Move to Jagran APP

कचरे से निकलने वाली गैसों से बन सकता है ईंधन

अध्ययन में चला पता, कचरे का बेहतर प्रबंधन करके लैंडफिल से निकलने वाली मीथेन गैस का उपयोग हरित ऊर्जा का उत्पादन करने में हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 06 Apr 2018 04:05 PM (IST)Updated: Fri, 06 Apr 2018 04:05 PM (IST)
कचरे से निकलने वाली गैसों से बन सकता है ईंधन
कचरे से निकलने वाली गैसों से बन सकता है ईंधन

नई दिल्ली (आइएसडब्ल्यू)। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और आर्थिक विकास के साथ-साथ शहरों से निकलने वाले कचरे में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। सही प्रबंधन न होने से इस कचरे को सीधे लैंडफिल (कचरा भराव क्षेत्र) में फेंक दिया जाता है, जहां से उत्सर्जित होने वाली मीथेन गैस मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बनकर उभर रही है।

loksabha election banner

भारतीय अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि कचरे का बेहतर प्रबंधन करके भराव क्षेत्रों से निकलने वाली मीथेन गैस का उपयोग हरित ऊर्जा का उत्पादन करने में हो सकता है, जिससे पर्यावरण को ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से बचाने में मदद मिल सकती है।

अध्ययन में शामिल नई दिल्ली स्थित टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के शोधकर्ता डॉ. चंद्र कुमार सिंह के मुताबिक, कचरा भराव क्षेत्रों से निकलने वाली ज्यादातर गैसों में बायोगैस के रूप में उपयोग किए जाने की क्षमता है, जो हरित एवं स्वच्छ ऊर्जा का बेहतर विकल्प बन सकती हैं।

अनुमान है कि कचरा भराव क्षेत्रों से निकली महज 20-25 प्रतिशत गैसें एकत्रित हो पाती है, जबकि शेष वातावरण में विलीन हो जाती हैं। अगर व्यवस्थित रूप से डिजाइन किए गए नियंत्रित लैंडफिल बनाए जाएं तो 30-60 प्रतिशत गैसों का उपयोग किया जा सकता है। इस तरह प्राप्त गैसें ऊर्जा का सीधा स्नोत बन सकती हैं।

इनका उपयोग बिजली उत्पादन और वाहनों के ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि भारत के कचरा भराव क्षेत्रों से मीथेन गैस का उत्सर्जन वर्ष 1999 में 404 गीगाग्राम था, जो वर्ष 2011 और वर्ष 2015 में बढ़कर क्रमश: 990 एवं 1084 गीगाग्राम हो गया। एक गीगाग्राम लगभग एक हजार टन के बराबर होता है।

यह है राज्यों की स्थिति

अध्ययन में अधिक जीडीपी वाले राज्यों में कचरे से उत्सर्जित होने वाली मीथेन गैस की मात्रा भी सबसे अधिक आंकी गई है। महाराष्ट्र में वर्ष 1999-2000 में 70 गीगाग्राम मीथेन उत्सर्जित हो रही थी, जो वर्ष 2015 में बढ़कर 208 गीगाग्राम हो गई। उत्तर प्रदेश में 46 गीगाग्राम मीथेन वर्ष 1999 में कचरे से उत्सर्जित हुई, जो 2015 में बढ़कर 148 गीगाग्राम हो गई। इसी तरह 15 साल पूर्व तमिलनाडु में 41 गीगाग्राम और आंध्र प्रदेश में 34 गीगाग्राम मीथेन का उत्सर्जन कचरा भराव क्षेत्रों से हो रहा था, जो वर्ष 2015 में बढ़कर क्रमश : 112 गीगाग्राम, 89 गीगाग्राम हो गया।

ग्रीनहाउस गैसों का एक प्रमुख घटक है मीथेन

भारत में कचरे का प्रबंधन उसे भराव क्षेत्रों में फेंक देने तक ही सीमित है। इससे वातावरण में मानव-जनित मीथेन गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक होता है। मीथेन ग्रीनहाउस गैसों का एक प्रमुख घटक है, जो 100 वर्षों के कालखंड में कार्बनडाईऑक्साइड की अपेक्षा वैश्विक ताप को प्रभावित करने की 28 गुना अधिक क्षमता रखती है। कचरे का उचित प्रबंधन करें तो मीथेन गैस कई शहरों को रोशन करने का जरिया बन सकती है।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि शहरी अपशिष्टों में उच्च ऊष्मीय स्तर वाले जैव-अपघटित कचरे की मात्रा अधिक होती है, जिसका उपयोग वर्मी- कम्पोस्ट तैयार करने और ऊर्जा उत्पादन में कर सकते हैं और इस तरह ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.