डरें नहीं, हम सभी सतर्क रहें; भारत में ओमिक्रोन के असर को लेकर ये तीन थ्योरी कर रही है काम
वरिष्ठ मुख्य विज्ञानी (सीएसआइआर) बोलीं ओमिक्रोन.. इस शब्द ने अपनी सहज दिनचर्या में लौट रही दुनिया को एक बार फिर अलर्ट मोड में ला दिया है। यह अच्छी बात है कि हमें जिस शत्रु (वायरस) से लड़ना है उसकी गतिविधियों को लेकर हम पहले से ही सतर्क हैं।
डा गीता वाणी रायसम। कोविड सार्स-कोव-2 के निदान का सबसे स्वीकृत और सर्वमान्य तकनीक आरटीपीसीआर विधि है। यह विधि वायरस की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए वायरस में विशिष्ट जीन का पता लगाती है, जैसे स्पाइक (एस), एनवेल्पड (ई) और न्यूक्लियोकैप्सिड (एन)। हालांकि, ओमिक्रोन के मामले में, चूंकि एस जीन बहुत अधिक उत्परिवर्तित (म्यूटेड) होता है, कुछ प्राइमरों से एस जीन की अनुपस्थिति का संकेत मिलता है (जिसे एस जीन ड्राप आउट कहा जाता है)। इस एस जीन ड्राप आउट का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की आवश्यकता होती है।
भारत पर ओमिक्रोन के असर को लेकर तीन थ्योरी काम कर रही है। पहली, सीरो सर्वे में बड़ी संख्या में पाजिटिविटी रेट। दूसरी, 50 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन के दोनों डोज लगना और तीसरी, डेल्टा वैरिएंट का संक्रमण व्यापक स्तर पर फैलने से लोगों में स्वत: इम्युनिटी विकसित होना है। यह संभावना जताई जा रही है कि यदि ओमिक्रोन का संक्रमण बढ़ा भी तो ये तीन कवच उसकी गंभीरता को कम कर सकते हैं। इसके अलावा बूस्टर डोज, क्लिनिकल ट्रायल पर काम चल रहा है। वर्तमान में यह अध्ययन सामान्य वायरस को लेकर हो रहा है, लेकिन भविष्य में ओमिक्रोन पर इसके असर को लेकर चर्चा हो सकती है।
इसके अलावा 108 आक्सीजन प्लांट, फेलूदा किट, खास तरह के वेंटिलेटर्स, यूवी डिसइंफेक्शन डिवाइस की सीएसआइआर की तकनीक उद्योगों के साथ साझा किया गया है। आपात स्थिति से निपटने के लिए यह सभी चीजें अब उपलब्ध हैं। तथ्यों का आकलन और आंकड़ों का अध्ययन किए बगैर डरने-घबराने की जरूरत नहीं है। इंतजार कीजिए, इस बार भी भारत और दुनिया के विज्ञानी मिलकर हल ढूंढ ही लेंगे।
ओमिक्रोन.. इस शब्द ने अपनी सहज दिनचर्या में लौट रही दुनिया को एक बार फिर अलर्ट मोड में ला दिया है। यह अच्छी बात है कि हमें जिस शत्रु (वायरस) से लड़ना है, उसकी गतिविधियों को लेकर हम पहले से ही सतर्क हैं।
(वरिष्ठ मुख्य विज्ञानी, सीएसआइआर, नई दिल्ली)