अपने साथ दुनिया में बदलाव की बयार लेकर आईं इतिहास में दर्ज कई महामारियां
ब्लैक डेथ के बाद पश्चिम यूरोप का हुआ शक्तिशाली उदय चौदहवीं सदी के पांचवें और छठें दशक में प्लेग की महामारी ने यूरोप में मौत का तांडव किया था।
नई दिल्ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस का प्रकोप दुनिया के लोगों का जीवन अकल्पनीय अंदाज में बदल रहा है। वे जिस तरह के रहनसहन के आदी रहे हैं, उसमें बदलाव आ रहा है। पूर्व में आई महामारियों का इतिहास बताता है कि वे अपने साथ बड़े बदलाव भी ले आईं। इनकी वजह से हुकूमतें तबाह हुईं। साम्राज्यवाद का विस्तार भी हुआ और इसका दायरा सिमटा भी। पेश है एक नजर:
ब्लैक डेथ के बाद पश्चिम यूरोप का हुआ शक्तिशाली उदय
चौदहवीं सदी के पांचवें और छठें दशक में प्लेग की महामारी ने यूरोप में मौत का तांडव किया था। इसके कहर से यूरोप की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई। ब्लैक डेथ यानी ब्यूबोनिक प्लेग से इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत के कारण, खेतों में काम करने के लिए उपलब्ध लोगों की संख्या बहुत कम हो गई। इससे जमींदारों को दिक्कत होने लगी। पश्चिमी यूरोप के देशों की सामंतवादी व्यवस्था टूटने लगी।
मजदूरी प्रथा ने लिया जन्म: इस बदलाव ने मजदूरी पर काम करने की प्रथा को जन्म दिया। जिसके कारण पश्चिमी यूरोप ज्यादा आधुनिक, व्यापारिक और नकदी आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ चला। समुद्री यात्राओं की शुरुआत: पश्चिमी यूरोपीय देशों ने साम्राज्यवाद की शुरुआत की। जब ये अन्य इलाकों में गए तो उन्हें अर्थव्यवस्था को और बढ़ाने का मौका मिला। फिर उपनिवेशवाद भी शुरू कर दिया।
बढ़ा यूरोप का दबदबा: अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण ने उन्हें नई तकनीक विकसित करने को मजबूर किया। उपनिवेश बनाए और वहां से जो कमाई की, उसके बूते ही पश्चिम यूरोपीय देश दुनिया में ताकतवर बने। उसी तरक्की के बूते पश्चिम यूरोप के बहुत से देश दुनिया में अपना दबदबा बनाए हुए हैं।
चीन में मिंग राजवंश का पतन
1641 में उत्तरी चीन में प्लेग से बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई थी। साथ में सूखे और टिड्डियों के प्रकोप से फसलें तबाह हो चुकी थी। लोगों के पास खाने को अनाज नहीं था। इसी बीच उत्तर से आने वाले आक्रमणकारियों ने चीन से मिंग राजवंश को पूरी तरह उखाड़ फेंका। बाद में मंचूरिया के किंग वंश के राजाओं ने संगठित तरीके से चीन पर आक्रमण किया और मिंग राजवंश को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया।
अमेरिका में चेचक से मौत
यूरोपीय देशों ने पंद्रहवीं सदी के अंत तक अमेरिकी महाद्वीपों में उपनिवेशवाद का प्रसार करते हुए अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। उपनिवेशवादी अपने साथ चेचक, खसरा, हैजा, मलेरिया, प्लेग, काली खांसी, और टाइफस जैसी महामारियां ले गए। जिन्होंने करोड़ों लोगों की जान ले ली।
दुनिया के तापमान में कमी: आबादी कम हो जाने की वजह से खेती कम हो गई। एक बड़ा इलाका ख़ुद ही कुदरती तौर पर दोबारा बड़े चरागाहों और जंगलों में तब्दील हो गया। इतने बड़े पैमाने पर पेड़-पौधे उग आने की वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर नीचे आ गया। और वैश्विक तापमान में कमी आई जिसे लघु हिमयुग कहा गया।
येलो फीवर और फ्रांस के खिलाफ हैती की बगावत
1801 में कैरेबियाई देश हैती में यूरोप की औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ यहां के बहुत से ग़ुलामों ने बगावत कर दी। अंत में तुसैंत लोवरतूर का फ्रांस के साथ समझौता हुआ। वह हैती का शासक बन गया। फ्रांस में नेपोलियन बोनापार्ट ने हैती पर कब्जा जमाने के लिए सेना भेजी। ये सैनिक पीत ज्वर के प्रकोप से ख़ुद को नहीं बचा पाए। यूरोप के सैनिकों के पास क़ुदरती तौर पर इस बुखार को झेलने की वो ताकत नहीं थी जो अफ्रीकी मूल के लोगों में थी।
अमेरिका का हुआ दोगुना रकबा: हैती पर कब्जे में नाकाम अभियान के दो साल बाद ही फ्रांस के लीडर ने 21 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके वाले कैरेबियाई द्वीप को अमेरिका की नई सरकार को बेच दिया। इसे लुईसियाना पर्चेज के नाम से भी जाना जाता है। जिसके बाद नए देश अमेरिका का इलाका बढ़कर दोगुना हो गया।
अफ्रीका के लिए काल बना राइंडरपेस्ट
अफ्रीका में पशुओं के बीच फैली एक महामारी ने यूरोपीय देशों को यहां अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद की। 1888 और 1897 के बीच राइंडरपेस्ट नाम के वायरस ने अफ्रीका में लगभग 90 फीसद पालतू जानवरों को खत्म कर दिया।
दिखने लगा दुष्प्रभाव: यहां के समाज में बिखराव आ गया। भुखमरी फैल गई। इसने यूरोपीय देशों के लिए अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपने उपनिवेश स्थापित करने का माहौल तैयार कर दिया। साल 1900 तक अफ्रीका के 90 फीसद हिस्से पर औपनिवेशिक ताकतों का नियंत्रण हो गया था। यूरोपीय देशों को अफ्रीका की जमीनें हड़पने में राइंडरपेस्ट वायरस के प्रकोप से भी काफी मदद मिली।
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