पिता चलाते हैं ऑटो रिक्शा, बच्चों ने कमाया आइआइटी में नाम
मेरे मम्मी-पापा ने हम भाई-बहनों को पढ़ाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। पापा खुद दसवीं तक पढ़ सके थे, लेकिन बावजूद इसके वह खुद हम भाई-बहनों को ट्यूशन देते थे।
ग्वालियर [दीपक सविता]। गरीबी की आग में तपकर जब सोना निकलता है तो उसकी चमक समाज में किस कदर बिखरती है, इसकी बानगी ग्वालियर की सड़कों पर ऑटो चलाने वाले सोहनलाल वर्मा के पांच बच्चे हैं। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा इंजीनियर बन चुके हैं। बड़ी बेटी आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) रुड़की में प्रोजेक्ट एसोसिएट बन गई है। दो बेटियां बीटेक कर रही हैं और इकलौता बेटा आइआइटी रुड़की से इसी साल बीटेक कर बेंगलुरु में दस लाख रुपये सालाना का पैकेज हासिल कर चुका है। सबसे छोटी बेटी ने दसवीं की परीक्षा 88 प्रतिशत अंकों से पास की है।
खुद दसवीं तक पढ़े हैं पिता
सोहनलाल के बेटे सूर्यकांत बताते हैं, कभी इतने भी पैसे नहीं थे कि कोचिंग की महज आठ हजार फीस भर पाएं, लेकिन आज दस लाख रुपये सालाना के पैकेज से करियर की शुरुआत करने जा रहा हूं। मेरे मम्मी-पापा ने हम भाई-बहनों को पढ़ाने-लिखाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। पापा खुद दसवीं तक पढ़ सके थे, लेकिन बावजूद इसके वह खुद हम भाई-बहनों को ट्यूशन देते थे। सुबह ऑटो लेकर निकलने से पहले होमवर्क भी दे जाते थे और रात में घर लौटने पर उसे जांचते थे। मम्मी पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन उन्होंने हमारी पढ़ाई- लिखाई को पूरी गंभीरता से लिया।
चूहा दौड़ में कैसे मारी बाजी
आज हर अभिभावक अपने बच्चों को इंजीनियर बनाना चाहता है। तगड़ी चुनौती है। इस कड़ी होड़ में एक ऑटो ड्राइवर अपने चार-चार बच्चों को मंजिल तक पहुंचा देता है। कैसे? सोहनलाल सीधा जवाब देते हैं। कहते हैं, बचपन से दी गई सीख जीवन भर काम आती है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे बच्चों ने इस पर अमल किया। रही बात पैसों की, तो होशियार बच्चे अपनी राह बना ही लेते हैं।
सरकारी स्कूल में पढ़े
सूर्यकांत बताते हैं, हम सभी भाई-बहन सरकारी स्कूल में ही पढ़े हैं। पापा ने बचपन से ही हमें गणित, अंग्रेजी और साइंस की बुनियादी बातें ठीक तरह से समझाईं और नियमित अभ्यास की आदत डाली। इससे हमारा आधार मजबूत हुआ और आगे की कक्षाओं में हमें दिक्कत नहीं आई। सूर्यकांत ने बताया कि सोहनलाल दिन में ऑटो चलाते थे, वहीं शाम को मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। मम्मी मीरा देवी सिलाई का काम कर पैसे जोड़ती थीं। बड़ी बेटी नीलू ने एमआइटीएस से इंजीनियरिंग की है। जानकी और मोनिका जीवाजी विवि से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही हैं।
लौटा रहा हूं समाज का कर्ज
सूर्यकांत ने वंचित वर्ग के बच्चों को आइआइटी प्रवेश परीक्षा की कोचिंग देने के लिए ग्वालियर में एक बेहतर व्यवस्था बना दी है। वह कहते हैं, 10वीं में अच्छे अंक आने के बाद एनजीओ दक्षिणा फाउंडेशन ने मेरी पढ़ाई का खर्च उठाया था। इसके बाद मेरा सेलेक्शन आनंद सर की सुपर-30 कोचिंग में हुआ। वहां मुझे एक माह आइआइटी की नि:शुल्क कोचिंग मिली। समाज ने मेरी मदद की, अब मेरी बारी है। इसके लिए मैं ई-क्वांटम नामक एक चेन तैयार कर रहा हूं, जिसमें फिलहाल मैं और आइआइटी से निकले मेरे कुछ दोस्त ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में बच्चों को आइआइटी प्रवेश परीक्षा की निशुल्क कोचिंग दिया करेंगे।
कीचड़ से निकल कोई पीछे नहीं देखना चाहता कि उस जैसे कितने लोग और फंसे हुए हैं। मुझे मेरे माता-पिता ने, नवोदय स्कूल, दक्षिणा फाउंडेशन और आनंद सर जैसे हमदर्द लोगों ने कीचड़ से निकलने में मदद की। अब मैं भी जीवन भर यही प्रयास करूंगा।
-इंजी. सूर्यकांत वर्मा, आइआइटी रुड़की से बीटेक