Move to Jagran APP

जलवायु परिवर्तन से 25 फीसद तक घट सकती है किसानों की आमदनी

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र के सह उद्यम को तरजीह दे की बात कही गई है। मूल खेती से किसानों को मोह भी भंग होने लगा है।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 29 Jan 2018 08:40 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jan 2018 08:40 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन से 25 फीसद तक घट सकती है किसानों की आमदनी
जलवायु परिवर्तन से 25 फीसद तक घट सकती है किसानों की आमदनी

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। 'का बरखा जब कृषि सुखानी...' गोस्वामी तुलसीदास की इन्हीं पंक्तियों से कृषि के मौजूदा हालात का अनुमान आर्थिक सर्वेक्षण में लगाया गया है। संसद में सोमवार को पेश सर्वेक्षण में कृषि के समक्ष आने वाली गंभीर चुनौतियों का ब्यौरा दिया गया है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों वाली घरेलू कृषि पर जहां जनसंख्या का जबर्दस्त दबाव है, वहीं जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रही खेती की उत्पादकता बढ़ाने व उपज का उचित मूल्य दिलाने की चुनौती है। आगामी आम बजट में सरकार इन्हीं चुनौतियों से निपटने वाले प्रावधान कर सकती है।

loksabha election banner

बकौल, सर्वेक्षण जलवायु परिवर्तन की आपदा से असिंचित खेती बुरी तरह प्रभावित होगी। अनुमान के मुताबिक, कृषि क्षेत्र की सालाना आमदनी में जहां औसतन 15 से 18 फीसद की कमी दर्ज की जा सकती है, वहीं असिंचित क्षेत्र में यह कमी 20 से 25 फीसद तक बढ़ सकती है। कृषि क्षेत्र के लिए यह गंभीर चुनौती है, जिससे निपटने के उपाय पर सरकार विचार करेगी।

सर्वेक्षण के मुताबिक, बढ़ती आबादी के बोझ से चरमराती खेती के लिए घटती जमीन, कम होता पानी, उर्वरता क्षमता और मौसम के बिगड़ते मिजाज से अनियमित बारिश, बढ़ते तापमान से उत्पादकता को बढ़ा पाना दूर की कौड़ी साबित होगा। हालांकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को थामने के लिए सीमित जल संसाधनों के बावजूद ड्रिप व स्प्रिंकलर टेक्नोलॉजी का प्रयोग कारगर साबित हो सकता है।

ऊर्जा और फर्टिलाइजर में गैरजरूरी सब्सिडी को खत्म करने उसे सीधे किसान की आमदनी से जोड़ने की जरूरत पर बल दिया गया है। सर्वेक्षण में अनाज वाली फसलों की खेती नीति की समीक्षा की जरूरत बताई गई है। भारत में खाद्य सुरक्षा, गरीबी दूर करने और देश की आर्थिक स्थिति को बनाये रखने की भूमिका अहम है। उत्पादकता में सुधार के लिए बीज व खाद, सिंचाई और मशीनों के प्रयोग किया जा सकता है।

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र के सह उद्यम को तरजीह दे की बात कही गई है। मूल खेती से किसानों को मोह भी भंग होने लगा है। राष्ट्रीय स्तर पर 50 फीसद से अधिक खेती बारिश पर निर्भर है, जो तापमान बढ़ने से बुरी तरह प्रभावित होगी। पंजाब और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं, जहां 50 फीसद से अधिक खेती सिंचित है। सिंचित क्षेत्रों को बढ़ाकर उत्पादकता बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं।

वर्ष 2019 तक चरणबद्ध तरीके से 76 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य है। देश में दो तरह की खेती होती है। पहली उत्तर भारत में जहां पूरी तरह सिंचित, हर तरह के इनपुट से संपन्न और उचित मूल्य पर सरकारी खरीद की पूरी गारंटी वाले अनाज की पैदावार होती है। दूसरी खेती सेंट्रल व पश्चिमी व दक्षिण भारत में होती है, जहां विभिन्न तरह की कठिनाइयां हैं। कम सिंचाई वाले क्षेत्र, बारिश पर निर्भरता, सरकारी खरीद से दूर और अनुसंधान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश का अभाव, प्रोसेसिंग की कमी से जूझ रहे हैं।

दूसरी हरितक्रांति की विकास दर दो फीसद से नीचे ही रही है। जलवायु परिवर्तन से मानसून की चाल और होने वाली बारिश में भारी बदलाव दर्ज किया गया है। बरसात का असमान वितरण प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों को बहुत प्रभावित कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर किसान की आमदनी में 6.2 फीसद की कमी खरीफ सीजन में दर्ज की जाती है, जबकि असिंचित जिलों में रबी सीजन में 6 फीसद की कमी हो जाती है। इसी तरह सालभर में खरीफ सीजन में एक सौ मिमी कम बारिश होने पर 15 फीसद और रबी सीजन 7 फीसद की आमदनी घट जाती है। रिपोर्ट कहती है, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से कम सिंचित क्षेत्र वाले राज्य कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड सबसे अधिक प्रभावित होंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.