पूर्वोत्तर में गहराया केसरिया रंग, सहयोगी दलों के साथ राज्य में सरकार बना सकती है भाजपा
देर शाम तक के आंकड़े बताते हैं कि 60 सदस्यीय मणिपुर विधान सभा चुनाव में कांग्रेस 26 सीटें जीत चुकी हैं
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। मोदी सरकार की कूटनीतिक में 'एक्ट ईस्ट नीति' की बहुत अहमियत है। पूर्वी एशियाई देशों में भारत की पहुंच बढ़ाने के लिए मोदी सरकार लगातार इस नीति को धार दे रही है। मणिपुर विधान सभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर भाजपा ने यह साबित किया है कि देश के भीतर भी उसकी एक्ट ईस्ट नीति का असर हो रहा है। इसके पहले असम में अपने बूते और बाद में अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाकर भाजपा ने यह पहले ही दिखा दिया था कि पूर्वोत्तर राज्यों में कमल खिलाने की रणनीति असर दिखाना शुरू कर दी है। मणिपुर विधान सभा चुनाव ने इसे और पुख्ता बनाया है।
देर शाम तक के आंकड़े बताते हैं कि 60 सदस्यीय मणिपुर विधान सभा चुनाव में कांग्रेस 26 सीटें जीत चुकी हैं जबकि भाजपा 22 सीटें जीत तक दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है। इसके अलावा त्रृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और लोजपा ने एक-एक सीटें जीती हैं। जबकि नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने चार सीटें जीती हैं। नेशनल पीपुल्स पार्टी को भी चार सीटों पर विजय हासिल हुई है।
भाजपा को उम्मीद है कि टीएमसी, लोजपा व एनपीएफ की मदद से वह सरकार बना लेगी। लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान ने समर्थन की घोषणा भी कर दी। शायद यही वजह है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि पार्टी मणिपुर में सरकार बनाने में सफल रहेगी। अगर पार्टी ऐसा करने में सफल नहीं रहती है तब भी भाजपा के प्रदर्शन को कमतर करके नहीं आंका नहीं जा सकता। यह ध्यान रखना होगा कि पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा वहां खाता भी नहीं खोल पाई थी। यह एक वजह है कि पार्टी के नेता मणिपुर की जीत को पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी की अभी तक का सबसे अहम प्रदर्शन के तौर पर बता रहे हैं।
जानकार अलगाववादी हिंसक आंदोलन का शिकार रहे मणिपुर में भाजपा के दूसरे सबसे बड़े पार्टी के तौर पर उभरने के दूसरे मायने भी देख रहे हैं। इसका एक मतलब यह भी है कि वहां सत्ता पक्ष व विपक्ष में दो राष्ट्रीय दल होंगे जो राज्य में दीर्घकालिक शांति व्यवस्था कायम करने का काम कर सकते हैं।
अगर भाजपा वहां सरकार बनाने में सफल रहती है तो पीएम मोदी का करिश्मा नागालैंड के साथ दशकों से चले आ रहे झगड़े को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा व नगालैंड पर दिखेगा जहां एक वर्ष बाद चुनाव होने हैं। भाजपा त्रिपुरा में अपने बूते ही चुनाव लड़ने की तैयारी में है जबकि नागालैंड में पार्टी गठबंधन की राजनीति का विकल्प अपनाने जा रही है। मौजूदा हालात में भी देखे तो भाजपा अब पूर्वोत्तर के सात राज्यों में से दो में सरकार बना चुकी है और तीसरे में सरकार बनाने के करीब पहुंच चुकी है।
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