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विदेशी दुकानों का रास्ता साफ

ससंद ने भारत के खुदरा कारोबार में वॉलमार्ट, कारफू जैसी बड़ी विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता साफ कर दिया है। बसपा के खुले और सपा के छुपे समर्थन के सहारे सरकार ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ के खिलाफ विपक्ष के प्रस्ताव को राज्यसभा में 102 के मुकाबले 123 मतों से पराजित करने में सफलता हासिल कर ली है। इससे खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। एफडीआइ के खिलाफ आए इस प्रस्ताव पर कुल 225 सदस्यों ने अपना मत दर्ज कराया, जबकि 1

By Edited By: Published: Fri, 07 Dec 2012 08:14 AM (IST)Updated: Fri, 07 Dec 2012 11:02 PM (IST)
विदेशी दुकानों का रास्ता साफ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ससंद ने भारत के खुदरा कारोबार में वॉलमार्ट, कारफू जैसी बड़ी विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता साफ कर दिया है। बसपा के खुले और सपा के छुपे समर्थन के सहारे सरकार ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ के खिलाफ विपक्ष के प्रस्ताव को राज्यसभा में 102 के मुकाबले 123 मतों से पराजित करने में सफलता हासिल कर ली है। इससे खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। एफडीआइ के खिलाफ आए इस प्रस्ताव पर कुल 225 सदस्यों ने अपना मत दर्ज कराया, जबकि 19 सदस्य या तो अनुपस्थित रहे या उन्होंने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

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बसपा अध्यक्ष मायावती से मिले समर्थन के आश्वासन के बाद सरकार के लिए शुक्रवार का मतदान महज संसदीय औपचारिकता रह गया था। खुदरा एफडीआइ के खिलाफ समाजवादी पार्टी के नौ सांसदों के बहिर्गमन से घटी सदन की संख्या ने सरकार के लिए परीक्षा और आसान बना दी। उच्चसदन में 123 मतों के साथ हुई जीत के बाद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि यह सुधारों के लिए संसद का समर्थन है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के लिए 51 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी खोलने का विरोध कर रहे विपक्ष ने इसे सरकार की नैतिक हार करार दिया। राज्यसभा में विरोध प्रस्ताव लाने वाले अन्नाद्रमुक नेता वी. मैत्रेयन ने कहा कि सदन में मौजूद 34 दलों में 20 से अधिक ने इस नीति के विरोध में राय जताई है। वहीं, मतविभाजन के बाद भाजपा ने आरोप लगाया कि सरकार ने जोड़-तोड़ से मत हासिल किए हैं। इससे पहले दो दिन चली बहस का जवाब देते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार ने किसान व व्यापारी संघों और राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद ही यह कदम उठाया है।

सरकार के फैसले को सही बताते हुए उन्होंने कहा कि विपक्ष सुविधा की राजनीति कर रहा है। राजग सरकार के समय रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश का फैसला लिया गया था।

मतदान से पहले संसदीय समीकरणों को साधने की जुगत में खुद प्रधानमंत्री और उनके सिपहसालार राजनीतिक दलों व सांसदों को साधते नजर आए। शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मनोनीत व निर्दलीय सांसदों से भी मुलाकात की। फिल्म अभिनेत्री रेखा समेत मनोनीत सांसदों के मत सरकार के साथ दिखे। वहीं, विपक्षी खेमे में कई दरारें नजर आई।

तेलगु देशम पार्टी के पांच सांसदों में तीन ने मत नहीं दिए। इसमें पार्टी के संसदीय नेता देवेंद्र गौड़ भी शामिल थे। दो दिन पहले सरकार लोकसभा में खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ को लेकर आंकड़ों की परीक्षा पास कर चुकी थी। सरकार ने विदेशी किराना स्टोर को इजाजत देने का फैसला राज्यों पर छोड़ा है। सरकार की इसी दलील का सहरा लेकर क्षेत्रीय दलों ने प्रस्ताव पर सरकार का साथ दिया।

