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अब हवा, पानी और बिजली से बनेगा स्‍वादिष्‍ट कृत्रिम भोजन, 384 रुपये प्रति किलो लागत

सिर्फ पानी बिजली और हवा से खाद्य पदार्थ बनाने की बात सुनने में कुछ अजीब लगती है। लेकिन फिनलैंड की एक कंपनी ने पानी हवा और बिजली से एक प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ बनाया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 01:33 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 02:41 PM (IST)
अब हवा, पानी और बिजली से बनेगा स्‍वादिष्‍ट कृत्रिम भोजन, 384 रुपये प्रति किलो लागत
अब हवा, पानी और बिजली से बनेगा स्‍वादिष्‍ट कृत्रिम भोजन, 384 रुपये प्रति किलो लागत

मुकुल व्यास, नई दिल्‍ली। सिर्फ पानी, बिजली और हवा से खाद्य पदार्थ बनाने की बात सुनने में कुछ अजीब लगती है। पेड़-पौधे यह काम कुदरती तौर पर करते हैं, लेकिन इसे कृत्रिम रूप से करना एक बड़ी तकनीकी चुनौती है। फिनलैंड की एक कंपनी का दावा है कि उसने पानी, हवा और बिजली से एक ऐसा प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ बनाया है जिसका स्वाद गेहूं के आटे जैसा है। कंपनी दो साल में इसे बाजार में पहुंचाने की तैयारी कर रही है। यही नहीं इस भोजन के निर्माण में जमीन और पानी का कोई अपव्यय भी नहीं होता।

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384 रुपये प्रति किलो आएगी लागत
नई तकनीक से बने इस भोजन की लागत पांच यूरो (करीब 384 रुपये) प्रति किलो बैठेगी। फिनलैंड की सोलर फूड्स नामक कंपनी का कहना है कि वह वर्ष 2021 में इस खाद्य उत्पाद का व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने से पहले इस साल यूरोपीय संघ से फूड लाइसेंस के लिए आवेदन करेगी। कंपनी मंगल मिशन पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति करना चाहती है। इसके लिए वह यूरोपीय स्पेस एजेंसी से बात कर रही है।

थ्रीडी प्रिंटिंग से दिया जा सकता है कोई भी आकार
फिनिश कंपनी ने फिनलैंड के वीटीटी टेक्निकल रिसर्च सेंटर और लेप्पीनरांटा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोध के आधार पर इस खाद्य उत्पाद की विधि विकसित की है। कंपनी द्वारा विकसित आटे जैसे पाउडर का नाम ‘सोलेन’ रखा गया है। थ्रीडी प्रिंटिंग के जरिये इसे कोई भी आकार दिया जा सकता है या इसे किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलाया जा सकता है। इसे बनाने की विधि बीयर बनाने की प्रक्रिया जैसी है।

ऐसे किया जाता है तैयार
सोलेन बनाने के लिए जीवाणुओं को पानी में रखा जाता है और उन्हें कार्बन डाईऑक्साइड और हाइड्रोजन के बुलबुलों की खुराक दी जाती है जो बिजली के प्रयोग द्वारा पानी से मुक्त होते हैं। ये जीवाणु प्रोटीन का निर्माण करते हैं जिसे सुखाकर पाउडर तैयार किया जाता है। कंपनी के एक प्रमुख अधिकारी पासी वाइनिक्का का कहना है कि यह एकदम नई किस्म का खाद्य पदार्थ है जो बाजार में फिलहाल उपलब्ध सभी किस्म के खाद्य पदार्थों से एकदम भिन्न है। इसके लिए कृषि की आवश्यकता नहीं है।

दुनिया का सर्वाधिक पर्यावरण-अनुकूल प्रोटीन
वाइनिक्का ने कहा कि कंपनी द्वारा विकसित पदार्थ दुनिया का सर्वाधिक पर्यावरण-अनुकूल प्रोटीन है। दुनिया में उपभोग की जाने वाली तीन-चौथाई कैलोरी अभी 12 वनस्पति और पांच प्राणि प्रजातियों से प्राप्त होती है। इस समय दुनिया में एक-चौथाई कार्बन का बोझ खाद्य उत्पादन की वजह से है और भविष्य में यह और बढ़ेगा। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सदी के मध्य तक दुनिया के खाद्यान्न उत्पादन में 50-70 प्रतिशत तक वृद्धि की आवश्यकता होगी।

बनाए जा सकते हैं ब्रेड या मीट जैसे फाइबर
दुनिया की करीब आधी भूमि का उपयोग खेती के लिए होता है। वाइनिक्का की मानें तो सोलेन पाउडर का उपयोग किसी खाद्य पदार्थ के हिस्से के रूप में किया जा सकता है। इस पाउडर से ऐसे फाइबर भी निर्मित किए जा सकते हैं जो देखने में ब्रेड या मीट जैसे होंगे। फिनलैंड के वीटीटी सेंटर के वैज्ञानिक जुहा-पेक्का पिटकानेन का कहना है कि भविष्य में इस टेक्नोलॉजी का उपयोग रेगिस्तानी और सूखाग्रस्त इलाकों में किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऊर्जा की खपत की दृष्टि से बिजली से खाद्य वस्तु तैयार करने की प्रक्रिया पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की तुलना में दस गुना अधिक किफायती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) 


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