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Farmers Day 2020: किसानों के विरोध और सरकार के बीच फंसा कृषि कानून, जानें- पर्दे के पीछे की कहानी

नए कृषि कानून पर खींची तलवारों को फिलहाल दोनों में से कोई भी पक्ष वापस मियान में डालता दिखाई नहीं दे रहा है। इस बीच पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है। इसको भी समझना जरूरी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 22 Dec 2020 03:34 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 08:39 AM (IST)
Farmers Day 2020: किसानों के विरोध और सरकार के बीच फंसा कृषि कानून, जानें- पर्दे के पीछे की कहानी
जानें क्‍या है विरोध और कानून के पीछे की कहानी

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। किसानों और केंद्र सरकार के बीच जारी गतिरोध थमता नहीं दिख रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद समाधान की उम्मीद दिखी है, लेकिन अभी भी कोई पक्ष अपनी बात से पीछे हटता नहीं दिखता है। केंद्र सरकार का मानना है कि इन तीनों कृषि सुधार कानूनों से बिचौलिए खत्म होंगे और किसानों की आय में इजाफा होगा। किसान इस बात पर अड़े हैं कि सरकार इनके जरिये कृषि को दी जा रही मदद सेड पिंड छुड़ाना चाह रही है। इससे बिचौलियों की जगह ज्यादा ताकतवर कारपोरेट घराने के आने का भी खतरा है। यह तो तय है कि इन तीनों कृषि सुधार कानूनों से बाजार की ताकतों और निजी क्षेत्र की भूमिका कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी, क्योंकि इससे कांट्रैक्ट खेती को मिलेगी, खाद्य सामग्री को कहीं भी बेचने या भंडारण करने की भी इसमें सहूलियत दी गई है। ऐसे में कुछ अहम बिंदु इन कानूनों की अहमियत पर प्रकाश डालते हैं।

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पर्याप्त खाद्यान्न अपर्याप्त पोषण

गरीबों में वितरित करने के लिए अनाजों की खरीद प्रक्रिया में सरकार के आने की जड़ें आजादी के बाद की हैं जब देश में पर्याप्त खाद्यान्न नहीं होता था। हरित क्रांति के बाद ज्यादा पैदावार वाली फसलों का इस्तेमाल सफल इसलिए हुआ क्योंकि सरकारों ने इनपुट लागत पर सब्सिडी के साथ उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देना तय किया। तभी कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अब हमें इस तरह की सहूलियत नहीं देनी चाहिए क्योंकि अब भारत जरूरत से ज्यादा खाद्यान्न पैदा करने वाला देश है। तेजी से बढ़ता भारत का कृषि निर्यात इसकी पुष्टि करता है। हालांकि इसके विरोध में तर्क दिए जाते हैं कि औसतन पोषित खुराक लेने के मामले में भारतीय विकसित देश ही नहीं, चीन और वियतनाम से भी पीछे हैं। लिहाजा देश में जो खाद्यान्न की अधिकता दिखती है, वह घरेलू स्तर पर लोगों के कम उपभोग का नतीजा हो सकती है।

महंगी खुराक

जरूरत से ज्यादा खाद्यान्न की मौजूदगी के बावजूद अगर भारतीय संतुलित खुराक नहीं ले रहे हैं तो इसकी एक वजह महंगाई हो सकती है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट औरअन्य के शोध निष्कर्ष बताते हैं कि भारत के ग्रामीण इलाकों में 63.3 फीसद लोग पोषित खुराक की कीमत नहीं चुका सकते। हर राज्य में अलग-अलग कमाई, किसानों के बीच गहराती आर्थिक खाई पंजाब और हरियाणा के किसान देश के अन्य हिस्सों के किसानों से ज्यादा समृद्ध हैं। सरकार द्वारा एमएसपी पर खाद्यान्न खरीदने का गैर समानुपातिक हिस्सेदारी की इसमें बड़ी भूमिका है। 2019-20 में देश भर से गेहूं और चावल खरीद का क्रमश: 65 और 30 फीसद हिस्सा सिर्फ पंजाब और हरियाणा से लिया गया। इन दोनों राज्यों की गेहूं और चावल की देश की पैदावार में हिस्सेदारी 2017-18 में 28.7 फीसद और 15.9 फीसद रही। जहां एमएसपी खरीद के संसाधन नहीं हैं, वहां निजी स्तर पर खरीद के दौरान कम कीमत चुकायी जाती है।

समृद्ध किसान और पर्यावरण का नाश

पंजाब जलवायु के आधार पर धान की खेती केअनुकूल नहीं है, लेकिन एमएसपी के तहत सर्वाधिक खरीद होने के चलते वहां के किसान इस फसल की सर्वाधिक खेती करते हैं। पानी की ज्यादा खपत करने वाली इस फसल ने सूबे का भूजल स्तर पालात पहुंचा दिया है। अब तो पराली जलाकर दिल्ली की हवा को खराब करने वाली एक नई समस्या सामने है।

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