दलहन की रिकॉर्डतोड़ पैदावार किसानों पर पड़ रही भारी
दालों की उपलब्धता बनाये रखने के लिए केंद्र राज्यों को साथ लेकर चलना चाहेगा।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। दलहन की कमी को पूरा करने के लिए किसानों को सरकार के प्रोत्साहन से दालों की पैदावार ने नई ऊंचाइयां छू तो लिया, लेकिन उनकी यही सफलता अब भारी पड़ने लगी है। इसी समस्या के समाधान के लिए सरकार ने दालों के निर्यात पर लगी रोक हटा लिया है। लेकिन इससे समस्या के सुलझने पर संदेह है। बाजार में दलहन के मूल्य के आसार कम ही हैं।
दलहन कारोबारियों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय दालों की मांग बहुत कम है। दुनिया के कई देशों में दलहन खेती सिर्फ भारत की मांग को पूरा करने के लिए की जाती है। लिहाजा घरेलू आपूर्ति बढ़ने अथवा आयात कम होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में दलहन की कीमतें और घटेंगी। नजीर के तौर पर मटर के आयात पर 50 फीसद आयात शुल्क लगाने के प्रावधान के बाद विश्व बाजार में मटर की कीमतों में 60 डॉलर प्रति टन कम हो गई हैं। मटर का भाव 300 डॉलर प्रति टन से कम होकर 240 डॉलर रह गया है।
दलहन बाजार के जानकारों की मानें तो दलहन की बाकी उपज के आयात पर रोक लगाये बगैर घरेलू बाजारों के मूल्य में सुधार नहीं होने वाला है। चना, अरहर, उड़द, मसूर और मंगू जैसी प्रमुख दालों के आयात पर कोई रोकटोक नहीं है। इन जिंसों के आयात को शुल्क मुक्त रखा गया है। सूत्रों का कहना है कि चना आयात जारी है, जिसका डेढ़ लाख टन चना किसी भी समय बंदरगाहों पर पहुंच सकता है। सरकार ने विभिन्न दालों पर अलग-अलग प्रावधान कर रखा है। उड़द और मूंग जैसी दालों पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाया गया है।
पिछले दो तीन सालों से दालों की मांग को पूरा करने के लिए सरकार ने किसानों को भरपूर प्रोत्साहन दिया है। उन्नतशील बीज, प्रौद्योगिकी, खाद, कीटनाशकों की समुचित आपूर्ति के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी इजाफा होने से दलहन खेती का रकबा में वृद्धि हुई और उत्पादकता में सुधार हुआ। लिहाजा रिकॉर्डतोड़ पैदावार हुई। सरकार ने पहली बार बफर स्टॉक बनाकर दालों की सरकारी खरीद शुरु की। सरकारी खरीद होने से जमाखोर और काला बाजारी करने वालों को करारा धक्का लगा। गेहूं व चावल की खरीद की तर्ज पर 20 लाख टन दलहन की खरीद की गई। लेकिन दालों की आपूर्ति घरेलू खपत के मुकाबले कहीं अधिक हो गई।
इसके बावजूद पैदावार अधिक होने का नुकसान किसानों को उठाना पड़ रहा है। दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे पहुंच गई हैं। कीमतों में गिरावट का यह मंजर लगभग सभी राज्यों की मंडियों में देखने को मिल रहा है। बाजार में कीमतों में सुधार के लिए दालों के आयात पर फिलहाल प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। हालांकि सरकार ऐसे सख्त कदम उठाने से पहले पूरी स्थिति की समीक्षा कर रही है।
बफर स्टॉक में केंद्र के साथ राज्य भी खरीदेंगे दाल
दालों की पैदावार बढ़ जाने से किसानों के साथ सरकार की हालत भी पतली हो गई है। दाल के बफर स्टॉक की पुरानी दालों को ठिकाने लगाना बड़ी चुनौती बन गया है। सूत्रों के मुताबिक दालों की खरीद से केंद्र हाथ खींच सकता है। इसकी जगह दालों की सरकारी खरीद का जिम्मा राज्यों को सौंपा जा सकता है। राज्य अपनी जरूरत के हिसाब से सीजन में दालें खरीदकर रखें। इसके लिए वित्तीय मदद केंद्र सरकार देती रहेगी। इस मसले पर सचिवों की अंतर मंत्रालयी समिति विचार कर रही है।
दरअसल, बफर स्टॉक की दालों को ठिकाने लगाने में केंद्र को पसीना आने लगा है। बफर स्टॉक के लिए 90 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदी गई दालों को राज्य 40 से 45 रुपये प्रति किलो से अधिक देने को तैयार नहीं हो रहे हैं। दालों की उपलब्धता बनाये रखने के लिए केंद्र राज्यों को साथ लेकर चलना चाहेगा। महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्र ने मूल्य स्थिरीकरण फंड (पीएसएफ) का गठन किया है। राज्यों को इसके उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। फिलहाल आंध्र प्रदेश को छोड़कर कोई राज्य इसका उपयोग नहीं कर रहा है। इसी तरह कीमतों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत नीचे आ जाने की दशा में बाजार हस्तक्षेप योजना है, जिसमें जिंसों की खरीद की जा सकती है।
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