60 हजार करोड़ रुपए के कर्ज में किसान, 75 फीसदी नियमित अदाकर्ता
कर्ज से हमेशा के लिए मुक्ति का सिर्फ एक रास्ता है कि किसान को लागत मूल्य मिले। साथ ही लागत घटाने की दिशा में काम करना होगा।
भोपाल, नईदुनिया। उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र के बाद मध्यप्रदेश में भी कर्जमाफी की बात जोर-शोर से उठने लगी है। किसान संगठन इस मांग को लेकर न सिर्फ मुखर हो रहे हैं, बल्कि आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े हैं। प्रदेश में किसानों पर लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें 75 फीसद किसान सहकारी और राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज लेकर वापस लौटा देते हैं, जबकि 25 फीसदी डिफॉल्टर की श्रेणी में हैं।
सरकार सहकारी बैंकों के कर्जदार किसानों को मुख्यधारा में लाने के लिए समाधान योजना बना रही है। प्रदेश में एक करोड़ से ज्यादा किसान हैं। इनमें 67 फीसदी पांच एकड़ से कम जमीन पर खेती करते हैं। इन्हें खाद, बीज सहित खेती के अन्य कामों के लिए बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है। वित्त और सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किसानों के ऊपर 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। 38 जिला सहकारी बैंक 15 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हर साल 15-16 लाख किसानों को कर्ज में देता है। 6 लाख किसान डिफॉल्टर हो चुके हैं। इसी तरह राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के एक लाख से ज्यादा किसान कर्जदार हैं। राष्ट्रीयकृत बैंक से भी लाखों किसानों को कर्ज ले रखा है।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में अधिकारियों ने बताया कि 75 फीसदी से ज्यादा किसान नियमित कर्ज की अदायगी करते हैं। सीजन पर कर्ज लेते हैं और फसल आने पर उसे लौटा कर दोबारा कर्ज ले लेते हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कर्ज लेना और उसे चुकाकर फिर कर्ज लेने का क्रम चलता रहता है। उत्पादन की स्थिति में सुधार होने से किसान की कर्ज लौटाने की क्षमता बढ़ी है।
ब्याज प्रतिपूर्ति के नहीं मिले दो हजार करोड़ रुपए
मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि केंद्र ने इस साल अब तक ब्याज प्रतिपूर्ति की राशि नहीं दी है। ये राशि नाबार्ड के माध्यम से मिलती है। केंद्र नियमित रूप से कर्ज चुकाने वाले किसानों को लगने वाले ब्याज में तीन प्रतिशत की प्रतिपूर्ति करती है। जबकि, समय से पहले कर्ज चुकाने वाले किसानों को दो प्रतिशत ब्याज की छूट बतौर प्रोत्साहन दी जाती है। ये राशि दो हजार करोड़ रुपए के आसपास होती है, जो अभी तक राज्य को नहीं मिली है। इसको लेकर केंद्र को पत्र भी भेजा जा चुका है।
हर किसान पर 47 हजार रुपए औसत कर्ज
डॉ.कौशल पूर्व कृषिष संचालक डॉ.जीएस कौशल का कहना है कि रिपोर्ट के मुताबिक, किसान के ऊपर औसत कर्ज 47 हजार रुपए के आसपास है। इससे मुक्ति का सिर्फ एक रास्ता है कि किसान को लागत मूल्य मिले। साथ ही लागत घटाने की दिशा में काम करना होगा। ऐसा तंत्र बनाना होगा कि बीज और खाद किसान का होगा। प्रसंस्करण से उसे जो़ड़ा जाए। जैविक खेती इसमें बड़ी भूमिका निभा सकती है। ये भ्रम है कि जैविक खेती महंगी है और इसमें उत्पादन कम होता है।
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