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चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए फ्रांस की रणनीति का अहम हिस्‍सा हो सकता 'भारत'

चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए अब फ्रांस नए गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत इस गठजोड़ का अहम हिस्‍सा बन सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 22 Jul 2019 01:22 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 02:21 PM (IST)
चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए फ्रांस की रणनीति का अहम हिस्‍सा हो सकता 'भारत'
चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए फ्रांस की रणनीति का अहम हिस्‍सा हो सकता 'भारत'

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। चीन के एशिया और अफ्रीका में बढ़ते कदमों की आहट अब फ्रांस को भी परेशान करने लगी है। यही वजह है कि चीन के कदमों को रोकने के लिए फ्रांस रणनीति बनाने में जुट गया है। उसकी इस रणनीति का हिस्‍सा भारत भी है। इसके अलावा आस्‍ट्रेलिया और जापान भी इसमें उसका साथ निभा सकता है। दरअसल, जब से चीन ने अफ्रीका के जिबूती में अपना सैन्‍य बेस बनाया है तब से वह अमेरिका समेत कई देशों के निशाने पर है। वहीं यदि बात करें भारत की तो उसको पहले से ही चीन की ताकत और उसकी रणनीति का अंदाजा है। चीन ने जिस तरह से भारत के पड़ोसी देशों को अपने कर्ज के चंगुल में फंसाया है उससे इन देशों का नजदीकी भविष्‍य में निकलपाना काफी मुश्किल है। इसके अलावा विश्‍व बिरादरी में उसका अडि़यल रुख भी कई देशों की परेशानी का सबब है। इस बात को अब यूरापीय देश भी बेहतर तरीके से समझने लगे हैं।

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चीन के खतरे की आहट
फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमेन्‍युल मैक्रॉन ने पिछले माह जापान का आधिकारिक दौरा किया था। इसमें दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने और भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया था। आपको यहां पर बता दें कि इन दोनों देशों ने इस दिशा में मिलकर आगे बढ़ने के लिए पहली बार जोर दिया है। जानकार मानते हैं कि चीन के बढ़ते कदमों से फ्रांस कहीं न कही खुद को पिछड़ा हुआ मान रहा है। लिहाजा एशिया में वह ऐसे देशों की ताक में है जो उसकी इस संबंध में मदद कर सकते हैं। इस बाबत विदेश मामलों के जानकार किंग्‍स कॉलेज, लंदन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में फ्रांस और भारत काफी करीब आए हैं। इन संबंधों को फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल की डील ने मजबूती प्रदान की है।

चीन के खिलाफ एकजुट होना जरूरी
इसके अलावा भी दोनों देशों के बीच हुई नेवल एक्‍सरसाइज ने भी इसमें बड़ा योगदान दिया है। 1983 में पहली बार दोनों देशों के बीच इस तरह का अभ्‍यास हुआ था। इसके बाद 2001 में इस अभ्‍यास को वरुण नाम दिया गया था। इस वर्ष मई में भी दोनों देशों की नौसेना ने इस अभ्‍यास में हिस्‍सा लिया था जिसमें विमानवाहक पोत के अलावा दूसरे विध्‍वसंक जहाजों ने भी हिस्‍सा लिया था। चीन के प्रभाव को कम करने के लिए आस्‍ट्रेलिया से भी फ्रांस आस लगाए हुए है। प्रोफेसर पंत के मुताबिक पिछले वर्ष जब फ्रांस के राष्‍ट्रपति ने आस्‍ट्रेलिया की यात्रा की थी तभी इस मुद्दे पर उन्‍होंने भारत समेत अन्‍य देशों का गठजोड़ बनाने की वकालत की थी। इस दौरान नेवल बेस पर अधिकारियों और जवानों को संबोधित करते हुए उन्‍होंने यहां तक कहा था कि यदि चीन के प्रभाव को कम करना है तो हमें एकजुट होना होगा।

इन देशों के साथ आने की वजह 
आपको बता दें कि जापान और चीन के बीच पूर्व में युद्ध तक हो चुका है। इसके अलावा सेनकाकू द्वीप पर जापान के अलावा चीन भी दावेदारी जताता रहा है। इसको लेकर दोनों ही देशों के बीच कई दौर की वार्ता बेनतीजा रही है। इसके अलावा आस्‍ट्रेलिया की बात की जाए तो दक्षिण चीन सागर में उसके लड़ाकू विमानों और युद्धपोत पर चीन खुलेतौर पर अपनी नाराजगी जताता रहा है। इतना ही नहीं आस्‍ट्रेलियाई लड़ाकू विमानों के पायलट ने कई बार दक्षिण चीन सागर से उड़ान के दौरान चीन की तरफ से लेजर हमला किए जाने की भी शिकायत की है। गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर पर चीन के अलावा भी कुछ देश अपनी दावेदारी जताते रहे हैं।


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