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देश के कई हिस्सों में सामान्य से बेहद कम बारिश, फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है असर

इस साल देश के कई हिस्सों में सामान्य से बेहद ही कम बारिश हुई है। जिसका सीधा असर फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 08:59 AM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 08:59 AM (IST)
देश के कई हिस्सों में सामान्य से बेहद कम बारिश, फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है असर
देश के कई हिस्सों में सामान्य से बेहद कम बारिश, फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है असर

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। इस वर्ष देश के कुछ हिस्सों में सामान्य से तीन हजार फीसद अधिक वर्षा दर्ज की गई, तो दूसरी ओर कई इलाकों में वर्षा का स्तर सामान्य से भी कम देखा गया। बारिश के स्तर में यह अंतर पिछली एक सदी से भी अधिक समय से लगातार बढ़ रहा है, जिसका सीधा असर फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है। सूखे की आशंका से ग्रस्त बुंदेलखंड में 113 वषों की औसत वार्षिक वर्षा के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद भारतीय शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।

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शोधकर्ताओं ने झांसी जिले में मूंगफली की फसल पर वर्षा में उतार-चढ़ाव के कारण पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि पूरे मानसून में होने वाली बारिश के बजाय मूंगफली की पैदावार मुख्य रूप से जून-जुलाई में होने वाली वर्षा की मात्र पर निर्भर करती है। मूंगफली के लिए प्रतिदिन 8 से 32 मिलीमीटर वर्षा महत्वपूर्ण होती है। वहीं, प्रतिदिन 64 मिलीमीटर से ज्यादा वर्षा मूंगफली के लिए हानिकारक हो सकती है। मानसून देर से शुरू होने या फिर भारी बरसात के कारण भी मूंगफली की खेती पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के पटना स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर और झांसी स्थित भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।

कम होने लगी है हल्की और मध्यम वर्षा की घटनाएं 

शोधकर्ताओं में शामिल आइसीएआर के पूर्वी अनुसंधान परिसर के वैज्ञानिक अकरम अहमद ने बताया कि देश के कई क्षेत्रों में वर्षा में अत्यधिक वृद्धि हुई है, तो कुछ क्षेत्रों में बारिश के स्तर में बेहद कमी भी देखी गई है। भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, तो दूसरी ओर खेती के लिए उपयोगी हल्की एवं मध्यम वर्षा की घटनाएं कम हो रही हैं। हालांकि, यह अध्ययन मूंगफली पर किया गया है, लेकिन बारिश में बदलाव का असर अन्य फसलों पर भी पड़ेगा।

बुंदेलखंड में हुई सबसे कम बारिश 

दतिया और सागर जैसे जिलों को छोड़कर पूरे बुंदेलखंड में वार्षिक बरसात की दर में गिरावट दर्ज की गई है। इसके साथ ही, वार्षिक वर्षा में भी हर साल 0.49 मिलीमीटर से 2.16 मिलीमीटर तक गिरावट देखी गई है। बुंदेलखंड में सबसे कम और सर्वाधिक वार्षिक वर्षा क्रमश: 760 मिलीमीटर (दतिया) और 1227 मिलीमीटर (दमोह) में दर्ज की गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन अनियमित वर्षा के कारण बुंदेलखंड में बढ़ती सूखे की प्रवृत्ति को दर्शाता है। ऐसी स्थिति फसलों की उपज को बनाए रखने के लिए चुनौती के रूप में उभर सकती है।

मौसम विज्ञानियों के लिए मददगार होगा अध्ययन 

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि वार्षिक वर्षा के साथ-साथ मानसून के मौसम में होने वाली वर्षा की मात्र में भी गिरावट देखी गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फसलों की बुवाई के उपयुक्त समय की जानकारी देने में यह अध्ययन मौसम विज्ञानियों के लिए मददगार हो सकता है।

अनियमित वर्षा के कारण बढ़ सकती है सूखे की प्रवृत्ति, ऐसी स्थिति में फसलों की उपज को बनाए रखना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।


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