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लॉकडाउन में आई नए-नवेले शेफों की बाढ़, कुछ कर रहे पुरानी यादों को ताजा

लॉकडाउन के दौरान कई लोगों ने अपने घरों में रहने के दौरान नई-नई रेसिपी बनानी सीखी तो कई ने पुरानी यादों को ताजा करने के लिए अपने एल्बम पलटे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 02:35 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 02:35 PM (IST)
लॉकडाउन में आई नए-नवेले शेफों की बाढ़, कुछ कर रहे पुरानी यादों को ताजा
लॉकडाउन में आई नए-नवेले शेफों की बाढ़, कुछ कर रहे पुरानी यादों को ताजा

नई दिल्ली [अंशु सिंह]। लॉकडाउन में सभी कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। कोई म्यूजिक सीख रहा, कोई पेंटिंग, कोई बेकिंग। नए-नवेले शेफ की तो इन दिनों बाढ़-सी आई हुई है। वहीं कई ऐसे लोग हैं जो पुरानी स्मृतियों को याद कर दिल को खुश कर रहे हैं। फिर चाहे वह पुराने फोटो एल्बम, वीडियो देखना हो या उन पुराने, पारंपरिक व्यंजनों को ट्राई करना हो, जिनसे कोई न कोई याद या किस्सा जुड़ा हो। 

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मशहूर सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट रितुजा दिवेकर अपने फेसबुक वॉल पर लिखती हैं, मेरे मामा ने हाल ही में बताया कि साबूदाना वडा उनके लिए कितना मायने रखता है। उन्हें वे दिन याद आ जाते हैं, जब उनके एक अंकल सैलरी मिलने वाले दिन साबूदाना वडा का ट्रीट दिया करते थे। अब अंकल तो नहीं रहे, लेकिन जब भी घर में साबूदाना बनता है, तो उन्हें महसूस होता है कि अंकल का हाथ उनके कंधे पर है, उन्होंने उनकी पीठ थपथपायी, वडे का  सुगंध लिया और चले गए। 

बालूशाही दिलाती है पापा की याद 

डबलिन में रह रहीं सुप्रिया अपने देश की पारंपरिक मिठाइयों को खूब मिस करती हैं। इन दिनों वैसे तो घर में समय बिताने के लिए यू-ट्यूब और मां की रेसिपी यरी की मदद से कई नई डिशेज बनाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन मन में फिर भी बालूशाही न बना पाने की एक कसक है। बताती हैं, जब छोटी थी, तो पापा अक्सर गांव

से बालूशाही लाया करते थे। दो दिन भी नहीं चलती थी वह। हम सभी उसे झट से खत्म कर देते थे। आज जब कभी इंडिया जाती हूं, तो गांव से वह बालूशाही जरूर मंगाती हूं। पापा अब नहीं हैं। लेकिन ऐसा लगता है, मानो उन्होंने ही किसी के हाथों वह भिजवाया हो। 

जब साइकिल से लेने जाती थी सोन पापड़ी

नागपुर की जयंती 40 साल पुरानी कहानी याद करते हुए बताती हैं कि जब वे स्कूल में थीं, तो सोन पापड़ी की इतनी शौकीन थीं कि साइकिल से हलवाई के पास जाती थीं। तब 75 पैसे की सोन पापड़ी मिलती थी। यह मिठाई इतनी पसंद थी कि अपनी पॉकेट मनी से हर महीने कुछ न कुछ बचा ही लिया करती थीं। वे आगे बताती हैं, दुकानदार मुझे अखबार के छोटे से पन्ने में सोन पापड़ी लपेट कर देते थे और मैं घर लौटने से पहले ही उसे खत्म कर देती। ऐसा लगता था मानो क्या न हासिल कर लिया है। 

जम्मू की नाजिया की मानें, तो खाने में रूहानी शक्ति होती है। मैं आज तक मां के हाथ की बनी मक्के एवं बाजरे की रोटी, मक्खन डली हुई दाल, अल्सी पिन्नी को मिस करती हूं। इसके अलावा, नानी द्वारा बनाया जाने वाला आम-चने का अचार बहुत याद आता है।  कॉलेज  बाहर लगती ठेले की चाट मेलबर्न में रह रहीं पटना वूमंस कॉलेज की पूर्व छात्रा स्निग्धा मनचंदा बताती हैं, हमारे कॉलेज के गेट के बाहर एक अंकल ठेले पर चाट, गोलगप्पे आदि बेचा करते थे। इतना स्वाद होता था, उसमें कि क्या बताऊं। 

अच्छी बात यह भी थी कि वे साफ-सफाई का इतना ध्यान रखते थे कि कभी कोई बीमार नहीं पड़ा। इसी तरह, अशोक राजपथ पर किशोरी गोलगप्पे वाले अंकल को नहीं भूल पाती। एक छोटे से खोमचे के साथ वे सड़क किनारे खड़े होते थे और दूर तक उनके मसालेदार गोलगप्पे खाने वालों की कतार लगी होती थी। 

सेलिब्रिटी भी मिस करते मां का खाना

सच है कि किसी भी प्रकार का भोजन हो, व्यंजन या स्ट्रीट फूड, वे एक-दूसरे को जोड़ने का कार्य करते हैं। तभी तो हम मां के बनाए खाने को कभी भूल नहीं पाते। बॉलीवुड अभिनेता शाह रुख खान को आज भी मां की बनाई खट्टी दाल याद आती है। 

अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना ने हाल ही में मां डिंपल द्वारा बनाई गई फ्राइड राइस की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी और लिखा था, 46 साल में पहली बार उन्होंने मां के हाथ का स्वाद चखा और वह लाजवाब था। देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा को मक्के की रोटी और सरसों का साग इतना पसंद है कि वे इसे खाने के लिए परदेस से मुंबई स्थित मां के घर अक्सर ही पहुंच जाती हैं।  


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