सदन की कुल संख्या 245 सदस्य

मौजूदा संख्या 244 सदस्य

मतदान में हिस्सेदारी 225 सदस्य

पक्ष में 102 सदस्य

विरोध में 123 सदस्य

अनुपस्थित या मतदान में हिस्सेदारी नहीं 19 सदस्य

केवल दस शहरों में खुल पाएंगे विदेशी स्टोर

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली।

खुदरा में जिस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआइ] के लिए केंद्र सरकार ने अपने सबसे बड़े सहयोगी तृणमूल कांग्रेस को खोया, जिसके कारण भारत बंद हुआ और फिर संसद के शीतकालीन सत्र में कई शुरुआती दिन बर्बाद हुए उसका असर सिर्फ देश के दस शहरों में दिखेगा। रिटेल में एफडीआइ संबंधी अधिसूचना के अनुसार विदेशी स्टोर केवल दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में ही खोलने की इजाजत होगी। इसके अतिरिक्त जो राज्य सरकारें रिटेल में एफडीआइ के विरोध में हैं, उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

विदेशी स्टोर खोलने को अब तक केवल 11 राज्यों व केंद्र शासित प्रांतों ने अनुमति दी है। इनमें आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, राजस्थान, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दमन और दियू तथा दादर और नागर हवेली शामिल हैं। कांग्रेस शासित राज्य केरल ने भी अब तक रिटेल में एफडीआइ को इजाजत नहीं दी है। केंद्र सरकार ने पहले यह दावा किया था कि महाराष्ट्र सरकार भी अपने यहां विदेशी दुकानों को खोलने के लिए तैयार है, लेकिन राज्य की सत्ता में साझेदार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [राकांपा] के एतराज के बाद मामला खटाई में नजर आने लगा है। यदि महाराष्ट्र सरकार सहमत होती तो मुंबई, पुणे, नाशिक, नागपुर, औरंगाबाद और वसई-विरार सहित देश के 16 शहरों में विदेशी दुकानें खुल सकती थीं।

अब 122 करोड़ आबादी वाले देश में ऐसे शहरों की संख्या केवल दस रह गई है। महाराष्ट्र सरकार अपने रुख पर कायम रही, तो रिटेल कारोबार में विदेशी कंपनियों को आकर्षित करना मुश्किल होगा। उन्हें यह समझा पाना आसान नहीं होगा कि वे देश की वित्तीय राजधानी में कारोबार क्यों नहीं कर सकतीं?

सब कुछ ठीक रहा तो दिल्ली, हैदराबाद, विजयवाड़ा, फरीदाबाद, श्रीनगर, जोधपुर, चंडीगढ़, कोटा समेत दस शहरों में ही विदेशी किराना दुकानें यानी वॅालमार्ट, टेस्को, कारफू आदि के सुपर स्टोर खुल पाएंगे। जबकि देश में दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 53 है। केंद्र सरकार छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए दस लाख की शर्त में रियायत देने पर विचार कर रही है, लेकिन इसकी संभावना कम है कि विदेशी कंपनियां छोटे शहरों की ओर रुख करेंगी।

यह भी माना जा रहा है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में, खासकर रिटेल में एफडीआइ का विरोध करने वाले दलों की ओर से विदेशी स्टोरों को अपने राज्यों में न घुसने देने और उनमें आग लगा देने जैसी धमकियों को देखते हुए इसके आसार कम हैं कि विदेशी कंपनिया भारत में निवेश का तत्काल कोई फैसला लेंगी। जानकारों का कहना है कि विदेशी कंपनियां अगले लोकसभा चुनाव तक इंतजार कर सकती हैं। ऐसा हुआ तो फिर न केवल सरकार की सारी कवायद पर पानी फिर जाएगा, बल्कि इसके बहाने एक क्रांतिकारी आर्थिक सुधार का दावा भी व्यर्थ साबित होगा।

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