कोहरे के आगे नतमस्तक होता रेल व वायु यातायात, हर साल की यही कहानी
कोहरे के प्रति रेल और विमानन मंत्रालय का रवैया कुछ वैसा ही है जैसा प्रदूषण को लेकर पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार का।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। दो दशक के संघर्ष के बावजूद भारत के रेल एवं वायु परिवहन क्षेत्र कोहरे पर विजय नहीं प्राप्त कर सके हैं। दावों के बावजूद हर साल दिसंबर-जनवरी में इनकी पोल खुल जाती है। इस साल भी दोनो कोहरे के आगे घुटने टेकते दिखाई दे रहे हैं। ट्रेने बीस-बीस घंटे लेट चल रही हैं और उड़ानों का शेड्यूल अस्तव्यस्त हो गया है।
कोहरे के प्रति रेल और विमानन मंत्रालय का रवैया कुछ वैसा ही है जैसा प्रदूषण को लेकर पर्यावरण मंत्रालय और दिल्ली सरकार का। एनजीटी के भय से प्रदूषण के खिलाफ तो कुछ होता भी है। लेकिन रेलवे और विमानन मंत्रालय को किसी का डर नहीं। इसलिए यात्रियों की मुश्किलों और तोहमतों के बावजूद बस दुर्घटना रोकने के उपाय होते हैं। यह अलग बात है कि कोई न कोई रेल हादसा सर्दियों में हो ही जाता है। दुआ करें कि इस बार ऐसा न हो।
हमेशा की तरह इस साल भी रेलवे ने कोहरे से निपटने के 'ट्राईड एंड टेस्टेड' उपाय किए हैं। लेकिन इससे पहले से लेटलतीफ ट्रेनें और लेट चलने लगी हैं। हालात ये है कि यात्री कंफर्म टिकट कैंसिल कराने को मजबूर हैं। ऐसे में लोग सवाल पूछने लगे हैं कि ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निग सिस्टन, ट्रेन कोलीज़न अवाइडेंस सिस्टम, त्रि-नेत्र और फॉग सेफ डिवाइस जैसी बहुप्रचारित प्रणालियों का क्या हुआ? क्या इन्हें केवल ट्रायल के लिए लाया जाता है? एलईडी फॉग लाइटें लगाने की बात भी हो रही है। मगर पायलट से आगे बात अटक जाती है।
विमानन क्षेत्र का हाल भी अलग नहीं है। हर साल सर्दियों से पहले डीजीसीए हवाई अड्डों और एयरलाइनों के लिए एडवाइजरी जारी करता है। बैठकें होती हैं। दावे किए जाते हैं कि इस बार कोहरे से निपटने के लिए फलां तकनीक अपनाई जा रही है, अमुक उपकरण लगाए गए हैं। इस बार भी एडवाइजरी के बाद डायल ने दावा किया था कि दिल्ली एयरपोर्ट के तीनो रनवे (28, 29 और 11) कैट-3बी सुविधाओं से लैस हैं, जिन पर इस तकनीक में प्रशिक्षित पायलट 50 मीटर तक की कम दृश्यता पर भी आसानी से लैंडिंग कर सकते हैं।
इसके अलावा 139 पार्किंग स्टैंड को एरोनॉटिकल ग्राउंड लाइटिंग सिस्टम से सुसज्जित कर दिया गया है और एयरक्राफ्ट मूवमेंट के वक्त पायलट के मार्गदर्शन के लिए जीपीएस से लैस वाहनों वाली 'फॉलो मी सर्विस' भी शुरू की जा चुकी है। किसी भी आपातस्थिति से निपटने के लिए जगह-जगह क्रैश फायर टेंडर भी लगाए गए हैं। लखनऊ एयरपोर्ट कैट-3बी प्रणाली से लैस है। इसके बावजूद उड़ानों का बुरा हाल है। जब ये हाल कैट-3बी समर्थ एयरपोर्ट्स का है तो श्रीनगर, अमृतसर, चंडीगढ़, पटना, वाराणसी के बारे में सोचिए जहां अभी ये प्रणाली लगी नहीं है। कहने को ज्यादातर एयरलाइनो ने कैट-3बी का प्रमाणपत्र ले लिया है। लेकिन कोहरे के आगे इनके विमानों और पायलटों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरा से ज्यादा नहीं है।
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