बूटा की तरह न हो बंसल मामले का हश्र
रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे को
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। रेल मंत्री पवन बंसल के भांजे को 90 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर सीबीआइ वाहवाही लूट रही है, लेकिन एजेंसी के ही कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को आशंका है कि कहीं इस मामले का हश्र भी बूटा सिंह के केस की तरह न हो।
2009 में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के बेटे को एक करोड़ रुपये की रिश्वत लेते रंगेहाथ गिरफ्तार करने के बावजूद सीबीआइ उनके खिलाफ पर्याप्त सुबूत नहीं जुटा पाई थी। आखिरकार जांच एजेंसी को बूटा सिंह को क्लीन चिट देनी पड़ी थी।
सीबीआइ की मुंबई शाखा ने 31 जुलाई, 2009 को बूटा के बेटे स्वीटी को नाशिक के एक ठेकेदार से एक करोड़ रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था। जांच एजेंसी की एफआइआर के अनुसार ठेकेदार रामराव पाटिल के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में दलित उत्पीड़न का केस चल रहा था। इसी केस को बंद कराने के लिए उसने स्वीटी को रिश्वत दी थी। उस समय सीबीआइ बूटा सिंह के खिलाफ पर्याप्त सुबूत होने का दावा कर रही थी। लेकिन, इस दावे को साबित करने के लिए वह ठोस दस्तावेज नहीं जुटा पाई। जांच एजेंसी ने इस मामले में बूटा से पूछताछ भी की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। छह महीने की जांच के बाद एजेंसी ने केवल स्वीटी, रामराव पाटिल और दो अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। चार्जशीट में बूटा सिंह का कहीं भी नाम नहीं था।
बंसल मामले का हश्र भी बूटा सिंह के केस की तरह होने की आशंका जताते हुए एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने के मामलों में असली लाभार्थी तक पहुंचना मुश्किल होता है। खासकर जब रिश्वत देने और लेने वाले दोनों मिले हुए हों। जांच अधिकारियों की तमाम कोशिश के बावजूद आरोपी असली लाभार्थी का नाम नहीं खोलता। रंगे हाथों गिरफ्तारी के उन मामलों में सजा होती है, जहां रिश्वत देने वाला ही सीबीआइ के साथ हो। जाहिर है इस मामले में बंसल के खिलाफ सुबूत जुटाना सीबाआइ के लिए बड़ी चुनौती होगी। वैसे उनसे इस मामले में जल्द ही पूछताछ की जा सकती है।
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