CAG की रिपोर्ट में खुलासा- मिग विमानों के टायर-ट्यूब की खरीदारी में हुई गड़बड़ी
वायु सेना के एमआई-17-IV हेलीकॉप्टरों की मरम्मत और ओवरहॉलिंग पर तीन गुना ज्यादा खर्च किया गया है। कैग की रिपोर्ट में पिछले नौ साल से चली आ रही धांधली का पर्दाफाश किया गया है।
नई दिल्ली [ एजेंसी ] । भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना के मिग लड़ाकू विमानों के टायर-ट्यूब की खरीदारी में गड़बड़ी सामने आई है। वायु सेना के एमआई-17-IV हेलीकॉप्टरों की मरम्मत और ओवरहॉलिंग पर तीन गुना ज्यादा खर्च किया गया है। कैग की रिपोर्ट में पिछले नौ साल से चली आ रही धांधली का पर्दाफाश किया गया है।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि विमान के टायर-ट्यूब पोलैंड की कंपनी से नियमों की अनदेखी करके खरीदे जाते रहे। करीब छह करोड़ रुपए के 3080 डिफेक्टिव टायर-ट्यूब खरीदे गए, जो अब इस्तेमाल में भी नहीं आ रहे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी फाइटर के टायर ट्यूब का फटना कोई सामान्य घटना नहीं है। लैंडिंग के समय टायर फट जाए तो हादसा हो जाता है। एक टायर-ट्यूब 25 से 30 बार की लैंडिंग में बेकार हो जाता है। एक टायर-ट्यूब की कीमत करीब 20 हजार रुपए होती है। पता चला कि पिछले सात साल में मिग फाइटरों के 32 टायर ट्यूब फट गए। इनमें 84 फीसद मामलों में मैटीरियल फेल निकला।
आखिर क्या है कैग की रिपोर्ट में क्या
-हेलीकॉप्टरों की मरम्मत और ओवरहॉलिंग की ढांचागत सुविधा समय से देश में स्थापित नहीं होने से तीन गुना ज्यादा खर्च होता है। यह काम केवल 196 करोड़ रुपए में हो जाता। वायु सेना ने जरूरी उपकरणों की खरीद के टेंडर और अन्य प्रक्रियाओं में देरी की, जिससे हेलीकॉप्टरों की मरम्मत विदेश में करानी पड़ी, इस पर 600 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च आया।
-हेलीकॉप्टरों की मरम्मत का 85 फीसद काम देश में मौजूद मरम्मत केंद्र पर हो ही सकता था, केवल 15 प्रतिशत के लिए 196 करोड़ रुपए से मरम्मत केंद्र बनाया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
-रिपोर्ट में कहा गया कि देश में एमआरएफ कंपनी से टायर-ट्यूब लेने की पहल वर्ष 2010 में हुई थी। एमआरएफ ने वायु सेना से सैंपल मांगा।
- वायु सेना मुख्यालय ने 11माह विलंब से जवाब भेजा। एमआरएफ को यह बताया गया कि मिग की तो लाइफ ही खत्म हो रही है, ऐसे में टायर-ट्यूब क्यों बनाए जाएं, जो मिग बचे हैं, उनके लिए भंडार में पर्याप्त टायर-ट्यूब हैं। इसके कुछ ही माह बाद वायु सेना ने 11,425 टायर-ट्यूब का ऑर्डर पोलैंड की सिनजेन को भेजा।
एमआई-17-4 हेलीकॉप्टर
इनका इस्तेमाल सैनिकों व रक्षा साजो-सामान को लाने-ले जाने में किया जाता है। एमआई-17-IV हेलीकॉप्टर एमआई-17 का उन्नत संस्करण है। एमआई-17-IV हेलीकॉप्टर 2000 से 2003 के बीच खरीदे गए थे।
डीआरडीओ पर उठाया सवाल
कैग ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा ड्रोन के विकास में देरी पर भी प्रश्न उठाए हैं। कैग ने कहा कि ड्रोन परियोजना के समय पर पूरा नहीं होने से 1000 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होने के बावजूद सेना को ड्रोन नहीं मिले और हवाई निगरानी क्षमता प्रभावित हुई है।