गांधीवादी तरीके से अब लड़ी जाएगी नक्सलियों के खिलाफ जंग
नक्सलियों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर लोगों को जोड़ने और उनके खिलाफ जंग लड़ने के लिए गांधीवादियों ने नया रास्ता खोजा है।
नईदुनिया, रायपुर। छत्तीसगढ़ में बस्तर और संपूर्ण दंडकारण्य इलाके में पिछले चार दशकों से हो रहे खून-खराबे को रोकने के लिए अब स्थानीय आदिवासी भी सामने आ गए हैं। दो अक्टूबर से चार प्रदेशों के गांधीवादी आंध्र प्रदेश की सीमा से जगदलपुर तक पदयात्रा निकालेंगे।
नक्सलियों पर बनेगा दबाव
नक्सलवाद से मुक्ति के लिए निकाली जाने वाली इस पदयात्रा में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा के नक्सल प्रभावित इलाकों के बुद्धिजीवी भाग लेंगे। पदयात्रा को बस्तर के गोंड, दोरला, धुरवा, मुरिया, माड़िया आदि समाजों के प्रमुखों का भी समर्थन मिला है। अगर जनजातियों के ये समुदाय इसमें आगे आए तो नक्सलियों पर भारी दबाव जरूर बनेगा। इससे शांति की राह आसान हो सकती है।
बस्तर में शांति की पहल
बस्तर में शांति की पहल उन समूहों ने की है जो अब तक इससे सर्वाधिक प्रभावित रहे हैं। जून में रायपुर के निकट तिल्दा में दो दिनों का एक सेमिनार आयोजित किया गया था, जिसमें पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे आदिवासियों की स्थिति और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा की गई।
इस अभियान को आगे बढ़ाने वाले बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं- हिंसा का खामियाजा तो आम नागरिकों को ही उठाना पड़ा है। जब नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में हिंसा का समाधान निकल आया तो बस्तर में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। कोई और पहल करे इससे बेहतर है कि आदिवासी ही शांति की राह तलाशें।
आसान नहीं राह
बस्तर में आदिवासियों के बलबूते ही नक्सली फल-फूल रहे हैं। अब वह समय आ गया है कि नक्सली और सरकार, दोनों शांति की बात शुरू करें। शांति की तलाश आसान नहीं है। इसके लिए लगातार सतत प्रयास करना होगा।
शुरुआत गांधी जयंती से होगी। दो अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के गांव चेट्टी में स्थित शबरी गांधी आश्रम से यह कारवां रवाना होगा और 12 अक्टूबर को जगदलपुर पहुंचेगा। जगदलपुर में देश के दूसरे हिस्सों से भी गांधीवादी पहुंचेंगे। वहां दो दिनों का सेमिनार होगा, जिसमें आदिवासियों की हालत और बस्तर में मची हिंसा पर बात होगी। गांधीवादियों का मानना है कि स्थानीय स्तर से आवाज उठनी चाहिए। लोग नक्सलवाद का असली चेहरा पहचान चुके हैं।