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आरसेप संधि पर सरकार की चुप्पी से किसान संगठनों में आक्रोश, देशव्यापी संघर्ष का एलान

सोलह देशों की रीजनल कंप्रहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप (आरसेप) की बैठक में भारत की ओर से लगातार साधी जा रही चुप्पी पर किसान संगठनों ने सख्त नाराजगी जताई है।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 08:01 PM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 08:01 PM (IST)
आरसेप संधि पर सरकार की चुप्पी से किसान संगठनों में आक्रोश, देशव्यापी संघर्ष का एलान
आरसेप संधि पर सरकार की चुप्पी से किसान संगठनों में आक्रोश, देशव्यापी संघर्ष का एलान

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सोलह देशों की रीजनल कंप्रहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप (आरसेप) की बैठक में भारत की ओर से लगातार साधी जा रही चुप्पी पर किसान संगठनों ने सख्त नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि मुक्त व्यापार समझौते पर भारत ने दस्तखत किया तो घरेलू किसानों की कमर टूट जाएगी। लगभग 10 करोड़ छोटे व भूमिहीन किसानों के समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाएगा। चार नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बैठक में शिरकत करेंगे। बैठक में जिन वस्तुओं के शुल्क मुक्त आयात निर्यात पर फैसला होने वाला है, उनमें कृषि उत्पाद प्रमुख हैं।

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देश में किसान संगठनों के साथ विपक्षी दलों के कड़े विरोधों के बीच सोलह देशों की रीजनल कंप्रहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप (आरसेप) की बैठक में मुक्त व्यापार के मुद्दे पर भारत भी हिस्सा ले रहा है। नाराज किसान संगठनों ने आरसेप की बैठक में संधि पत्र पर होने वाले दस्तखत के दिन चार नवंबर को देशव्यापी प्रदर्शन का एलान किया है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अध्यक्ष वीएम सिंह का कहना है कि आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे डेयरी उत्पादक देशों से घरेलू बाजार में डेयरी उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी, जो हमारे किसानों की आजीविका पर सीधा हमला होगा। संकट के दौर से गुजर रहे किसानों के हित संरक्षण के लिए किसान संगठन चुप नहीं बैठेंगे। किसान नेता आयोजित एक प्रेसवार्ता में बोल रहे थे।

किसान शेतकारी संगठन के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने कहा कि ज्यादातर छोटे व भूमिहीन किसानों की रोजी रोटी पशु पालन और दुग्ध उत्पादन से होती है। ऐसी संधि से तो हमारे किसानों का बहुत नुकसान होगा, जिसका अंदाजा सरकार को नहीं है। किसान नेता जितेंद्र ने कहा कि आरसेप को लेकर सरकार की ओर से बरती जा रही गोपनीयता से संदेह पुख्ता होता जा रहा है। वहीं, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'इस तरह की संधि का पता तो किसानों को होना चाहिए। घरेलू बाजार में तो पहले से ही किसान को उसकी उपज का मूल्य नहीं मिल रहा है और अब बाजार में बाहर के उत्पादों की आवक से उनकी हालत और पस्त होगी। ताजा गणना में पशुओं की संख्या में लगातार गिरावट आई है। किसानों की कमर तोड़ने वाले इस तरह के फैसले को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।'

किसान नेता वीएम सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि किसानों के मुद्दे पर जो भी उनके साथ आंदोलन में आयेगा, उसका स्वागत है। दरअसल, संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने भी इस तरह के किसी फैसले को लेकर अपना रुख पहले ही जाहिर कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक, आरसेप में होने वाले समझौते में एशियाई देशों के लिए 90 फीसद वस्तुएं और चीन, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के लिए 74 फीसद वस्तुएं शुल्क मुक्त हो सकती हैं।


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