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चुनावी मौसम में दोस्तों को बड़े सौदों की चिंता

नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। भारत में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही चुनावी सरगर्मियों के बीच विदेशी मुल्कों को अपनी कारोबारी परियोजनाओं के भविष्य की चिंता सता रही है। भारत के साथ राफेल लड़ाकू विमान खरीद की कवायद और जैतापुर में परमाणु संयंत्र परियोजना की धीमी रफ्तार को लेकर फ्रांस फिक्रमंद है। वहीं, पूरी तरह तैयार होने के बावजूद अब तक

By Edited By: Published: Sat, 13 Jul 2013 10:19 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2013 02:41 PM (IST)
चुनावी मौसम में दोस्तों को बड़े सौदों की चिंता

नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। भारत में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही चुनावी सरगर्मियों के बीच विदेशी मुल्कों को अपनी कारोबारी परियोजनाओं के भविष्य की चिंता सता रही है। भारत के साथ राफेल लड़ाकू विमान खरीद की कवायद और जैतापुर में परमाणु संयंत्र परियोजना की धीमी रफ्तार को लेकर फ्रांस फिक्रमंद है। वहीं, पूरी तरह तैयार होने के बावजूद अब तक चालू न हो सकी कुडानकुलम परमाणु परियोजना की अड़चनों के बीच रूस ने भी अपनी चिंताएं भारत को जताई हैं।

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भारत के दौरे पर आए फ्रांसीसी राष्ट्रपति के कूटनीतिक सलाहकार जीन पॉल ओरटिज के हालिया दौरे के एजेंडा में बड़ा मुद्दा अटके सौदों का रास्ता साफ कराना है। फ्रांसीसी दूतावास के मुताबिक ओरटिज ने शुक्रवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और विदेश सचिव रंजन मथाई से मुलाकात कर रणनीतिक साझेदारी के सभी मुद्दों पर बात की। सूत्रों के अनुसार, भारतीय वायुसेना के लिए 126 लड़ाकू विमानों के खरीद सौदे में देरी पर पेरिस में चिंता बढ़ रही है। फ्रांस 2016 तक भारत को पहले विमान की आपूर्ति की योजना पर काम कर रहा है, लेकिन इसकी सही तस्वीर तभी सामने आ पाएगी जब दोनों मुल्कों के बीच इस बाबत व्यापारिक सौदा तय होगा। महत्वपूर्ण है कि 126 लड़ाकू विमान खरीद के लिए फ्रांस की दासौ एविएशन के राफेल विमान के चयन का एलान रक्षा मंत्रालय फरवरी 2012 में ही कर चुका है। हालांकि, करीब 15 अरब डॉलर की इस खरीद के लिए अभी व्यापारिक सौदा नहीं हो सका है। वहीं, दस्तखत से पहले निर्धारित सरकारी प्रक्रिया में भी सौदे को करीब आधा दर्जन सीढि़यां चढ़नी हैं, जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति से मंजूरी शामिल है। भारत के साथ नाभिकीय सहयोग के मुद्दे पर फ्रांस ही नहीं रूस और अमेरिका की गाड़ी भी सुस्त हो गई है। जैतापुर में फ्रांस की कंपनी अरेवा के सहयोग से 1650 मेगावाट क्षमता की छह परमाणु बिजली उत्पादन इकाइयां लगने की प्रक्रिया भी पांच साल में पूरी नहीं हो पाई है।

कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, पूरी तरह तैयार होने और परमाणु ऊर्जा बोर्ड की हरी झंडी के बावजूद कुडानकुलम संयंत्र में बिजली उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है। सूत्र बताते हैं कि उद्घाटन की तारीखों के लिए चल रही मशक्कत के कारण इसमें अभी दो महीने का वक्त लग सकता है। वहीं, भारत के नाभिकीय उत्तरदायित्व कानून की पेचीदगियों का हवाला देते हुए रूसी खेमा कुडानकुलम में तीसरी और चौथी इकाई लगाने की संभावनाएं धुंधली बता रहा है। हालांकि, इसका रास्ता निकालने के लिए दोनों खेमों के बीच बातचीत की कवायद महीनों से चल रही है। गौरतलब है कि भारत के लिए नाभिकीय कारोबार के दरवाजे खोलने वाले 123 समझौतों के बावजूद अमेरिका की किसी कंपनी के साथ परमाणु संयंत्र के लिए कोई करार अभी नहीं हो सका है।

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