शिक्षक गणेशराम की पूरी रचना चार-चार पंक्तियों की कवित्त शैली में की है। इसमें शामिल गीत व रचनाएं वे पिछले 25 साल से लिखकर संग्रहित करते रहे। इन गीतों का एक अलग संग्रह भी उन्होंने प्रकाशित कराया है। राजपूत के मार्गदर्शक एवं राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पाठक ने भी अपने विचार प्रदान करते हुए रचना की सराहना की है।